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संबंधों की नई शुरुआत का मौका हनोवर

१२ अप्रैल २०१५

हनोवर उद्योग मेले में भारत पार्टनर देश है. प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी पहली बार जर्मनी के राजनेताओं और उद्योग जगत के नेताओं से मिल रहे हैं. महेश झा कहते हैं कि हनोवर संबंधों की नई शुरुआत का मौका है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

औद्योगिक इतिहासकार बताएंगे कि जब दूसरे विश्व युद्ध के तुरंत बाद 1947 में पहला हनोवर मेला लगा तो शहर ने मेहमानों के लिए 25 नई टैक्सियां खरीदी, रेलवे ने 13 विशेष गाड़ियां चलाईं और अनुवादकों ने फटाफट कारोबार की भाषा सीखी. देश के छोटे से शहर में उद्योग मेला लगाने की मेहनत रंग लाई, उस साल निर्यात के करीब 2000 करार हुए. इस बीच हनोवर मेला मशीन जगत में नए आविष्कारों को दिखाने की जगह है, कारोबार करने की जगह है. संचार क्रांति और परिवहन के आसान हो जाने के बावजूद तकनीक की हर बड़ी कंपनी यहां होना पसंद करती है, जर्मन कंपनियां तो होती ही हैं. उन्हें कामयाबी का चस्का लगा है. 1960 में यहां पहली अल्ट्रासाउंड वेल्डिंग मशीन आई, 1980 में पहली इलेक्ट्रिक टाइपराइटर और 1999 में 5 मेगावॉट की पवन बिजली.

तेजी से बदली दुनिया में अस्तित्व का संकट हनोवर मेला भी झेल रहा है. औद्योगिक विकास तकनीकी आधारित हो गया है. नए ट्रेंड हनोवर से नहीं बल्कि सिलिकन वैली से आ रहे हैं. हनोवर मेले का भी स्वरूप बदल रहा है. मशीन में डिजीटल का महत्व बढ़ रहा है. 2011 में उसे इंडस्ट्री 4.0 का शब्द निकाला. ऐज फोर औद्योगिक क्रांति हकीकत है. इंसानी नेटवर्किंग के बाद भविष्य मशीनी नेटवर्किंग का है. जर्मन कंपनियां इस राह पर काफी आगे चल रही हैं. हनोवर इस बार भारत को इंडस्ट्री 4.0 में जर्मनी के साथ साझेदारी बढ़ाने का मौका देगा.

Hannover Messe Partnerland Indien Bundeskanzlerin Angela Merkel, rechts, geht waehrend ihres Eröffnungsrundgang am Montag, 24. April 2006, auf der Hannover Messe in Hannover
2006 में हनोवर मेले में चांसलरतस्वीर: AP

हनोवर मेले का इस्तेमाल पार्टनर देश अपने यहां आर्थिक विकास में एकदम ताजा तकनीकी का इस्तेमाल करने और खुद तकनीकी विकास में भागीदार बनने के लिए करते रहे हैं. भारत 2006 में भी हनोवर में पार्टनर देश रह चुका है, लेकिन कुछ ही महीनों के बाद पैदा हुए वित्तीय संकट के कारण उसका लाभ नहीं उठा पाया. इस बार फिर मौका है. रूस, ब्राजील और चीन में विकास की संभावनाओं के घटने के बाद जर्मनी की निगाहें भारत पर हैं. उसे भारत के बाजार के अलावा भारत की प्रतिभाएं भी चाहिए. भारत को भी लंबे समय के आर्थिक स्थगन के बाद जर्मनी की जरूरत है, निवेश की और नई तकनीकी की.

हनोवर मेला दोनों देशों को एक दूसरे का पूरक बनने, विकास के सफर में साथ चलने और एक दूसरे का हाथ पकड़ने का मौका देता है. इस मौके को पकड़ना होगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चांसलर अंगेला मैर्केल से बात होगी. लेकिन सिर्फ राजनीतिक स्तर पर ही नहीं भारत और जर्मनी को हर स्तर करीब आने की जरूरत है. हनोवर उद्योग मेला प्रयासों की सफलता की कहानी है, वह भारत जर्मन संबंधों की नई शुरुआत बन सकता है.