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लोकतंत्र की भावना के खिलाफ अध्यादेश राज

२५ जनवरी २०१५

मोदी सरकार को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की पहली नसीहत मिल चुकी है. राष्ट्रपति ने सामान्य परिस्थितियों में अध्यादेश जारी करने से बचने को कहा था और याद दिलाया कि यह संविधान द्वारा सरकार को मिले विशेषाधिकार का दुरुपयोग होगा.

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तस्वीर: UNI

संविधान का अनुच्छेद 123 राष्ट्रपति को किसी भी विषय पर अध्यादेश जारी करने का विशेषाधिकार देता है. लेकिन भारत का राष्ट्रपति अपने किसी भी अधिकार का प्रयोग स्वेच्छा से नहीं कर सकता. अनुच्छेद 74 इस बात की साफ ताकीद करता है कि राष्ट्रपति की सहायतार्थ एक मंत्रिपरिषद होगी जिसका मुखिया प्रधानमंत्री होगा और राष्ट्रपति इसकी सलाह से ही हर काम करेगा. मतलब साफ है कि संविधान में शक्ति पृथक्करण के सिद्धांत का अक्षरशः पालन करते हुए इस बात की पुख्ता व्यवस्था की गई है कि राष्ट्रपति से लेकर मंत्रिपरिषद और सेना एवं न्यायपालिका तक कोई भी घटक निरंकुश न होने पाए.

हाल ही में मोदी सरकार द्वारा ताबड़तोड़ तरीके से पारित किए गए अध्यादेशों को राष्ट्रपति मुखर्जी ने इसी परिप्रेक्ष्य में देखा है. अनुच्छेद 123 में बिना किसी भ्रम के साफ कहा गया है कि राष्ट्रपति ऐसे समय में अध्यादेश पारित कर सकते हैं जब संसद सत्र में न हो लेकिन विषय इतना गंभीर और अनिवार्य होना चाहिए जिसे संसद के सत्र में आने तक टाला न जा सके. मगर जिस तरह से सरकार ने भूमि अधिग्रहण पर अध्यादेश जारी किया है उससे साफ है कि सरकार के सामने सिर्फ संसद में बहस से बचने के अलावा कोई दूसरा मकसद नहीं था. इस स्पष्ट मंतव्य को भांप कर ही राष्ट्रपति ने अध्यादेश पर मंजूरी की मुहर तो लगा दी लेकिन साथ में नसीहत भरा संदेश भी सरकार को दे दिया.

कानूनविदों की राय में सुप्रीम कोर्ट भी अपने कई महत्वपूर्ण फैसलों में सरकारों को ऐसी मंशा से बचते हुए अनुच्छेद 123 का उपयोग करने की हिदायत दे चुका है. एसपी गुप्ता के मामले में सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि सरकार राष्ट्रपति के इस विशेषाधिकार को हथियार बनाकर इस्तेमाल नहीं कर सकती है. इतना ही नहीं अदालत ने अनुच्छेद 123 को आपात उपबंधों के समतुल्य बताते हुए सरकार को इसका इस्तेमाल करने से पहले इसकी मूल भावना का पालन सुनिश्चित करने संबंधी सभी पहलुओं पर ध्यान देने की भी साफ ताकीद की थी.

कानून से इतर अगर व्यवहारिक नजरिए से देखा जाए तो भारत में सरकारों का कोई भी फैसला गैरराजनीतिक होना मुमकिन नहीं है. सरकार सिर्फ सियासी चश्मे से ही अपने हर फैसले की गंभीरता को आंकती है. खासकर आजाद भारत में सिर्फ एक बार लगाए गए आपातकाल के फैसले को भी कोई गैरराजनीतिक नहीं मान सकता. ऐसे में अनुच्छेद 123 के दुरुपयोग की फेहरिस्त लंबी होना लाजिमी है.

जहां तक राष्ट्रपति मुखर्जी की नसीहत का सवाल है तो इसमें कोई शक नहीं है कि उन्होंने संविधान की भावना के अनुरुप ही अपना पक्ष रखा है. भूमि अधिग्रहण जैसे संवेदनशील मुद्दे पर सरकार की जल्दबाजी उसकी मंशा पर सवाल खड़े करती है. साथ ही राष्ट्रपति की नसीहत में मोदी सरकार को अपने सियासी हित साधने के लिए संवैधानिक शक्तियों के अनुचित इस्तेमाल से बचने का संदेश भी छुपा है जो किसी भी सरकार को निरंकुश होने से बचाने के लिए निहायत जरुरी है.

ब्लॉग: निर्मल यादव