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रूसी जर्मन काथरीन द ग्रेट

२७ जुलाई २०१३

ढाई सौ साल पहले रूस की जार काथरीन द ग्रेट ने एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करते हुए विदेशियों को अपने देश में बसने के लिए बुलाया. काथरीन खुद जर्मन नागरिक थी. उनके इसी पत्र ने रूसी जर्मन इतिहास की शुरुआत की.

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तस्वीर: picture-alliance/akg-images

22 जुलाई 1763 में एक युवती पीटर्सबर्ग के पास पीटरहोफ पैलेस में कैबिनेट की मेज पर बैठी और एक घोषणा पत्र पर दस्तखत किए,"हम काथरीन द्वितीय, मॉस्को कीयेव और व्लादीमर के सभी रूसियों की साम्राज्ञी और तानाशाह. हम सभी विदेशियों को अनुमति देते हैं कि वे हमारे साम्राज्य में आएं और अपनी मर्जी के हिसाब से किसी भी राज्य में बसें." यह घोषणापत्र अब रूस के सरकारी आर्काइव में रखा हुआ है. वैसे तो यह प्रस्ताव सभी विदेशियों के लिए था लेकिन काथरीन ने जर्मनों को लक्षित करके यह लिखा था. 1729 में सोफी फ्रीडेरिके फॉन अनहाल्ट जेर्ब्स्ट डोमबुर्ग के रूप में स्टेटिन में पैदा हुईं काथरीन उस समय प्रशिया के पोमेरेनिया में रहती थीं और जर्मन नागरिक थीं. उनके पति पेटर तृतीय (पेटर उलरिष फॉन होलस्टाइन गॉट्रॉप) के तख्तापलट और हत्या के बाद वह 1762 में सत्तासीन हुई. 

विदेशियों को रूस में बसने के लिए आमंत्रित करना उनका पहला अधिकारिक फैसला था. इतिहासकार येकातेरिना अनिसिमोवा के मुताबिक जार काथरीन के लिए पश्चिम से आने वाले लोगों का मतलब था, "आर्थिक और सबसे ऊपर सामाजिक-सांस्कृतिक विकास, एक ऐसे देश के लिए जो पिछड़ा हुआ था और जिसकी साम्राज्ञी वो थीं."

आर्थिक ताकत के लिए
दिल छू लेने वाले अंदाज में काथरीन ने अपने साम्राज्य की नदियों और झीलों के बारे में लिखा, "खनिज और धातु हैं जो कभी न खत्म होने वाली संपत्ति हैं. जो गहरे दबे हैं." उन्होंने यह भी लिखा कि उन्हें "निर्माण, प्लांट, इंस्टॉलेशन" की उम्मीद है. उनका लक्ष्य था इलाके में जनसंख्या बढ़ाना और खाली पड़ी जगहों का इस्तेमाल करना.

वह नए नागरिकों के जरिए अपनी सत्ता को भी स्थिर करना चाहती ही थी. रूस के नोबल लोग उनके खिलाफ थे. और अधिकतर किसान जमींदारों के बंधुआ मजदूर थे और उन्हीं के कहे में भी.  

अपने घोषणापत्र में काथरीन ने पश्चिम से आने वाले लोगों के लिए सौगातों का भी वादा किया था. उन्हें सेना में जाना जरूरी नहीं होगा. साथ ही सेल्फ गर्वनेन्स, करों में छूट, शुरुआती आर्थिक मदद और 30 हेक्टेयर जमीन प्रति परिवार का वादा भी इसमें शामिल था. साथ ही भाषा की स्वतंत्रता थी खासकर जर्मन आप्रवासियों के लिए. घोषणापत्र में लिखा गया, "आजाद और बिना किसी रोक टोक के उन्हें अपना धर्म मानने की आजादी होगी ठीक जैसा उनका चर्च कहता है."

वादा पूरा किया

धर्म की आजादी यहां बसने वाले उन लोगों के लिए सबसे अहम थी जो यूरोप धार्मिक कारणों से छोड़ना चाहते थे. शुट्स परिवार भी इनमें एक था. 1780 में हानश्टैटन नाम के शहर से वे रूस आए. यह इलाका कैथोलिक बहुल इलाके में प्रोटेस्टेंट का था. उनके परिवार के पास अभी भी आप्रवासन के दस्तावेज हैं जहां रूसी आप्रवासन अधिकारियों ने गायों, महिलाओं और बच्चों की सूची बनाई थी. परिवार को उस समय आज के यूक्रेन के चेर्निगोव में राउंड लॉन कॉलोनी में घर मिला. पहले पांच साल में 30 हजार लोग आज के जर्मनी से रूस पहुंचे. वे दक्षिणी रूस के सेंट पीटर्सबर्ग ब्लैक सी पर पहुंचे. वोल्गा नदी वाले इलाके में 100 नए गांव बने.

शुरुआती मुश्किलों के बाद रुसी जर्मन काफी संपन्न हो गए क्योंकि वह विकासशील किसान, मेहनती कारीगर और सक्षम उद्यमी थे. नैपोलियोन की जंग के कारण यहां और लोग बसने आए. और 19वीं सदी के मध्य तक रूस में रहने वाले रूसी जर्मन पांच लाख हो गए थे. 

रूस से लौटे

राउंड लॉन कॉलोनी खूब बढ़ी. किसानों के लिए एकदम नई तकनीक का इस्तेमाल सुलभ हुआ. 20 वीं सदी की शुरुआत में स्थानीय लाइब्रेरी ने कई जर्मन पत्रिकाओं की सदस्यता ली. यहां से कुछ ही दूरी पर कैथोलिक गांव था जिसका इस प्रोटेस्टेंट इलाके से कोई संपर्क नहीं था. यहां रहने वाले लोग बच्चों के लिए पति या पत्नी ढूंढने जर्मनी ही जाना पसंद करते. यहां रहने वालों के बच्चे भी वहां बनाए गए जर्मन स्कूल में ही जाते. 

लेकिन 20वीं सदी में यह शांतिपूर्ण निवास खत्म हो गया. पहले विश्व युद्ध में कई आप्रवासी रूसी सेना में भर्ती हो गए. इसके बावजूद रूसी जर्मनों को देशद्रोही के तौर पर ही देखा जाता. उस दौरान राउंड लॉन कॉलोनी के जर्मन स्कूल पूरी तरह बंद कर दिए गए. 

गालिना शुट्स बताती हैं, "लेकिन बाद में तो जो हुआ उसकी तुलना में ये कुछ भी नहीं था." उन्होंने पारिवारिक दस्तावेजों का निजी आर्काइव बनाया है. रूस में जर्मनों ने यूक्रेन का सूखा, जर्मन विरोधी दंगे झेले. किसानों को एक तरह से समाज बाहर कर दिया. और फिर दूसरा विश्व युद्ध हुआ. हिटलर की नाजी सेना जहां तक नहीं पहुंच सकी थी उन इलाकों में अगर कोई जर्मन बोलता तो उसे फासीवादी कहा जाता.

सोवियत संघ के सुप्रीम सोवियत की डिक्री के बाद रूसी जर्मनों को 1941 में साइबेरिया में भेज दिया गया. इनमें शुट्स परिवार भी था. उनके बड़े परिवार के अधिकतर सदस्य गुलाग में भूख और कई बीमारियों से मारे गए. 1955 स्टालिन की मौत के बाद उनका परिवार कजाकिस्तान से होते हुए कलमिकिया पहुंचे जहां गालिना शुट्स 50 साल पहले पैदा हुई. 

रूसी जर्मन इतिहास में सोवियत संघ का विघटन भी एक बड़ा मोड़ था. साम्राज्य के बाद का जीवन लगातार मुश्किल होता जा रहा था. इस दौरान करीब दो लाख रूसी जर्मनों ने अपने पुरखों की जमीन पर लौटना तय किया. आज रूस में आठ लाख जर्मन रहते हैं जिनमें से अधिकतर साइबेरिया में हैं.

1955 में शुट्स परिवार ने भी रूस छोड़ दिया ठीक 210 साल बाद. गायें और बग्घियां वे नहीं ले जा सके लेकिन उनके साथ बच्चे काफी थे. उनका परिवार कोलोन आ गया जो हानश्टैटन से ज्यादा दूर नहीं है.

नए सिरे से पुराने घर में उन्हें काफी मुश्किलें हुई. भाषा सबसे बड़ी समस्या थी. शुट्स बताती हैं, "मेरी दादी मार्गरेथे सिर्फ रुसी बोलती थी. और वह शुद्ध जर्मन की बजाए सिर्फ एक बोली प्लाटडॉयच ही बोल सकती थीं. जब हम जर्मनी आए तो मेरे पिताजी थियोडोर कोनरादोविच जर्मन टीवी देख ही नहीं पाए. 18वीं सदी की उनकी बोली आधुनिक जर्मन से बहुत अलग थी." वहीं उनके दादाजी डच तो समझ सकते थे लेकिन उन्हें जर्मन नए सिरे से सिखनी पड़ी.

गालिना कहती हैं कि उन्हें पुराने घर की बहुत याद आती है. वह बच्चों की देखभाल करती हैं, यही वो हमेशा करना चाहती थीं. वह कहती हैं, "मेरे बच्चे और नाती पोतों का भविष्य यहां जर्मनी में स्थिर है और बेहतर है.

रिपोर्टः अनास्तासिया बुत्श्को/ एएम

संपादनः निखिल रंजन

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