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गद्दाफी की हत्या में जर्मन जासूसों की भूमिका पर संदेह

२९ अक्टूबर २०११

जर्मनी लीबिया पर नाटो के हमले से सहमत नहीं था और उसने सुरक्षा परिषद में भी इस प्रस्ताव की वोटिंग से खुद को दूर रखा. लेकिन अब एक विवाद ने उसके रुख पर सवाल उठा दिए हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

जर्मन मीडिया में ऐसी खबरें हैं कि गद्दाफी का पता जर्मन जासूसों ने लगाया. उन्होंने ने ही त्रिपोली से भागकर छिप गए गद्दाफी का पता नाटो को दिया. बाद में नाटो की बमबारी में गद्दाफी घायल हो गए और लीबिया के विद्रोही लड़ाकों ने उन्हें मार डाला.

क्या कहती है रिपोर्ट

जर्मनी की जासूसी एजेंसी बुंडेसनाख्रिश्टनडीन्स्ट (बीएनडी) को लीबिया को लेकर कुछ कड़वे सवालों का सामना करना पड़ रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बीएनडी को काफी पहले से गद्दाफी के ठिकाने की जानकारी थी. जर्मनी की जानी मानी पत्रिका डेय श्पीगल ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि बीएनडी को भगौड़े पूर्व तानाशाह के ठिकाने का उनके पकड़े जाने से हफ्तों पहले ही पता चल गया था. हालांकि बीएनडी ने लीबिया में किसी भी तरह की भूमिका से इनकार किया है. बीएनडी के एक प्रवक्ता ने डॉयचे वेले से कहा, "हमें तो हैरत हुई कि गद्दाफी वहां थे. हमें बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि वह वहां होंगे. हमें कतई नहीं पता था कि वह कहां हैं." यानी बीएनडी के जासूस लीबिया में मौजूद थे लेकिन उन्हें गद्दाफी के ठिकाने का नहीं पता था, इस सवाल के जवाब में प्रवक्ता ने कहा, "हमारी कोई भूमिका नहीं थी. यह कोई खबर ही नहीं है. ऐसे सवाल निराधार कड़ियां ढूंढकर बनाई गई बातों पर आधारित होते हैं. ये कड़ियां खतरनाक होती हैं क्योंकि इनका कोई वजूद नहीं होता."

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तस्वीर: dapd

इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि गद्दाफी पर हमला करने वाले फ्रांस के युद्धक विमानों को गद्दाफी के ठिकाने की सटीक जानकारी थी. जैसे ही गद्दाफी ने सिर्त से निकलने का फैसला किया, विमानों को पता था कि कहां हमला करना है. इतनी सटकी जानकारी जासूसी सूत्रों से ही मिल सकती थी, ऐसे जासूसी सूत्रों से जो सिर्त के संपर्क में हो.

बीएनडी का स्वभाव

डेय श्पीगल की रिपोर्ट में सुरक्षा सूत्रों का हवाला दिया गया है. एक अधिकारी ने बताया है कि बीएनडी का उत्तर अफ्रीका में विशाल और विस्तृत नेटवर्क है और उसने लीबिया में सूचनाएं जुटाने में बेहद अहम भूमिका निभाई है.

ऐसा मानने वाले बहुत से लोग हैं कि बीएनडी की इसमें भूमिका हो सकती है. वॉशिंगटन के ग्लोबलसिक्योरिटी डॉट ओआरजी के निदेशक जॉन पाइक कहते हैं, "जर्मन जासूसों की लीबिया के महाविनाश के हथियारों में खासी दिलचस्पी रही है. इसलिए संभव है कि उनके पास लीबिया पर केंद्रित विश्लेषक और जासूस हों. बीएनडी अपने फन में माहिर है और जानती है कि कैसे बात छिपाई जाती है. इसलिए यह जानने का कोई जरिया नहीं है कि लीबिया में उसकी क्या भूमिका रही."

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सवालों में बीएनडीतस्वीर: picture alliance/dpa

बीएनडी के पूर्व प्रमुख डॉ. हान्स-जॉर्ज विक ने डॉयचे वेले से बातचीत में माना है कि एजेंसी दुनिया के विवादित क्षेत्रों में सक्रिय है और उत्तर अफ्रीका भी उनमें शामिल है. विक कहते हैं, "बीएनडी को उन सभी क्षेत्रों में सूचनाएं जुटानी होती हैं जहां कुछ भी गड़बड़ी हो सकती है. इसलिए बीएनडी हमेशा, मैं जोर देकर कहता हूं कि हमेशा हिंदुकुश और मेडिटेरिनियन के बीच में सक्रिय रही है. उत्तर अफ्रीका यानी लीबिया के अलावा इराक, ईरान, पाकिस्तान अफगानिस्तान में भी." विक कहते हैं कि नाटो के सदस्य आपस में सूचनाएं साझा करते हैं और यह एक सामान्य बात है.

इस सारे विवाद में अहम यह है कि जर्मनी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खुद को लीबिया की लड़ाई से दूर रखा था. नाटो का सदस्य होते हुए भी उसने सैन्य कार्रवाई में हिस्सा नहीं लिया. नेता सैन्य दखल के विरोधी थे. फिर भी अगर जर्मन जासूस वहां सक्रिय थे, तो इसे देश के अभियान में शामिल होने के रूप में देखा जा सकता है. और फिर बात गद्दाफी की हत्या से जुड़े विवाद तक पहुंचती है. जिस तरह गद्दाफी को बेरहमी से मारा गया, क्या उसकी जानकारी भी जर्मन जासूसों को थी?

रिपोर्टः निक एमीज/वी कुमार

संपादनः ओ सिंह

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