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मंथन 97 में खास...

२५ जुलाई २०१४

सड़क दुर्घटनाओं को कम करने के लिए सड़क की मैपिंग और चार करोड़ रुपये की हाईटेक तिजोरी, देखिए मंथन में इस बार.

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Indien Kühe
तस्वीर: AP

भारत में सड़क हादसों में रोजाना डेढ़ सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है. इन हादसों से देश को सालाना 550 अरब रुपये का नुकसान हो रहा है. इनके लिए लोगों की लापरवाही के साथ साथ सड़कों की हालत भी जिम्मेदार है. सड़कों की मरम्मत के लिए एक जर्मन कंपनी सड़कों की मैपिंग कर रही है. सर्वे करने वाली गाड़ी कैमरा और दूसरे जटिल उपकरणों के साथ सड़कों पर चलती है और उनकी स्थिति को रजिस्टर करती है. लक्ष्य है कि गड्ढों के बनने से पहले ही उनका पता लग जाए, ताकि खतरे को वक्त रहते रोका जा सके. इस बारे में कार्यक्रम में शामिल है खास रिपोर्ट.

कुछ लोग खर्च के बारे में बिलकुल नहीं सोचते. जो किसी और के लिए फिजूल खर्च होगा, वो उनके लिए शौक है. महंगी जूलरी, महंगी घड़ियां खरीदना एक शौक है और इन्हें संभाल कर रखने के लिए जरूरत होती है तिजोरी की. कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो इस तिजोरी पर ही पांच लाख यूरो यानि चार करोड़ रुपये तक खर्च कर देते हैं. कार्यक्रम में जानिए क्या खास है इस तिजोरी में.

जंगली जानवरों का शोषण

वियतनाम में परंपरागत तौर से वन्यजीव उत्पादों का इस्तेमाल होता आया है. ये सिर्फ दवा और खाने के लिए ही नहीं, बल्कि सोशल स्टेटस दिखाने की भी चीज समझी जाती है. लोग दिखाना चाहते हैं कि उनके पास ऐसी जंगली चीज है, जो दूसरे नहीं खरीद सकते. वियतनाम में जंगली जानवरों को खाना या उनसे दवा बनाने पर कानूनी तौर पर पाबंदी है. फिर भी यह रिवाज चला आ रहा है. इन जानवरों को बचाना वहां बहुत मुश्किल काम बन गया है. इस बारे में मंथन में पाइए और भी जानकारी.

जूतों का प्रिंटर

3डी प्रिंटर का ट्रेंड बढ़ता जा रहा है. अब ये सिर्फ खिलौने या मशीनों के कुछ पुर्जे बनाने के ही नहीं, डिजाइनर कपड़ों और जूतों के लिए भी काम आ रहे हैं. स्वीडेन के एक डिजाइनर ने ऐसे जूते तैयार किए हैं. जूते का डिजाइन पहले कंप्यूटर पर 3डी प्रिंटिंग एक्सपर्ट की मदद से बनाया जाता है. फिर एक खास सॉफ्टवेयर, डिजाइन को डिजिटल सिग्नल में बदलता है जो प्रिंटर को जूता बनाने का कमांड देता है. साधारण प्रिंटर से स्याही निकलती है, जूता बनाने वाले प्रिंटर से प्लास्टिक बहता है. एक जूते के बनने में 1500 यूरो का खर्च आता है. इस बारे में देखिए एक रोचक रिपोर्ट.

इसके अलावा अखबारों और मैगजीन की रिपोर्टें अब कंप्यूटर लिखने लगे हैं. ऑटोमेटड इनसाइट नाम के प्रोग्राम आंकड़ों का विश्लेषण करते हैं, डाटा को एक खास कोड की मदद से परखते हैं और उसे एक संदेश में बदल देते हैं. कंप्यूटर एक सेकंड में 2000 आर्टिकल बना सकता है. फोर्ब्स मैगजीन स्टॉक एक्सचेंज की रिपोर्ट कंप्यूटर से लिखवाती है. लॉस एंजेलेस टाइम्स भी भूकंप की रिपोर्ट रोबोट से लिखाती है. मंथन में जानिए कि यह कैसे किया जाता है.

देखना न भूलें, मंथन हर शनिवार सुबह 10:30 बजे डीडी नेशनल पर.

एसएफ/आईबी