हड़ताल से बेहाल जर्मनी
जर्मनी में लुफ्थांसा के पायलटों की हड़ताल की वजह से लंबी दूरी की हजारों उड़ानें प्रभावित हुईं हैं. ट्रेन के ड्राइवर भी इसी तरह से हड़ताल कर चुके हैं.
आठवीं हड़ताल
सोमवार दोपहर से लुफ्थांसा के पायलटों की हड़ताल शुरू हुई. 35 घंटे की हड़ताल की वजह से जहां लाखों लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है वहीं देश की अर्थव्यवस्था पर भी इसके बुरे परिणाम पड़ सकते हैं. इस साल पायलटों की यह आठवीं हड़ताल हैं.
लाखों यात्री प्रभावित
लुफ्थांसा का कहना है कि हड़ताल की वजह से वह जर्मनी और यूरोपियन नेटवर्क में 1,400 उड़ानें संचालित नहीं कर पाई, इस कारण दो लाख यात्रियों को परेशानियों का सामना करना पड़ा.
क्या है मांग?
जर्मन ट्रेड यूनियन 'कॉकपिट' की मांग है कि जल्दी सेवानिवृत्ति योजना को बनाए रखा जाए. लुफ्थांसा के पायलटों के पास यह विकल्प है कि वे 55 साल की उम्र में रिटायरमेंट ले कर बाकी के साल 60 फीसदी वेतन ले सकते हैं. लुफ्थांसा इस उम्र को बढ़ा कर 60 कर देना चाहती है.
अर्थव्यवस्था पर बुरा असर
परिवहन मंत्री आलेक्सांडर डोब्रिंट ने अखबार बिल्ड से बातचीत में कहा कि बार बार होने वाली हड़ताल अर्थव्यवस्था को मार रही है. डोब्रिंट ने कहा, "हमारा परिवहन सेक्टर देश का केंद्रीय तंत्रिका तंत्र है. लंबी चलने वाली हड़तालों से अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान होगा."
ट्रेन के ड्राइवरों की हड़ताल
इससे पहले जर्मनी में रेल सेवा देने वाली कंपनी डॉयचे बान के ड्राइवर शनिवार से रविवार तक हड़ताल पर थे. ड्राइवरों की हड़ताल की वजह से उपनगरीय रेल सेवा पर सबसे ज्यादा असर हुआ और दो तिहाई लंबी दूरी की रेल सेवा प्रभावित हुईं. दो हफ्तों के भीतर ड्राइवरों की यह तीसरी हड़ताल थी.
बसों को फायदा
लगातार एक बाद एक ट्रेनों की हड़ताल के कारण बड़ा फायदा बसों को हुआ. कम दूरी पर जाने वाले यात्रियों ने हड़ताल के दौरान बसों का सहारा लिया.
रेलवे को बड़ा घाटा
सामान्य दिनों में डॉयचे बान में 60 लाख यात्री सफर करते हैं. कंपनी का कहना है कि हड़ताल की वजह से उसे यात्री भाड़ा और फंसे हुए यात्रियों को सुविधा देने में लाखों यूरों का नुकसान हुआ.