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मंथन 102 में खास

२५ अगस्त २०१४

सेलफोन का आविष्कार हुए चार दशक बीत चुके हैं और साल दर साल इन पर हमारी निर्भरता बढ़ती जा रही है. मंथन में जानिए इनसे छुटकारा पाने का तरीका.

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तस्वीर: fotolia/bloomua

मोबाइल फोन का चलन जब से शुरू हुआ है, हर वक्त ये हाथ में ही रहते हैं. कुछ देर फोन ना बजे, तब भी हम देखने लगते हैं कि कहीं कोई कॉल, कोई मैसेज मिस तो नहीं हुआ. यहां तक कि जब हमारे सामने कोई बैठा हमसे बात कर रहा होता है, तब भी हम फोन के ही साथ लगे रहते हैं. यह आदत इतने लोगों में है कि इसके लिए एक नया शब्द ही बना दिया गया है, फबिंग. आप फबिंग ना करें, इसका ख्याल अब एक ऐप रखेगा. इस ऐप के बारे में मंथन में ढेर सारी जानकारी.

कई बार किसी दुर्घटना में लोग अपना पैर खो देते हैं. या फिर रीढ़ की हड्डी में चोट लगने से शरीर का निचला हिस्सा लाचार हो जाता है. ऐसे लोगों को दोबारा अपने पैरों पर खड़ा करना और आत्मनिर्भर बनाना ही मकसद है वॉक अगेन नाम के प्रोजेक्ट का. यह बीएमआई यानि ब्रेन मशीन इंटरफेस है. मतलब अगर आप सोचेंगे कि आपको चलना है, तो मशीन आपकी चलने में मदद करेगी.

खतरनाक रेडियोएक्टिव कचरा

तीस साल पहले भोपाल में यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी में एक टैंक लीक हुआ. मिथाइल साइनाइड गैस फैलने से 3500 लोगों की जान गयी. फैक्ट्री बंद हो गयी, लेकिन वहां मौजूद 350 टन जहरीले कचरे का क्या करना है, यह आज तक समझ नहीं आया. अगर पेस्टिसाइड का कचरा इतना परेशान कर सकता है तो न्यूक्लियर प्लांट का रेडियोएक्टिव कचरा कितना खतरनाक होगा.

जर्मनी ने परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल बंद करने का फैसला कर लिया है लेकिन परमाणु संयंत्रों को गिराना और रेडियोएक्टिव कचरे का भंडारण महंगा और जोखिम भरा काम है. संयंत्रों का इस्तेमाल करने वाली ऊर्जा कंपनियों की यह जिम्मेदारी है. लेकिन उन्हें डर एक तो इस बात से है कि उनके पास यह काम करने के लिए पैसे काफी नहीं होंगे. दूसरा, इस जहरीले कचरे को हमेशा के लिए कहीं रख लेना खतरे से खाली नहीं है. मंथन के इस अंक में जानिए कि इस सिलसिले में क्या किया जा रहा है.

वीगन ग्रिल पार्टी

भारत की 70 फीसदी आबादी शाकाहारी है. लेकिन पश्चिमी देशों में ऐसा नहीं है. ऐसे में लोगों को बहुत हैरानी होती है कि वेजिटेरियन खाने में कितनी वैरायटी हो सकती है. कुछ लोग वेजिटेरियन, तो कुछ वीगन होते हैं. ये लोग दूध, दही, शहद, जानवरों से मिलने वाली किसी भी चीज का इस्तेमाल नहीं करते हैं. चमड़े और रेशम का भी नहीं. यूरोप में चालीस के दशक में वीगन सोसायटी शुरू हुई, और आजकल इसका ट्रेंड बढ़ रहा है.

कुकिंग क्लासेस के जरिए लोगों को सिखाया जाता है कि सिर्फ फल सब्जियों पर कैसे जिया जाता है. कोर्स में हिस्सा लेने वालों को बताया जाता है कि शाकाहारी सॉस, सलाद और सॉसेज कैसे बनाए जाते हैं. वीगन सॉसेज टोफू और ग्लूटन से बनता है. ग्लूटन अनाज में पाया जाता है. दोनों का अपना स्वाद कम होता है और इसलिए मिर्च और मसालों के बगैर वीगन खाना फीका लगता है. एक साथ खाना बनाने के बाद कोर्स में हिस्सा लेने वाले एक साथ बैठ कर ग्रिल पार्टी करते हैं और वीगन खाने का लुत्फ उठाते हैं.

आईबी/एए