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विश्वनाथन के विजय की उम्मीद

१२ मई २०१२

भारत के विश्वनाथन आनंद ने शतरंज में वही जगह हासिल की है, जो क्रिकेट में भारत के सचिन तेंदुलकर के नाम है. लेकिन अफसोस क्रिकेट के दीवाने देश में आनंद को कभी वह इज्जत नहीं मिली.

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तस्वीर: AP

42 साल के आनंद और 39 साल के सचिन, दोनों ने छोटी उम्र में ही अपनी प्रतिभा दिखा दी. दोनों दशकों से ऐसी जगह पर बने हुए हैं, जहां पहुंच पाना किसी दूसरे खिलाड़ी के लिए आसान नहीं. अपने देश और विदेशों में दोनों ही खिलाड़ियों की तूती बोलती है.

करोड़ों लोग भारत में जहां सचिन को बेशुमार प्यार देते हैं, वहीं आनंद चुपचाप अपना खेल दिखाते रहते हैं. कुछ लोगों का तो मानना है कि आनंद का रिकॉर्ड सचिन से बेहतर है. हालांकि शतरंज और क्रिकेट की तुलना नहीं की जा सकती. भारत में 2001 में शुरू हुई वेबसाइट ओलंपिक गोल्ड क्वेस्ट का कहना है, "यह बात बड़ी आसानी से कहा जा सकता है कि भारत ने अब तक सबसे बड़ा खिलाड़ी विश्वनाथन आनंद ही पैदा किया है." आनंद के नाम 2007 से विश्व चैंपियन का ताज है और फिलहाल वह मॉस्को में इस्राएल के बोरिस गेलफांद के खिलाफ अपने खिताब की सुरक्षा में लगे हैं. रूसी राजधानी में विश्व चैंपियनशिप चल रही है.

Symbolbild staatliche Hierarchie Schach
तस्वीर: Sean Gladwell - Fotolia.com

तेज तर्रार खेल के लिए आनंद को लाइटनिंग किड कहा जाता है. सिर्फ शतरंज ही नहीं, उन्होंने अपने पूरे जीवन में तेजी दिखाई है. सिर्फ 15 साल की उम्र में वह अंतरराष्ट्रीय मास्टर बन गए, 16 की उम्र में भारतीय चैंपियनशिप जीत ली, 17 में जूनियर वर्ल्ड चैंपियन बन गए और 18 की उम्र में ग्रैंडमास्टर. वह भारत के पहले ग्रैंडमास्टर हैं. उनकी उपलब्धियों को देखते हुए भारत सरकार ने उनकी 19वीं सालगिरह से पहले ही पद्मश्री से नवाज दिया.

तमिलनाडु में पैदा हुए आनंद अब अपनी पत्नी अरुणा और एक साल के बेटे के साथ स्पेन में रहते हैं. शतरंज के एक्सपर्ट उन्हें सिर्फ आज के दौर का नहीं, बल्कि इतिहास का सबसे शानदार खिलाड़ी बताते हैं. 2008 के विश्व चैंपियनशिप में आनंद के हाथों हार झेल चुके रूसी ग्रैंडमास्टर व्लादीमीर क्रामनिक का कहना है, "मैंने हमेशा से उन्हें शतरंज के इतिहास में सबसे बड़े खिलाड़ियों में गिना है. हर चैंपियन की कुछ न कुछ खासियत होती है. और उनकी खासियत यह है कि वह किसी भी हालत में रहते हुए आप पर हमला बोल सकते हैं."

भारत में खेल का सबसे बड़ा पुरस्कार राजीव गांधी खेल रत्न सबसे पहले आनंद को ही 1992 में दिया गया. बाद में 2007 में उन्हें पद्मविभूषण से भी नवाजा गया.

आनंद जब छह साल के थे, तो अखबारों के शतरंज मुकाबले में हिस्सा लिया करते थे. उन्होंने कभी कहा था, "मैं अपनी मां के साथ मिल कर अखबार के शतरंज वाले खाने भरता और अपने जवाब भेज दिया करता था. फिर एक समय आया, जब अखबार वालों ने लिखा कि मैं अब कोई और जवाब न भेजूं ताकि दूसरों को मौका मिल सके."

निजी जीवन में बेहद सौम्य और शांत आनंद के खेल की खासियत आक्रामकता है. वह अपने मुहरों से सामने वाले खिलाड़ी पर कब बरस पड़ेंगे, किसी को नहीं पता. हालांकि ऐसा करते हुए वह अपनी रक्षा पंक्ति पर लगातार ध्यान बनाए रखते हैं. शतरंज खिलाड़ी सूर्य शेखर गांगुली का कहना है, "अगर शतरंज में कोई परफेक्ट है, तो वह आनंद ही हैं."

एजेए/एएम (एएफपी)

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