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सब्सिडी पर रुख बदले भारत

३० जुलाई २०१४

अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी भारत के लिए रवाना हो रहे हैं. उन्होंने भारतीय नेताओं से कहा है कि वह खाद्यान्न सब्सिडी को खत्म करे और डब्ल्यूटीओ के नए समझौते पर हस्ताक्षर करे. भारत इस बात से लगातार इनकार करता आया है.

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तस्वीर: REUTERS

केरी ने यह बात एक लेख में कही. इसे उन्होंने अमेरिकी वाणिज्य मंत्री पेनी प्रित्सकर के साथ लिखा है और यह लेख एक अखबार में छपा है. भारत पिछले कई सालों से विश्व व्यापार संगठन डब्ल्यूटीओ की खाद्यान्न उत्पादन और सब्सिडी को लेकर शर्तों का विरोध कर रहा है. पश्चिमी देश कहते हैं कि इससे वैश्विक स्तर पर आर्थिक बदलाव करने में दिक्कत आई है.

भारत ने कहा है कि डब्ल्यूटीओ की शर्तें तभी मानी जा सकती हैं जब विकासशील देशों को खाद्यान्न जमा करने और उसमें सब्सिडी देने की आजादी होगी. भारत का कहना है कि उसको अनाज की कमी का खतरा है और इसलिए उसे किसानों को सब्सिडी देना पड़ता है. भारत का तर्क है कि उसे दुनिया के 25 प्रतिशत गरीब लोगों को खाना खिलाना है और यह बिना सब्सिडी और खाद्यान्न जमा करने के नहीं हो सकता.

Protest indischer Bauern gegen die WTO
तस्वीर: Raveendran/AFP/Getty Images

वर्तमान नियमों के मुताबिक विकासशील देशों में किसानों को 1986-1988 की कीमतों का सिर्फ 10 प्रतिशत सब्सिडी देने की छूट है. डब्ल्यूटीओ के नए समझौते के लिए गुरुवार तक का वक्त है और इससे उसके सदस्यों को 1000 अरब डॉलर तक का फायदा हो सकता है. अमेरिकी विदेश मंत्री केरी कहते हैं कि भारत अगर व्यापार में अड़ंगे लगाना बंद कर दे तो उसे फायदा होगा.

लेकिन भारतीय सरकारी अधिकारियों का कहना है डब्ल्यूटीओ के मामले को लेकर भारत सरकार और कड़ा रुख अपनाएगी. 1960 के दशक में भारत को विदेशी और खास कर अमेरिकी खाद्य सहारे की जरूरत पड़ी. तब से लेकर अब तक भारत ने खाद्य सुरक्षा पर अतिरिक्त ध्यान दिया है. किसानों को गेहूं और चावल के बीज कम दाम पर मिलते हैं और सरकार खाद्यान्न को जमा भी करता है. पिछले सालों में जमा हुए खाद्यान्न की मात्रा बहुत ज्यादा हो गई लेकिन अधिकारियों का कहना है कि भारत को खाद्यान्न के सिलसिले में आत्मनिर्भर होना होगा क्योंकि भारत की जनसंख्या के लिए खाद्यान्न उपलब्ध कराना आसान बात नहीं है.

एमजी/एजेए (एएफपी, रॉयटर्स)