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युद्ध का एक तरीका है संस्कृति को नष्ट करना

२२ मई २०१५

बर्लिन के पश्चिम एशिया म्यूजियम के निदेशक मार्कुस हिल्गर्ट की आशंका है कि आईएस के लड़ाके पालमिरा की ऐतिहासिक धरोहरों को नष्ट ही नहीं करेंगे, बल्कि अवैध खुदाई भी कर सकते हैं. अवैध कमाई का इस्तेमाल संगठन के लिए होगा.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

क्रिस्टोफ हाइनेमन: क्या इस बात के संकेत हैं कि आईएस के आतंकी पालमिरा के ऐतिहासिक हिस्से को नष्ट करेंगे?

प्रोफेसर मार्कुस हिल्गर्ट: यह अभी ठीक से नहीं कहा जा सकता. लेकिन यह तय है कि पिछले दिनों की लड़ाई में सचमुच पालमिरा के विशाल वास्तुशिल्प को भी नुकसान पहुंचा है. और स्वाभाविक रूप से पूरी दुनिया को चिंता है कि निमरुद के उत्तर पश्चिमी भवन की तरह यहां भी पुरातत्व साइट को नष्ट किया जाएगा या नुकसान पहुंचाया जाएगा. इसके अलावा यह भी जायज चिंता है कि अवैध रूप से पुरातत्व वाली खुदाई की जाएगी ताकि प्राचीन चीजों को काला बाजार में बेचा जा सके.

आईएस के लिए राजस्व जुटाने के लिए?

जी हां.

क्या इस तरह के कारोबार के रास्ते पता किए जा सकते हैं?

इस बात के संकेत हैं कि कुछ सामानों को तुर्की की सीमा पर पकड़ा जा रहा है और अधिकारियों द्वारा जब्त किया जा रहा है. संकेत हैं कि कुछ सामान लेबनान के रास्ते बेचा जा रहा है. इसके अलावा इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि खाड़ी के कुछ देश इसमें अहम भूमिका निभा रहे हैं.

Prof. Dr. Markus Hilgert
प्रो. मार्कुस हिल्गर्टतस्वीर: Olaf M. Teßmer

आतंकियों ने अपने नाम में आई लगा रखा है, अपने कदमों को अल्लाह की इच्छा के नाम पर उचित ठहरा रहे हैं. क्या इस्लामिक परंपरा में पराई संस्कृति को नष्ट करने की मिसालें हैं?

मैं समझता हूं कि जो हम इस समय देख रहे हैं उसकी कोई मिसाल नहीं है, हमलों की संपूर्णता में भी नहीं. और मैं यह भी नहीं जानता कि जो लोग यह कर रहे हैं क्या उन्हें अपने किए के ऐतिहासिक आयाम का पता है. यहां ताकत और प्रभावी रूप से एक ऐतिहासिक व्याख्या कही जा रही है जो यूरोप की व्याख्या के एकदम विपरीत है. इस लिहाज से हमारा वास्ता इतिहास कहने की एक नई क्वालिटी से है जो एक तरह से उस पर अमल है जिसे हम उत्तर उपनिवेशवादी सिद्धांतों से जानते हैं कि इतिहास की यूरोप से अलग व्याख्या भी है.

महाकवि गोएथे का एक वाक्य है, "जो 3000 साल का लेखा जोखा नहीं दे सकता वह अंधेरे में रहेगा, सिर्फ हर दिन के लिए जिएगा." पालमिरा का आज के लोगों के लिए क्या महत्व है?

पालमिरा हम वैज्ञानिकों के लिए, और मैं ओरियंटलिस्ट होने के नाते मेसोपोटेमिया के बाद पालमिरा को देखता हूं, इसलिए इतना दिलचस्प है कि वहां विभिन्न संस्कृतियों का असर हमें जोड़ता है. पालमिरा ईसा से 2000 साल पहले भी मरुभूमि के बीच रमणीक शहर था जिसका वर्णन कीलाक्षरों वाले अभिलेखों में मिलता है. जब हम ईसा के बाद के पहली शताब्दी के वास्तुशिल्पों को देखते हैं तो देखते हैं कि वहां एक अलग सांस्कृतिक भाषा विकसित हुई है, एक ओर रोमन वास्तुकला तो दूसरी ओर मेसोपोटेमिया का असर, वास्तुशिल्प में भी और धर्म में भी. इस लिहाज से पालमिरा विश्वप्रेम का प्रतीक है, बहुसांस्कृतिक, संस्कृतिपारीय और बहुभाषी समाज का. उन सबका जिनकी आज हम तारीफ करते हैं और जो प्राचीन काल में भी हुआ करता था.

प्रोफेसर हिल्गर्ट, सांस्कृतिक इतिहास में दूसरी संस्कृतियों के ऐतिहासिक स्थलों या इमारतों को नष्ट किए जाने की क्या अर्थ है?

इमारतों या प्रतिमाओं को तोड़ने का हमेशा अस्मिताओं को खत्म करने से लेना देना होता है. क्योंकि मानवीय अस्मिता, और सांस्कृतिक अस्मिता भी अक्सर एक पीढ़ी, एक जिंदगी या एक इंसान के साथ जुड़ी होती है. हम पुराने प्राच्य से जानते हैं कि शासक अपनी खुद की जिंदगी को अमर बनाने के लिए अपनी उपलब्धियां शिलालेखों पर लिखवाते थे. वे ऐसी इमारतें बनवाते थे जो लंबे समय तक बनती रहती थीं. इसलिए मानव जीवन से ज्यादा दिनों तक चलने वाली इमारतों को नष्ट करना अस्मिताओं, मानवीय उपलब्धियों और सांस्कृतिक सहमतियों को नष्ट करना भी है. और यह हमेशा ऐसा ही था,अभी नया सिर्फ यह है कि हम इसे आईएस के प्रचार वाले वीडियो के साथ देख रहे हैं. इसलिए हम सदमे में हैं.

लेकिन यह हमेशा होता था. निनिवे से लेकर नाजियों तक.

हां यह हमेशा होता रहा है, निनिवे से पहले भी. यह एक प्रकार का युद्ध है, जैसे कि युद्ध के दूसरे भयानक रूप हैं. क्योंकि हर काल में यह समझा गया है कि संस्कृति सिर्फ भौतिक संस्कृति नहीं है, इसका मतलब सिर्फ सामान नहीं है, संस्कृति इंसान और इंसानी सहजीवन का एक महत्वपूर्ण तत्व है. इसलिए लोगों को पहले से पता था कि संस्कृति को नष्टकर दुश्मन को घुटने टेकने पर मजबूर किया जा सकता है.

इंटरव्यू: क्रिस्टोफ हाइनेमन/एमजे