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लैंगिक बराबरी में भारत पिछड़ा

२८ अक्टूबर २०१४

विकास के सारे वादों के बावजूद भारत में महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है. ताजा अंतरराष्ट्रीय सर्वे में सामने आया है कि भारत की महिलाएं दुनिया में सबसे ज्यादा भेदभाव झेल रही हैं.

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तस्वीर: imago/Xinhua

142 देशों में कराए गए एक सर्वे के अनुसार भारत की महिलाएं पिछले सालों के आर्थिक विकास के बावजूद स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा और काम के मामले में दुनिया में सबसे ज्यादा विषमता की शिकार हैं.

जेनेवा स्थित वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम के वार्षिक जेंडर गैप इंडेक्स के अनुसार भारत 142 देशों की सूची में 13 स्थान गिरकर 114 वें नंबर पर पहुंच गया है. पिछले साल वह 136 देशों की सूची में 101वें स्थान पर था. नई सूची में ब्राजील 71वें और चीन 87वें नंबर पर है.

पुरुषों और महिलाओं के बीच बराबरी को बढ़ावा देने वाले देशों में पिछले कई सालों की तरह अभी भी स्कैंडेनेविया के देश आइसलैंड, फिनलैंड, नॉर्वे, स्वीडन और डेनमार्क चोटी पर हैं. अमेरिका की स्थिति बेहतर हुई है और वह तीन पायदान चढ़कर 20वें नंबर पर पहुंच गया है. इसकी वजह पुरुषों और महिलाओं की तनख्वाह में अंतर का कम होना और राजनीतिक पदों पर अधिक महिलाओं की नियुक्ति है.

वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम के संस्थापक और कार्यकारी निदेशक क्लाउस श्वाब ने एक बयान में कहा है, "आर्थिक वजहों से लैंगिक समानता हासिल करना जरूरी है. सिर्फ वे अर्थव्यवस्थाएं जिनकी अपनी सभी प्रतिभाओं तक पहुंच है, प्रतिस्पर्धात्मक रह सकती है और प्रगति कर सकती हैं."

यमन, पाकिस्तान और चैड इस सूची में निचले स्थानों पर हैं. लैंगिक विषमताओं की यह सूची चार इलाकों में सरकारों द्वारा दी जाने वाली सूचनाओं के आधार पर तैयार की जाती हैं. ये हैं, स्वास्थ्य और जीवन दर, शिक्षा की संभावना, आर्थिक मौके और राजनीतिक भागीदारी.

महिलाओं की राजनीतिक हिस्सेदारी के मामले में भारत प्रभावशाली 15वें स्थान पर है. वहां बहुत सारी महिलाओं सार्वजनिक पदों पर हैं. लेकिन आय, शिक्षा, श्रम बाजार में भागीदारी और बाल मृत्यु दर के मामले में वह अंतिम 20 देशों में शामिल है. भारतीय मतदाताओं ने इस साल हुए चुनावों में न्यायोचित समाज बनाने आर्थिक विकास का वादा करने वाले नरेंद्र मोदी को भारी बहुमत से जिताया है. एक दशक तक करीब 80 प्रतिशत की विकास दर के बाद पिछले सालों में भारत की आर्थिक विकास दर गिरकर 5 प्रतिशत से भी कम हो गई थी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक रूप से महिलाओं पर होने वाले बलात्कार और हिंसा के खिलाफ आवाज उठाई है जिससे महिलाओं की समस्याओं पर दशकों की राजनीतिक सुस्ती के बाद बदलाव की उम्मीद जगी है. भारत में महिलाएं बलात्कार और शारीरिक शोषण के अलावा गर्भावस्था के दौरान मौत और कन्या भ्रूण की हत्या की शिकार होती हैं. लैंगिक विषमता सूची में भारत स्वास्थ्य सुविधाओं और जीवन दर के मामले में अर्मेनिया से पहले अंतिम स्थान पर है.

मोदी सरकार नवंबर में गर्भवती महिलाओं का स्वास्थ्य सुधारने और लड़कियों के सशक्तिकरण के लिए एक कार्यक्रम की घोषणा करेगी. भारत में महिलाओं और पुरुषों का अनुपात आजादी के बाद से सबसे निचले स्तर पर गिर गया है. इस समय यहां प्रति 1000 लड़के पर सिर्फ 918 लड़कियां हैं. जन्म से पहले बच्चे का लिंग बताने पर भारत में प्रतिबंध है ताकि बेटा चाहने वाले समाज में कन्या भ्रूण का गर्भपात न कराया जा सके.

सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की निदेशक रंजना कुमारी का कहना है कि अब तक प्रधानमंत्री मोदी का इरादा अच्छा लगता है लेकिन कुछ कहना जल्दबाजी होगी. उनका कहना है कि ऐसे और प्रयासों की जरूरत है जिसमें राष्ट्र की समृद्धि का महिलाओं और गरीबों को दिए जाने की गारंटी हो. वे कहती हैं, "लाभ स्वाभाविक रूप से नीचे तक नहीं पहुंच रहा. भारत को इसके लिए कानून बनाने की जरूरत है."

एमजे/एएम (एपी)