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2014 के बाद के अफगानिस्तान पर भारत की नजर

१० नवम्बर २०११

भारत अफगानिस्तान की सेना को ट्रेनिंग देने की योजना बना रहा है. दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी के बाद भारतीय वायुसेना अफगान पायलटों को ट्रेनिंग दे सकती है. लेकिन पाकिस्तान की आंखों में यह सब चुभ रहा है.

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दोनों देशों के बीच पिछले एक दशक में अच्छी दोस्ती कायम हुई हैतस्वीर: ap

भारत अफगान सेना को हल्के हथियार भी मुहैया करा सकता है. पिछले महीने दोनों देशों के बीच हुई रणनीतिक साझेदारी के तहत अफगानिस्तान की छोटी सी वायुसेना के पायलटों और ग्राउंट स्टाफ को ट्रेनिंग भी दी जा सकती है.

अब तक भारत अफगान सुरक्षा बलों को थोड़ी बहुत ही ट्रेनिंग दे रहा था लेकिन उसका कोई तय ढांचा नहीं है. इसके तहत अफगान अधिकारी थ्योरी क्लासों में ही शामिल होते रहे हैं. 2007 में एक बार 30-30 सैनिकों वाली प्लाटून साइज की दो यूनिटों को भारत ने ट्रेनिंग दी थी. लेकिन नए समझौते के तहत अफगान सुरक्षा बलों को ट्रेनिंग में भारत औपचारिक तौर पर शामिल होगा.

प्रभाव बढ़ाने की खातिर

2014 के अंत तक विदेशी सेनाएं अफगानिस्तान छोड़ देंगी और समूचे देश की सुरक्षा जिम्मेदारी अफगान बलों पर होगी. 10 साल से चल रहे युद्ध के बाद भी विदेशी सेनाएं तालिबान का सफाया नहीं कर पाई हैं, बल्कि इन दिनों तो तालिबान को सबसे ज्यादा ताकतवर समझा जा रहा है.

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अगले महीने जर्मनी के बॉन शहर में अफगान सम्मेलन होने जा रहा हैतस्वीर: AP

मध्य भारत में एक उच्च संस्थान की तरफ इशारा करते हुए एक भारतीय सुरक्षा अधिकारी ने बताया, "इस अफगान पहल को जहां तक मैं अभी समझता हूं, इसमें महु में सैन्य युद्ध कॉलेज जैसी जगहों पर ट्रेनिंग दी जाएगी. इसमें भावी प्रशिक्षक तैयार करने पर भी ध्यान दिया जाएगा. इसका मकसद उन्हें वास्तविक युद्धक अभियान के लिए तैयार करना है."

भारत ने पिछले दस सालों में अफगानिस्तान को 2 अरब डॉलर से ज्यादा की सहायता दी है और वह अफगानिस्तान में अपनी भूमिका का विस्तार कर रहा है. भारत अफगानिस्तान में सड़कें, बिजली की लाइनें और बांध बना रहा है. जाहिर है कि वह 2014 के बाद के अफगानिस्तान में अपना असर कायम करना चाहता है.

नए समीकरण

इस परिदृश्य से क्षेत्रीय गठजोड़ भी नया आकार ले रहे हैं. अमेरिका जहां अफगानिस्तान और भारत के समझौते का समर्थन करता दिख रहा है, वहीं पाकिस्तान को यह पसंद नहीं आ रहा है. अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्ते भी अफगानिस्तान में जारी लड़ाई के कारण अच्छे नहीं चल रहे हैं. अमेरिका का आरोप है कि पाकिस्तान अफगानिस्तान में हमला करने वाले उग्रवादियों को पनाह देता है.

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दस साल की लड़ाई के बावजूद नाटो तालिबान को परास्त नहीं कर पाया हैतस्वीर: DW/Yasir Rohulla

वॉशिंगटन में अमेरिकी सिक्योरिटी प्रोजेक्ट में सुरक्षा विश्लेषक जोशुआ फौस्ट का कहना है, "मुझे लगता है कि यह बड़ी डील है. इसमें अफगानिस्तान को लेकर पाकिस्तान की बहुत सी चिंताओं की पुष्टि होती है. इससे भी ज्यादा, देखिए कितने अफगान राष्ट्रीय सुरक्षा बल (एएसएसएफ) पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई में शामिल होते है, इसमें भारत को शामिल करना खतरनाक विचार है. लेकिन इन फैसलों में भारत को शामिल करने की वजह उसे उस जगह में हिस्सा देना है जो अमेरिका के वापस जाने से खाली होगी."

नाटो को अफगान सुरक्षा बलों के साढ़े तीन लाख जवानों को ट्रेन करने में खूब मेहनत करनी पड़ रही है. अमेरिका में युद्ध के लिए घरेलू समर्थन घट रहा है, इसीलिए अटकलें लग रही हैं कि राष्ट्रपति बराक ओबामा निर्धारित समय से पहले सैनिकों की वापसी का आदेश दे सकते हैं.

रिपोर्टः रॉयटर्स/ए कुमार

संपादनः ओ सिंह

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