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राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश

२२ दिसम्बर २०१४

धर्म परिवर्तन का मुद्दा अचानक भारतीय राजनीति में सबसे महत्वपूर्ण होकर उभर आया है. हिंदू संगठनों ने केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने के बाद देश को हिंदू राष्ट्र के रूप में ढालने की कोशिशें बढ़ा दी हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उससे जुड़े विश्व हिंदू परिषद, धर्म जागरण मंच और भारतीय जनता पार्टी जैसे संगठन हिंदुओं के धर्म परिवर्तन खिलाफ रहे हैं, लेकिन गैर-हिंदुओं खासकर मुसलमानों और ईसाइयों के हिंदू बनने का वे स्वागत करते हैं. विश्व हिंदू परिषद और उससे प्रेरणा पाकर धर्म जागरण मंच जैसे संगठन निरंतर इस प्रयास में रहते हैं कि मुसलामानों और ईसाइयों को हिंदू बनाया जाए. इसे वे 'परावर्तन' या 'घर वापसी' का नाम देते हैं. उनका तर्क यह है कि इनके पुरखे हिंदू थे, इसलिए ये हिंदू बनकर अपने घर ही लौट रहे हैं और इसे धर्म परिवर्तन या धर्मांतरण नहीं कहा जा सकता.

संघ और उससे जुड़े सभी संगठन भारत को हिंदू राष्ट्र मानते हैं. पिछले दिनों संघ के सर्वोच्च नेता मोहन भागवत ने इस मान्यता को दुहराया. संघ के दूसरे सरसंघचालक माधवराव सदाशिव गोलवलकर गैर-हिंदुओं को "राष्ट्रजीवन के लिए विदेशी" मानते थे. उनकी स्पष्ट मान्यता थी कि "केवल हिंदू समाज का ही जीवन भारत की इस पवित्र भूमि का वास्तविक चिरंतन एवं वैभवशाली राष्ट्र-जीवन रहा है".

विपक्ष का विरोध

पिछले दिनों धर्मांतरण की विवादित घटनाओं के बाद गैर-बीजेपी पार्टियां कई दिनों से संसद में यह मुद्दा उठा रही हैं और धर्म परिवर्तन के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान की मांग कर रही हैं. संसद में कोई खास कामकाज नहीं हो पा रहा है और गतिरोध बना हुआ है. संघ बहुत दिनों से धर्म परिवर्तन पर कानूनी रोक लगाए जाने की मांग करता रहा है. अब फिर मोहन भागवत ने यह मांग उठाई है. संसदीय कार्य मंत्री एम. वेंकैया नायडू और वित्त मंत्री अरुण जेटली का भी यही कहना है कि विपक्ष राजी हो तो धर्म परिवर्तन रोकने के लिए केंद्र सरकार कानून बनाए. मध्य प्रदेश और ओडिशा जैसे राज्यों में इस तरह के कानून पहले से ही बने हुए हैं ताकि लोभ-लालच देकर या डरा-धमका कर किसी का धर्म परिवर्तन न कराया जा सके.

सुप्रीम कोर्ट के कई फैसले इस बात को स्पष्ट करते हैं कि संविधान में अपने धर्म का पालन करने और उसकी शिक्षाओं और सिद्धांतों का प्रचार करने की आजादी तो दी गई है, लेकिन धर्म परिवर्तन कराने का अधिकार नहीं दिया गया है, और न ही यह प्रचारित करने की आजादी दी गई है कि हमारा धर्म दूसरे धर्मों से श्रेष्ठ है. इसलिए किसी केंद्रीय कानून की जरूरत ही नहीं है.

राजनीतिक मुद्दा

लेकिन संघ परिवार के लिए यह धार्मिक मसला नहीं, राजनीतिक मुद्दा है जिसका इस्तेमाल हिंदुओं में असुरक्षा की भावना पैदा करके राजनीतिक तौर पर लामबंदी करने के लिए किया जाता है. आरोप यह है कि विदेशी धन के सहारे ईसाई मिशनरी हिंदुओं और आदिवासियों को ईसाई बना रहे हैं और पेट्रो-डॉलर के बल पर मुस्लिम संगठन हिंदुओं को मुसलमान बना रहे हैं. लेकिन वास्तविकता इससे कहीं अधिक जटिल है. अधिकतर मामलों में निचली जाति के हिंदू ऊंची जातियों के अत्याचार से बचने के लिए धर्म बदलते हैं. आज भी अनेक जगह निचली जातियों को मंदिरों में प्रवेश नहीं करने दिया जाता. जाति के आधार पर उत्पीड़न आम बात है. धर्म परिवर्तन के पीछे सबसे बड़ा कारण यही है. कुछ छिटपुट मामलों में प्रलोभन या दबाब भी कारण हो सकता है. 1970 के दशक से अब तक ईसाइयों की जनसंख्या बढ़ने के बजाय कुछ घटी ही है.

भारत में कहीं-न-कहीं चुनाव होते ही रहते हैं. इसलिए सांप्रादायिक तनाव बढ़ाकर उसका राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश जारी रहती है. बीजेपी के अपने बलबूते पर केंद्र में सत्ता में आने के बाद संघ परिवार को लग रहा है कि अब वह भारत को हिंदू राष्ट्र के रूप में ढालने के स्थिति में है. लेकिन वह ऐसा करने में सफल हो पाएगा, फिलहाल तो ऐसा नहीं लगता.

ब्लॉग: कुलदीप कुमार