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सरहद का सियासी टकराव

१९ दिसम्बर २०१४

भारत की सीमा पर किसी खतरे की बात होती है तो पाकिस्तान और चीन का नाम आता है. अब इसमें चाहे अनचाहे और जाने अनजाने बांग्लादेश का नाम भी जुड़ गया है. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार ने पूर्वी सीमा पर भी बाड़ लगाने को कहा है.

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तस्वीर: DIPTENDU DUTTA/AFP/Getty Images

भारत की सरहद में घुसपैठ के मामले पर पाकिस्तान और चीन के साथ बांग्लादेश की तुलना नहीं की जा सकती है. यही वजह है कि अब तक बांग्लादेश से जुड़ी सीमा पर चौकसी के तंत्र में पाकिस्तान और चीन जैसी खुफिया एवं सैन्य नीति नहीं अपनाई जाती है. घुसपैठ की प्रवृत्ति में यह भेद अब धीरे धीरे मिटने लगा है और इसी कारण से भारत को बांग्लादेश से सटी पांच राज्यों की सीमा पर नक्सली हिंसा से निपटने की तरह ही पूरे बॉर्डर पर अपनी सुरक्षा नीति को अपनाना पड़ रहा है.

दरअसल अब तक बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ में आतंक का तत्व शामिल नहीं था. घुसपैठ के जरिए बदहाल अर्थव्यवस्था से परेशान तंगहाल लोग काम की तलाश में भारत आते हैं. इनका दायरा असम और बंगाल ही नहीं बल्कि बिहार और उत्तर प्रदेश से लेकर राजधानी दिल्ली तक फैल गया है. इनकी घुसपैठ को सिर्फ भारत में बढ़ते अपराध के नजरिए से ही सुरक्षा एजेंसियां देखती थीं.

आतंकी खतरा

मगर बीते कुछ सालों में भारतीय सुरक्षा एजेंसियां बांग्लादेशी घुसपैठियों को भी इस्लामिक दहशतगर्दी के चश्मे से देखने के लिए मजबूर हुई हैं. खासकर बीते अक्टूबर में वर्धमान में हुए विस्फोट में बांग्लादेश के कट्टरपंथी संगठन जमातुल मुजाहिद्दीन बांग्लादेश के दो सदस्यों के मारे जाने की पुष्टि के बाद भारत को अपनी नीति में आतंकी खतरे को शामिल करना पड़ा है. यह खतरा बीते कुछ सालों से बरकरार था मगर भारत में हुकूमत बदलने के बाद यह बदलाव अब सियासत से लेकर सरहद तक साफ तौर पर देखा जा सकता है.

अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी दखल दिया है. बांग्लादेश के राष्ट्रपति अब्दुल हमीद की भारत यात्रा से महज 48 घंटे पहले सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार को बांग्लादेश से जुड़ी समूची सीमा पर कश्मीर और राजस्थान की तरह ही बाड़ लगाने को कहा है. अदालत का यह आदेश मोदी सरकार को बांग्लादेशी राष्ट्रप्रमुख के समक्ष आतंकवाद के खतरे को बढ़ाने वाली घुसपैठ का मुद्दा मजबूती से उठाने का आधार प्रदान करती है.

सुरक्षा के लिए बाड़

जहां तक इस आदेश की पृष्ठभूमि का सवाल है तो इसके पीछे भी जनहित का मसला है. दरअसल असम के कुछ आदिवासी समूहों ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर बांग्लादेशी घुसपैठ के कारण उनके पर्यावास को हो रहे भारी नुकसान का मुद्दा उठाया था. याचिका में घुसपैठियों के कारण उनकी भाषा और परंपराओं के साथ हो रहे अत्याचार की शिकायत की गई. अदालत ने इस पर त्वरित संज्ञान लेते हुए सरकार से घुसपैठ से प्रभावित सभी पांचों राज्यों में कटीले तारों की बाड़ लगाने को कहा.

बीते दो सालों में बांग्लादेशी घुसपैठ के कारण इन इलाकों में जातीय, धार्मिक और सामुदायिक दंगा फसाद की वारदातें बढ़ी हैं और इसके कारण सेना और अर्द्धसैनिक बलों की खासी किरकिरी हो चुकी है. अदालत ने बीएसएफ की उस रिपोर्ट पर चिंता जताई है जिसमें हर साल तीन से चार हजार घुसपैठिए सीमावर्ती इलाकों से पकड़े जाने की बात स्वीकार की गई है. अदालत से सरकार को ऐसे में किसी भी तरह की कोताही न बरतते हुए सीमा पर चौकसी बढ़ाने और इस मसले का त्वरित समाधान निकालने को कहा है.

अदालत के इस आदेश का कूटनीतिक महत्व भी कम नहीं है. सरकार अब देश की सर्वोच्च अदालत के इस आदेश का पालन कराने की मजबूरी का हवाला देकर बांग्लादेश से मनमाफिक द्विपक्षीय सहयोग का करार करने की पहल कर सकती है. साथ ही मोदी सरकार इस प्रक्रिया को सांप्रदायिक चश्मे से न देखने का संदेश देश और देश के बाहर आसानी से दे सकती है.

ब्लॉग: निर्मल यादव