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वैदिक सईद मुलाकात के सवाल

१७ जुलाई २०१४

भारतीय पत्रकार वेदप्रताप वैदिक के जमात उद दावा के प्रमुख हाफिज सईद से मुलाकात ने ऐसा विवाद छेड़ा है जो खत्म होता नजर नहीं आ रहा. इसके साथ ही पत्रकारिता, राजनीति और विदेश नीति से जुड़े कुछ मुद्दों पर भी चर्चा शुरू हो गई है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

वेदप्रताप वैदिक एक प्रतिनिधिमंडल के सदस्य के रूप में पाकिस्तान गए थे. कार्यक्रम समाप्त होने पर प्रतिनिधिमंडल के अन्य सदस्य, जिनमें पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद और पूर्व केन्द्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर भी शामिल थे, भारत लौट आए लेकिन वैदिक वहीं टिके रहे. उनका कहना है कि एक पाकिस्तानी पत्रकार के साथ बातचीत के दौरान भारतीय मीडिया में हाफिज सईद के बारे में नकारात्मक रिपोर्टिंग होने की बात उठी तो उस पत्रकार ने उनसे पूछा कि क्या वे हाफिज सईद से मिलना चाहेंगे? उनके हां कहने पर उसने तत्काल फोन करके उनकी मुलाकात तय करा दी. यह मुलाकात इस माह के शुरू में हाफिज सईद के घर पर हुई. वैदिक का यह दावा भी है कि उनके तर्कों के कारण हाफिज सईद का हृदय परिवर्तन हो गया और यह पूछे जाने पर कि यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पाकिस्तान आए तो क्या उनका संगठन उनका विरोध करेगा, हाफिज सईद ने कहा वे तहेदिल से उनका स्वागत करेंगे.

सभी जानते हैं कि हाफिज सईद के सिर पर अमेरिका ने एक करोड़ डॉलर का इनाम रखा हुआ है. उनके संगठन जमात उद दावा को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, भारत, अमेरिका, यूरोपीय संघ, रूस, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने आतंकवादी संगठन घोषित किया हुआ है. भारत का कहना है कि उसके पास इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि मुंबई में 26 नवम्बर 2008 को पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा किए गए हमलों की साजिश भी उनके इशारे पर जमात उद दावा के तहत काम करने वाले संगठन लश्कर-ए-तैयबा द्वारा रची गई थी. ऐसे व्यक्ति के साथ मुलाकात का क्या उद्देश्य था?

वैदिक का कहना है कि एक पत्रकार के रूप वे किसी से भी मिल सकते हैं. लेकिन प्रश्न यह है कि क्या वह एक पत्रकार के रूप में हाफिज सईद से मिले थे? यदि हां, तो यह इंटरव्यू, जिसका धमाका दूर दूर तक होता, आज तक भी कहीं क्यों नहीं छपा? क्यों केवल हाफिज सईद और वैदिक का एक फोटो ही छपा है जिसमें किसी तरह की नोटबुक या रिकॉर्डर नजर नहीं आ रहे. विवाद इसलिए भी छिड़ा क्योंकि वैदिक बाबा रामदेव के निकट सहयोगी हैं और रामदेव ने लोकसभा चुनाव में खुलकर मोदी का समर्थन किया था. यदि मनमोहन सिंह की सरकार के कार्यकाल में कोई कांग्रेस से नजदीकी रखने वाला पत्रकार हाफिज सईद से मिल आता, तो भारतीय जनता पार्टी ने तूफान खड़ा कर दिया होता. लेकिन शुरू के तीन दिन वह केवल अपने को वैदिक से अलग करने के अलावा इस मुलाकात की भर्त्सना तक नहीं कर पाई. अंततः विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को राज्यसभा में बयान देते हुए इसकी भर्त्सना करनी पड़ी. भाजपा की सहयोगी पार्टी शिव सेना ने वेदप्रताप वैदिक पर देशद्रोह का मुकदमा चलाये जाने की मांग की है. उधर वाराणसी में एक व्यक्ति ने उनके खिलाफ मुकदमा कर दिया है.

हाफिज सईद पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई द्वारा संरक्षित हैं. वे किले जैसे परिसर में रहते हैं जहां उन्हें सरकार और उनके समर्थक चौबीस घंटे जबर्दस्त सुरक्षा में रखते हैं. यह मानना मुश्किल है कि हाफिज सईद जैसे शीर्ष आतंकवादी नेता के साथ वैदिक की मुलाकात सेना और आईएसआई की सहमति के बिना हुई होगी. वैदिक का यह दावा तो और भी अविश्वसनीय और हास्यास्पद है कि उनकी बातों का हाफिज सईद पर इतना असर पड़ा कि उनका दिल बदल गया और उसमें से नरेंद्र मोदी और भारत के प्रति नफरत निकल गई. उनका यह भी दावा है कि पाकिस्तान स्थित भारतीय उच्चायोग को सईद के साथ उनकी मुलाकात के बारे में जानकारी थी, जबकि उच्चायोग ने इस बारे में अपनी अनभिज्ञता प्रकट की है.

इस प्रकरण में यह सवाल उभरा है कि क्या पत्रकार हर समय पत्रकार है, या उसी समय है जब वह पत्रकार की भूमिका निभा रहा है? क्या वैदिक की हाफिज सईद से मुलाकात एक पत्रकार की आतंकवादी के साथ मुलाकात कही जा सकती है, वह भी तब जब इस मुलाकात का विवरण कहीं नहीं छपना था. यह भी सवाल उठा है कि भारतीय खुफिया एजेंसियों को क्या इस मुलाकात के बारे में कुछ भी पता नहीं चल पाया? और यदि पता चला, तो वैदिक के स्वदेश वापस आने के बाद उनसे पूछताछ क्यों नहीं की गई? अब खबर है कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी उनसे पूछताछ करेगी?

वेदप्रताप वैदिक ने इस बात से इनकार किया है कि वह सरकार के द्वारा भेजे गए थे. लेकिन लोगों को संदेह है कि शायद सरकार पर्दे के पीछे चलने वाली ट्रैक 2 कूटनीति के तहत ऐसे कदम उठा रही है. जो भी हो, अनेक प्रश्न अनुत्तरित हैं. सबसे बड़ा तो यही है कि क्या पत्रकारों को गैर पत्रकार की भूमिका में आना चाहिए?

ब्लॉग: कुलदीप कुमार

संपादन: महेश झा