1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

पत्नी का रेप जुर्म है या नहीं?

३० सितम्बर २०११

ऑस्ट्रेलिया में 80 साल के एक आदमी ने पत्नी द्वारा लगाए गए बलात्कार के इल्जाम को खारिज कर दिया है. इस केस ने भारत में भी यह बहस छेड़ दी है कि पत्नी के साथ जबरन सेक्स को बलात्कार की श्रेणी में क्यों नहीं रखा जाना चाहिए.

https://p.dw.com/p/12j59
PICTURE POSED BY MODEL. A rape victim waits to be seen by the doctor in the medical room at a specialist rape clinic in Kent. (31.01.2007). Foto: Gareth Fuller +++(c) dpa - Report+++
तस्वीर: PA/dpa

यह मामला थोड़ा पेचीदा है. इस व्यक्ति की पत्नी ने 2009 में शिकायत दर्ज कराई जबकि मामला 1963 का है. 1971 में ही दोनों का तलाक हो गया. अब इतने साल बाद जब मामला अदालत पहुंचा है तो पति का कहना है कि अदालत को इसे बर्खास्त कर देना चाहिए, क्योंकि उस समय के कानून के अनुसार यौन संबंध बनाने के लिए पत्नी की मंजूरी होना जरूरी नहीं था.

ऑस्ट्रेलिया में 1976 में यौन शोषण को लेकर कानून में बदलाव किए गए. उससे पहले न तो कानून में यौन उत्पीड़न का जिक्र था, न ही पत्नी को इंकार करने का हक था. हालांकि यह बात अभी साफ नहीं है कि पत्नी ने इतने साल बाद आरोप क्यों लगाए. लेकिन इससे पति का मुकदमा मजबूत होता दिखता है. इस व्यक्ति का कहना है कि मामला जिस समय का है उसे उसी समय के कानूनों को ध्यान में रख कर तय करना जरूरी है.

Symbolbild Gewalt gegen Frauen Vergewaltigung NO FLASH angst © detailblick #26718227
तस्वीर: fotolia

भारत में कोई कानून नहीं

दिल्ली हाई कोर्ट की वकील राखी बुद्धिराजा का कहना है कि कानूनी तौर पर देखा जाए तो इस मामले में फैसला पति के हक में ही होगा, "अगर इतना लंबा वक्त बीत चुका है तो मुझे नहीं लगता कि बलात्कार साबित किया जा सकता है."

इस मुकमदे से सवाल उठता है कि क्या कानून का सहारा लेकर औरतों के खिलाफ हो रहे अत्याचार को सही ठहराया जा सकता है? भारत में आज भी घरेलू हिंसा के खिलाफ सख्त कानूनों की कमी है. पत्नी के बलात्कार के खिलाफ भारत में कोई कानून है ही नहीं.

राखी बताती हैं कि भारत में यदि पत्नी अपने पति पर बलात्कार का आरोप लगाती है तो उसे घरेलू हिंसा के मामले में ही गिना जाएगा. पति को ज्यादा से ज्यादा दो साल की कैद हो सकती है. लेकिन अधिकतर मामलों में ऐसा भी नहीं हो पाता. पति पत्नी का आपस में समझौता करा दिया जाता है और मामला वहीं खत्म हो जाता है.

Quelle: irani Copyright: frei

बलात्कार की परिभाषा

राखी बताती हैं कि आईपीसी की धारा 375 के अनुसार बलात्कार का मामला तभी बनता है जब संभोग महिला की इच्छा या सहमति के खिलाफ हो. यदि महिला ने किसी दबाव में या नशे के असर में सहमति दी है, तब भी इसे बलात्कार माना जाएगा. लेकिन जबरदस्ती करने वाला व्यक्ति अगर उसका पति है तो उसे बलात्कार नहीं माना जाता.

यानी जो कानून ऑस्ट्रेलिया में 1976 में ही बदल दिया गया, भारत में आज भी उसी को माना जाता है. राखी बताती हैं कि अगर पति और पत्नी अदालत का आदेश पा कर कानूनी तौर से अलगाव में रह रहे हों और उस दौरान पति पत्नी के साथ यौन संबंध बनाने की कोशिश करे, तो उसे बलात्कार माना जाएगा. इसके अलावा 16 साल से कम उम्र की लड़की के साथ संबंध बनाने को भी बलात्कार माना जाएगा भले ही इसमें उसकी सहमती हो.

Symbolbild Gewalt gegen Frauen NO FLASH
तस्वीर: picture-alliance/dpa

पति का हक

इंटरनेट पर लोग हर बात पर चर्चा करते हैं. हमने कुछ ब्लॉग्स के माध्यम से जानना चाहा कि इस बात पर लोगों की क्या प्रतिक्रिया है. इन प्रतिक्रियाओं से ऐसा लगता है कि ज्यादातर लोग पत्नी के बलात्कार के खिलाफ कानून बनाने के हक में नहीं हैं. आंसर्स डॉट कॉम इस मुद्दे पर हो रही चर्चा में लिखा है, "पति का अपनी पत्नी के जिस्म पर पूरा हक है. किसी सेक्स वर्कर के पास जाने से तो अच्छा है कि पत्नी के साथ ही जबरदस्ती करो." एक अन्य सज्जन लिखते हैं, "पत्नी का बलात्कार इतना संजीदा मुद्दा नहीं है जितना किसी और लड़की का बलात्कार करना. पत्नी को अपने पति की जरूरतों का ध्यान रखना चाहिए."

Junges Mädchen als Opfer von häuslicher Gewalt. picture-alliance/Photoshot
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot

नाक कटने का डर

वकील राखी बुद्धिराजा भी इस कानून के बनने के समर्थन में नहीं हैं, लेकिन उनकी दलील कुछ अलग है. वह कहती हैं, "यदि ऐसा कानून बना तो लोग इसका गलत फायदा उठाएंगे. यहां पहले ही झूठे केस बनते हैं. फिर और बना करेंगे." राखी बताती हैं कि अधिकतर मामले जो अदालत तक पहुंचते हैं वे गलत होते हैं. जिन महिलाओं के साथ बुरा सलूक होता है वे  सामने ही नहीं आतीं क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है कि ऐसा करने से समाज में उनकी नाक कट जाएगी.

राखी बताती हैं कि अगर कोई सच में अपने हक के लिए लड़ने निकलता है तो उसकी आवाज दबा दी जाती है, "मुझे कहते हुए दुख होता है कि हमारी न्याय प्रणाली में दोषी का ही साथ दिया जाता है. छोटे से लेकर बड़ा अधिकारी पैसे दे कर खरीद लिया जाता है. मैं भारतीय न्याय प्रणाली से बेहद निराश हूं...जब मुझे पश्चिमी देशों के बारे में पता चलता है कि वहां महिलाओं के हितों में नए कानून बन रहे हैं, तो जान कर बहुत खुशी होती है, क्योंकि वहां केवल कानून बनते ही नहीं हैं, उनका पालन भी होता है. हमारे यहां अगर कोई कानून बन जाए तो उसका पालन नहीं होता, केवल दुरुपयोग होता है."

रिपोर्ट: ईशा भाटिया

संपादन: वी कुमार

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी