सऊदी अरब में महिलाओं को वोटिंग का हक मिला
२६ सितम्बर २०११कई तरह के अधिकार देने का एलान करते हुए किंग अब्दुल्लाह ने कहा कि महिलाओं को शूरा काउंसिल का सदस्य बनने का भी हक है. नई काउंसिल के पहले सत्र को संबोधित करते हुए किंग ने कहा, "अगले सत्र से महिलाओं को म्यूनिसिपल चुनाव लड़ने का हक होगा. इस्लामिक नियमों के तहत वे अपने उम्मीदवार भी चुन पाएंगी."
चुनाव लड़ने की इजाजत
इसका मतलब है कि महिलाएं हर चार साल में होने वाले चुनाव लड़ सकेंगी. इस बार का चुनाव आने वाले गुरुवार को होना है जिसके लिए नामांकन दाखिल किए जा चुके हैं.
सऊदी अरब कट्टर इस्लामिक मुल्क है जहां महिलाओं को बहुत कम अधिकार हासिल हैं. लेकिन किंग अब्दुल्लाह का यह फैसला देश के नए दौर में कदम रखने का संकेत हो सकता है. अपने भाषण में उन्होंने कहा, "हमने फैसला किया है कि अगले सत्र से महिलाएं शूरा काउंसिल में भी हिस्सा ले सकेंगी. रायशुमारी या सलाह देने के काम में मुस्लिम महिलाओं को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए."
गुरुवार को होने वाले स्थानीय निकाय के चुनावों में पांच हजार उम्मीदवार मैदान में हैं. सऊदी अरब के इतिहास में ये सिर्फ दूसरे सार्वजनिक चुनाव हैं. इन चुनावों के जरिए देश की 285 म्यूनिसिपल काउंसिल की आधी सीटें भरी जाएंगी. बाकी आधी सीटों पर सरकार लोगों को नियुक्त करती है. देश में पहली बार चुनाव 2005 में हुए थे. लेकिन सरकार ने पिछली परिषद का कार्यकाल दो साल के लिए बढ़ा दिया, इसलिए अब छह साल बाद चुनाव हो रहे हैं.
लंबी लड़ाई के बाद
बीते मई महीने में 60 से ज्यादा दानिशमंदों और कार्यकर्ताओं ने इन स्थानीय चुनावों के बहिष्कार की अपील की थी. उनका कहना था कि म्यूनिसिपल काउंसिल को अपनी भूमिका अदा करने के लिए वाजिब अधिकार हासिल नहीं हैं और उनके आधे सदस्य ही चुने जाते हैं, जिनमें महिलाओं को तो कोई प्रतिनिधित्व हासिल नहीं है.
इस मांग के बाद सऊदी अरब की शूरा काउंसिल ने अगले स्थानीय चुनावों से महिलाओं को वोट देने का हक देने की सिफारिश की. इससे पहले अप्रैल महीने में समर बादावी नाम की एक महिला ने स्थानीय निकाय मामलों के मंत्रालय के खिलाफ मुकदमा कर दिया था. मक्का के प्रशासनिक कोर्ट में दायर इस मुकदमे में बादावी ने महिलाओं को बतौर वोटर रजिस्टर करने से इनकार करने का आरोप लगाया था.
अप्रैल महीने में ही कुछ महिलाओं ने चुनावों में महिलाओं पर लगे बैन को धता बताते हुए जेद्दाह के वोटर रजिस्ट्रेशन दफ्तर पर हल्ला बोल दिया. वे सभी एक जत्था बनाकर दफ्तर के सामने पहुंच गईं. पुरुष प्रधान समाज और व्यवस्था में महिलाओं का यह छोटा सा प्रदर्शन अपने आप में बड़ी और अनोखी बात थी. लेकिन केंद्र के प्रमुख ने उन्हें लौटा दिया.
अभी बहुत कुछ बाकी है
महिलाओं अधिकारों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं ने वोटिंग का अधिकार हासिल करने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है. यूं भी सुन्नी इस्लामिक नियम कानूनों पर चलने वाले देश सऊदी अरब में महिलाओं को कई मूलभूत अधिकारों से वंचित जीवन गुजारना पड़ता है. मसलन वे ड्राइव नहीं कर सकतीं. उन्हें बिना पुरुष अभिभावक की इजाजत के यात्रा करने की मनाही है. इन प्रतिबंधों पर विरोध जताने के लिए कुछ दुस्साहसी महिलाओं ने 17 जून को गाड़ी चलाई.
अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने इन महिलाओं के प्रति अपना समर्थन जाहिर किया है. उन्होंने कहा, "जो ये महिलाएं कर रही हैं, वह बहादुरी का काम है. और जे वे हासिल करना चाहती हैं, वह बिल्कुल वाजिब है."
इस पूरे अभियान की पहचान मनाल अल शरीफ नाम की एक 32 साल की महिला चला रही हैं. अल शरीफ कंप्यूटर सिक्योरिटी कंसल्टेंट हैं. उन्होंने यूट्यूब पर एक विडियो पोस्ट किया जिसमें वह ड्राइव करती दिखाई दीं. इस वजह से 22 मई को मनाल को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें 10 दिन हिरासत में रखा गया. 14 जुलाई को अमेरिकी महिला सांसदों ने किंग अब्दुल्लाह को एक खत लिखकर महिलाओं के ड्राइविंग पर लगा प्रतिबंध हटाने की अपील की थी.
रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार
संपादनः ओ सिंह