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हमारे चेहरे कैसे बने ऐसे

१० जून २०१४

लंबे समय से मानवविज्ञानी मानते आए हैं कि बंदरों से आदिमानव और फिर आधुनिक मनुष्य के चेहरे का विकास कुछ इस तरह हुआ कि समय के साथ बदलती खान पान की आदतों से तालमेल रहे. अब नया सिद्धांत इसकी वजह आपसी झगड़े को बता रहा है.

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तस्वीर: Getty Images

अमेरिका में यूटा विश्वविद्यालय के दो शोधकर्ताओं ने मानव चेहरे के वर्तमान रूप में विकसित होने का नया सिद्धांत दिया है. वैज्ञानिकों ने 'बायोलॉजिकल रिव्यू' जर्नल में छपी अपनी थ्योरी में बताया है कि आधुनिक मानव के पूर्वजों का चेहरा लाखों साल पहले इस तरह विकसित हुआ जिससे पुरुषों के बीच लड़ाई और हाथापाई में चेहरे पर मुक्के पड़ने पर भी कम से कम चोट लगे और जरूरी अंग बचे रहें.

इस बारे में लंबे समय से चले आ रहे दूसरे सिद्धांत में माना जाता है कि चेहरे के आकार में बदलाव खानपान की आदतों में बदलाव के कारण आए. जबड़े इस तरह विकसित हुए जो अखरोट और उस जैसी कड़ी चीजों को भी चबा सकें. अब सामने आए इस नए सिद्धांत के बारे में जीवविज्ञानी डेविड करियर कहते हैं, "लड़ाई में आई चोटों के विश्लेषण से साफ पता चलता है कि आधुनिक मनुष्य जब भी लड़ाई करता है तो उसका सीधा निशाना विरोधी का चेहरा होता है." करियर बताते हैं कि चेहरे की खतरनाक जगहों वाली विकास के क्रम में धीरे धीरे मजबूत हो गईं. यह प्रक्रिया दो पैरों पर चलने वाले ऑस्ट्रालोपिथेकस नाम के बंदरों से शुरू हुई.

Südafrika Urmenschen Hominide Australopithecine Schädel
विकास के क्रम में जबड़े छोटे लेकिन मजबूत होते चले गएतस्वीर: YOAV LEMMER/AFP/Getty Images

अगर प्राचीन मानव पूर्वजों और आधुनिक मानवों की तुलना की जाए तो यह वही हड्डियां हैं, जिनमें महिलाओं और पुरुषों में सबसे ज्यादा अंतर भी दिखता है. बंदरों और इंसानों, दोनों में मादाओं के मुकाबले नर ज्यादा हिंसक रहे हैं. करियर का कहना है कि उनकी हिंसा भी ज्यादातर दूसरे नरों के प्रति रही है. मादाओं, संसाधनों और दूसरे विवादों को सुलझाने के लिए नर आपस में घूंसे चलाया करते होंगे जिसके कारण चेहरे की संरचना ज्यादा मजबूत होती चली गई.

ऑस्ट्रालोपिथेकस से ही आगे चल कर आज से करीब 40 लाख साल पहले अफ्रीका में 'होमो' नाम का वंश बना. ऑस्ट्रालोपिथेकस दो पैरों पर चलने वाले और आज के मानव से छोटे और बंदरों और मानवों के मिलेजुले लक्षणों वाले जीव थे. करियर बताते हैं, "ऑस्ट्रालोपिथेकस, वनमानुषों और गुरिल्लाओं की तुलना करें तो हम पाते हैं कि उनके जबड़ों की लंबाई काफी कम हो गई और साथ ही जबड़े, पीछे के चार दांत और जबड़े की मांसपेशियां काफी मजबूत हो गईं. गाल की हड्डियों और आंखों के आस पास की हड्डियों के आकार और मजबूती में भी बढ़ोतरी हुई." शोधकर्ताओं ने पाया है कि 40-50 लाख साल पहले जब ऑस्ट्रालोपिथेकस नाम के बंदरों ने दो पैरों पर चलने की शुरुआत की, लगभग उसी समय से चेहरे में ज्यादा मजबूती और हाथों का इस तरह विकास शुरू हुआ कि मजबूत मुट्ठी बंध सके.

आरआर/एजेए (रॉयटर्स)