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"कूद में फायदेमंद कृत्रिम पैर"

३० जुलाई २०१४

जर्मन चैंपियनशिप में मार्कुस रेम ने लंबी कूद मुकाबला जीत लिया लेकिन उनके कृत्रिम पैर पर विवाद हो गया है. आलोचकों का कहना है कि ये पैर विकलांग खिलाड़ियों की इतनी मदद करता है कि आम खिलाड़ी पीछे छूट जाते हैं.

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Markus Rehm
तस्वीर: picture alliance/dpa

मार्कुस रेम की जीत पर हो रहे विवाद पर डॉयचे वेले ने बायोमैकेनिक्स और हड्डी रोग विशेषज्ञ श्टेफान विलवाखर से बात की. कोलोन स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी के डॉक्टोरल छात्र विलवाखर के मुताबिक खेलों में कृत्रिम अंगों के इस्तेमाल पर बहुत कम वैज्ञानिक शोध हुआ है. वह शारीरिक हलचल का ऊर्जा से संबंध और कृत्रिम अंगों का इस्तेमाल करने वाले विकलांगों में गतिज ऊर्जा संचार पर शोध कर चुके हैं.

डॉयचे वेले: उल्म में जर्मन चैंपियनशिप में मार्कुस रेम की सनसनीखेज जीत ने तीखी बहस शुरू कर दी है. कई लोग सवाल कर रहे हैं कि क्या प्रोस्थेसिस (कृत्रिम पैर) की वजह से ही मार्कुस रेम इतनी दूर तक कूद पाए?

श्टेफान विलवाखर: विज्ञान अभी इस सवाल का जवाब नहीं दे सकता क्योंकि "कृत्रिम पैर से लंबी कूद" पर कोई वैज्ञानिक शोध हुआ ही नहीं है. उल्म के मुकाबलों के नतीजों के आधार पर हम शोध कर रहे हैं. शुरुआती जांच बहुत ही उलझी हुई है. कृत्रिम पैरों वाले खिलाड़ियों के मूवमेंट की तुलना हमें कई मानकों पर सामान्य खिलाड़ियों से करनी होगी.

Sportwissenschaftler Steffen Willwacher SpoHo Köln
श्टेफान विलवाखरतस्वीर: privat

आलोचक कह रहे हैं कि रेम के प्रोस्थेसिस ने उन्हें फायदा पहुंचाया. कब प्रोस्थेसिस मददगार बन जाता है?

सैद्धांतिक तौर पर देखा जाए तो लंबी कूद में प्रोस्थेसिस फायदा पहुंचाता है. उदाहरण के लिए अगर वो दौड़ने के दौरान पैदा हुई गतिज ऊर्जा को अच्छे से छलांग में बदल दे. असली पैरों वाले खिलाड़ी कूदने से पहले जब दौड़ते हैं तो ऊर्जा का नुकसान भी होता है. ऊर्जा जोड़ों, लिगमेंट और मांसपेशियों तक फैलती है. अगर कृत्रिम पैर की वजह से ऊर्जा का नुकसान कम हो, तो इसका मतलब है फायदा होगा.

बायोमैकेनिक्स ने उल्म की प्रतियोगिताओं के दौरान आंकड़े जमा किए हैं ताकि रेम की दूसरों से तुलना हो सके. ऐसी तुलना में किन किन बातों पर नजर डाली जाती है?

इस पर अभी ज्यादा रिसर्च नहीं हुई है. यह अहम है कि दोनों तरह के खिलाड़ी एक जैसी शारीरिक हलचल करें, तब आप आसानी से उनकी तुलना कर सकते हैं. फिर यह देखा जाता है कि कौन सा मूवमेंट कितनी देर तक रहा, हर जोड़ में कितनी ऊर्जा है, जैसे एड़ी में, घुटने या कूल्हे को जोड़ों में. इसके बाद आप देखते हैं कि क्या मूवमेंट समान है या नहीं. उल्म में हो रही रिसर्च इसका पता लगाने के लिए बहुत सटीक नहीं है.

मुकाबले में मार्कुस रेम के साथ कृत्रिम पैर वाले दूसरे खिलाड़ी भी थे, लेकिन वो रेम के आस पास भी नहीं पहुंचे. क्या रेम अच्छे खिलाड़ी हैं या फिर उनके पास बेहतर कृत्रिम पैर है?

मुझे नहीं लगता कि उनके पास बेहतर नकली पैर हैं. जो कार्बन फाइबर वो इस्तेमाल कर रहे हैं वो हर किसी की पहुंच में है. नकली पैर लगाने का काम अनुभवी हड्डी विशेषज्ञ करता है. मुझे लगता है कि दूसरे विकलांग खिलाड़ियों के मुकाबले वो बेहतर खिलाड़ी हैं, वो पेशेवर माहौल में ट्रेनिंग करते हैं, यह उनके प्रदर्शन में दिखता है.

क्या आप यूरोपिय चैंपियनशिप में सामान्य खिलाड़ियों की जगह रेम की भागीदारी का समर्थन करेंगे?

पहले यह तय करना जरूरी है कि यह मुद्दा है या नहीं. अगर तुलनात्मक बायोमैकेनिकल विश्लेषण में रेम और सामान्य पैरों वाले खिलाड़ियों के मूवमेंट समान मिलते हैं तो मैं उनका समर्थन करूंगा.

कुछ और वैज्ञानिक शोधों में यह बात साफ हो चुकी है कि नकली पैर के प्रदर्शन को घटाया बढ़ाया जा सकता है, जबकि असली पैरों में हड्डियों, जोड़ों, मांसपेशियों का एक जटिल तंत्र हैं, जिसके चलते बहुत ज्यादा सुधार की गुंजाइश नहीं बचती. दूसरी तरफ इस बहस का एक मानवीय पहलू भी है. बड़े मुकाबलों में नकली अंगों के सहारे उतरने वाला खिलाड़ी न सिर्फ सामान्य खिलाड़ियों को, बल्कि विकलांगता को भी चुनौती देता है और इस जज्बे की तारीफ लाजिमी है.

ब्लेड रनर के नाम से मशहूर दक्षिण अफ्रीका के ऑस्कर पिस्टोरियस कृत्रिम पैरों के सहारे तेज दौड़ते हैं. आम मुकाबलों में उनकी भागीदारी को लेकर भी लंबी बहस हुई. बाद में उन्हें 2012 के लंदन ओलंपिक में हिस्सा लेने दिया गया.

इंटरव्यू: यान-हेन्ड्रिक राफलर/ओंकार सिंह जनौटी

संपादन: अनवर जे अशरफ