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अफगानिस्तान: खौफ में अमेरिकी सैनिक

२३ सितम्बर २०११

अफगानिस्तान में अमेरिकी फौज को अपनी मर्दानगी खोने का डर सता रहा है. कभी बाप नहीं बन पाने के खौफ में सैनिक अपने डॉक्टरों से उन्हें न बचाने की गुहार करते हैं. और डॉक्टर अपना काम.

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जान का जोखिमतस्वीर: AP

अफगानिस्तान में तालिबान और आतंकियों से लड़ रहे अमेरिकी मरीन्स एक अजीब खौफ में जी रहे हैं. वह खौफ है मर्दानगी खोने का.  पहली बटालियन की 5वीं मरीन रेजिमेंट के चिकित्सक रिचर्ड व्हाइटहेड कहते हैं कि आतंकियों के बम से घायल सैनिक सबसे पहले इलाज करने वाले डॉक्टर से यह कहता है, "अगर मैं अपनी मर्दानगी गंवाता हूं तो मैं आगे इस तरह से जीना नहीं चाहता."

NO FLASH Straßenszene mit Soldaten in der Provinz Laghman Afghanistan
पैदल खतरा ज्यादातस्वीर: picture-alliance/dpa

यह बटालियन अफगानिस्तान के सबसे जोखिम वाले इलाके में लड़ाई लड़ रही है. व्हाइटहेड कहते हैं, "घायल सैनिक कहते हैं कि अगर उनके 'जंक' बम धमाके में उड़ जाएं तो उन्हें बचाने की कोशिश न करें." अमेरिकी सैनिक चालू भाषा में गुप्तांग को 'जंक' पुकारते हैं. व्हाइटहेड आगे कहते हैं, "आमतौर पर यह सुनकर हम हंसते हैं.  हम उनसे मजाक करते हैं. आपको पता है कि किसी भी हालात में उनका इलाज तो करना ही है."

यह डर की दुनिया है

अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों को अब बढ़ते पैमाने पर तालिबान लड़ाकों की खोज में पैदल भेजा जा रहा है. बम से पटे इलाकों में पैदल मार्च करने वाले अमेरिकी सैनिकों को पता है कि एक गलत कदम उनको अपाहिज बना सकता है. लेकिन जो जवान हैं और जिनकी अभी शादी भी नहीं हुई है, उनके लिए अपने यौनांग को खोने का खौफ कहीं ज्यादा है.

Afghanistan Chinook Hubschrauber abgeschossen
तस्वीर: AP

व्हाइटहेड कहते हैं, "यह वह जगह है जहां टूर्निकेट भी नहीं लगा सकते." दक्षिणी अफगानिस्तान के सानगिन जिले में इस बटालियन का बेस है. यह इलाका एक समय में तालिबानियों का गढ़ था. पूरे देश में सबसे ज्यादा आईडी यहां लगे हुए हैं.  पिछले साल से हो रहे मरीन कमांडो के ऑपरेशन की वजह से यहां आतंकवादी संगठन कमजोर पड़े हैं. लेकिन तालिबान के लड़ाके छल कपट कर पैदल सैनिकों को अपने जाल में फंसाते रहते हैं. 

आगे मौत पीछे भी मौत

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मौत का सामानतस्वीर: Cluster Munitions Coalition

आने वाले अक्टूबर में बटालियन की तैनाती को 7 महीने हो जाएंगे.  अब तक 16 सैनिक अपनी जान गंवा चुके हैं और 160 सैनिक जख्मी हुए हैं. घायलों में से 90 को अमेरिका वापस भेज दिया गया है. व्हाइटहेड बताते हैं कि एक सैनिक के दोनों अंडकोष विस्फोट में बर्बाद हो गए. तो दूसरे का एक अंडकोष खराब हो गया और दो सैनिक के लिंग में चोटें आईं हैं. कई महीनों की तैनाती के बाद सैनिकों को "विस्फोट जांघिया" देने का फैसला किया गया. यह जांघिये रेशम के बने होते हैं जो घुटने के ठीक ऊपर तक होते हैं. यह खास जांघिये बम से निकलने वाले टुकड़े को रोक सकते हैं.

Afghanistan Kabul Taliban greifen Regierungsviertel an
तस्वीर: dapd

शुरुआत में सैनिक इसे भारी और परेशानी वाला जांघिया बताते थे. लेकिन अब इसे पहनना अनिवार्य है. सैनिकों के लिए दस्ताना, चश्मा, हेलमेट और बचाव के अन्य उपकरणों के साथ इसे भी पहनना जरूरी है. बम धमाके में सैनिक अपने पैर या फिर निजी अंग खो देते हैं. इसका असर पूरी बटालियन पर पड़ता हैशरीर के अंग खोने वाले अमेरिकी सैनिकों की संख्या 2009 में 86 थी जो 2010 में 187 हो गई और इस साल अब तक 147 सैनिक कोई न कोई अंग खो चुके हैं. अधिकारियों का कहना है कि निजी अंगों पर लगने वाली चोट की भी संख्या बढ़ी हैं लेकिन उन्होंने इसके अलग से आंकड़े नहीं दिए.

रिपोर्ट: एपी / आमिर अंसारी

संपादन: महेश झा

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