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पाकिस्तान से प्यार नहीं चढ़ सका परवान

१६ मार्च २०११

पाकिस्तान में तेजी से खत्म होती सहनशीलता के बीच वहां रहने वाले एक पश्चिमी पत्रकार ने देश छोड़ने का फैसला किया है. इस ब्रिटिश पत्रकार का बनाया शो जॉर्ज का पाकिस्तान खूब लोकप्रिय हुआ.

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तस्वीर: Fulton

जॉर्ज फुल्टन पाकिस्तान में सबसे लोकप्रिय पश्चिमी शख्सियत रहे हैं. उनका बनाए शो जॉर्ज का पाकिस्तान ने उन्हें सबका चहेता बना दिया. इसके लिए उन्होंने पूरा पाकिस्तान भी घूमा. वह खेतों में हल चलाते पंजाबी किसानों के बीच गए तो क्लाश्निकोव थामे पश्तूनों से भी मिले. एक सर्वे में उन्हें सच्चा पाकिस्तानी चुना गया और उन्हें पाकिस्तानी पासपोर्ट भी मिल गया.

Blasphemie Gesetz in Pakistan FLASH Galerie
तस्वीर: AP

फुल्टन ने एक पाकिस्तानी पत्रकार किरन से शादी की और वह पाकिस्तान में लगभग नौ साल तक रहे. किरन और जॉर्ज ने टीवी पर सुबह आने वाले एक शो की मेजबानी भी की. उन्होंने पाकिस्तान अखबारों में कॉलम भी लिखे. लेकिन जैसे जैसे वह अपने नए देश पाकिस्तान को पहचानते गए, उसकी कमियों की आलोचना भी करने लगे.

बस बहुत हुआ

जनवरी में तो हद ही हो गई. जब पंजाब प्रांत के गवर्नर सलमान तासीर की उन्हीं के एक अंगरक्षक ने दिन दहाड़े गोली मारी कर हत्या कर दी और उनके कातिल का नायक की तरह अभिनंदन किया गया तो फुल्टन ने पाकिस्तान छोड़ने का फैसला कर लिया. उन्होंने पाकिस्तान से अपने पुराने प्यार को अलविदा करने का मन बना लिया.

डॉयचे वेले के साथ इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "जो काम मैं करता हूं और जो कर सकता हूं, उसे देखते हुए सुरक्षा बहुत मुश्किल होती जा रही है. अगर आप किसी कानून पर सवाल उठाते हो, तो आपको पाकिस्तान में गोलियों से भून दिया जाता है. अगर आप किसी की आलोचना करते हो तो आपको नहीं पता कि आपके साथ क्या हो जाए. मैं पाकिस्तान के साथ अपने रिश्ते बनाए रखना चाहूंगा लेकिन मुझे बदलाव की सख्त जरूरत है क्योंकि यह एक ऐसा समाज है जिसमें सहनशीलता लगातार घट रही है." तासीर के बाद पाकिस्तान सरकार में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री शहबाज भट्टी को भी इस्लामाबाद में चरमपंथियों ने गोलियों से भून दिया. दोनों ही नेता देश के विवादास्पद ईशनिंदा कानून के आलोचक थे.

विजन की कमी

फुल्टन के लिए पाकिस्तान एक विफल राष्ट्र बनने के बहुत करीब है. उन्हें नहीं लगता कि वहां लोकतंत्र ज्यादा दिन तक चलने वाला है. फुल्टन का मानना है कि पाकिस्तान के संकट की जड़ें बहुत गहरी हैं. पाकिस्तानी जात और धर्म के आधार पर बंटे हैं और ऐसे में बहुत की कम चीजें हैं जो उनके बीच एकता पैदा कर सकें. वह कहते हैं, "एक चीज जो पारंपरिक रूप से उन्हें एकजुट रखती आई है और जिसका सेना से भरपूर फायदा उठाया है, वह है भारत से नफरत. इस बात का मीडिया में भी प्रभावी तरीके से दुष्प्रचार होता है. दूसरी चीज है क्रिकेट. लेकिन किसी देश के टिके रहने के लिए सिर्फ इससे तो काम नहीं चलेगा."

Blasphemie Gesetz in Pakistan FLASH Galerie
तस्वीर: AP

फुल्टन कहते हैं देश के उदारवादी लोग चरमपंथियों के सामने बेबस हो गए हैं. इनमें वह खुद को भी शामिल करते हैं. वह कहते हैं कि पाकिस्तान की समस्याएं दशकों पहले शुरू हुईं. उस वक्त उदारवादी लोगों ने देश के इस्लामीकरण का कोई खास विरोध नहीं किया. इसी की बदौलत पाकिस्तान को अपना लगभग आधा हिस्सा बांग्लादेश के रूप में गंवाना पड़ा.

फुल्टन का कहना है, "1971 के युद्ध के बाद जब उपमहाद्वीप के मुसलमानों के लिए एक देश के तौर पर पाकिस्तान का विचार नाकाम हो गया तो देश के सामने कोई सोच या नजरिया नहीं था. यह भटकता गया और पाकिस्तान का मकसद ही खो गया."

फुल्टन पाकिस्तान के भविष्य को लेकर भी बहुत मायूस हैं. वह कहते हैं, "अगले 20 साल में पाकिस्तान की जनसंख्या में 8 करोड़ का इजाफा होने का अनुमान है. पहले ही देश की तीन चौथाई आबादी की उम्र तीस साल से कम है जबकि 21 साल तक से कम उम्र के लोगों की तादाद 50 फीसदी के आसपास है. इसका मतलब है कि देश में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ने वाली जिनके पास कोई शिक्षा और रोजगार नहीं होगा. फिर उनमें गुस्सा और असंतोष होगा जो उन्हें आसानी से चरमपंथ के रास्ते पर ले जाएगा. ऐसे में उनका आसानी से ब्रेन वॉश भी किया जा सकता है."

रिपोर्टः थॉमस बैर्थलाइन

संपादनः ए कुमार

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