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मोदी के लिए धर्मांतरण बड़ी चुनौती

१८ दिसम्बर २०१४

जब दुनिया भर में नरेंद्र मोदी की सरकार से विकास के ठोस कदमों की उम्मीद की जा रही है, भारत धर्मांतरण विवाद के कारण सुर्खियों में है. निवेश के लिए आसान कायदे कानून और राजनीतिक स्थिरता जरूरी है.

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तस्वीर: Reuters

विदेशों में उम्मीद की जा रही है कि नरेंद्र मोदी निवेश की प्रक्रिया को आसान बनाएंगे और अपने मेक इन इंडिया अभियान के लिए उचित माहौल पैदा करेंगे. लेकिन पिछले दिनों आरएसएस से जुड़ी संस्था के धर्मांतरण अभियान से शक पैदा हो रहा है.

नरेंद्र मोदी ने चुनाव के दौरान विकास और बेहतरी का वादा किया था. पूरे भारत में लोगों ने इस वादे को गंभीरता से लिया और जाति तथा धर्म के हितों को दरकिनार कर 20 साल बाद पहली बार किसी पार्टी को पूरा बहुमत दिया. बहुमत जिम्मेदारी देता है. पार्टी भले ही अपने सदस्यों और विचारधारा का प्रतिनिधित्व करती हो, सरकार जनता की होती है, सारे देश की होती है. बीजेपी के पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कभी मोदी से ही "राजधर्म" निभाने की बात की थी. नरेंद्र मोदी पर एक बार फिर राजधर्म निभाने का दायित्व है. अब वे हर नागरिक के प्रधानमंत्री हैं, उन्हें सुरक्षा देना और उनकी बेहतरी के लिए काम करना उनका नैतिक और संवैधानिक कर्तव्य है.

संपूर्ण विकास के लिए सामाजिक समरसता की जरूरत होती है, सामाजिक विवाद और हिंसा विकास के गले में हड्डी बनते हैं. आरएसएस का घरवापसी अभियान इसी समरसता को खतरे में डाल रहा है. डर का अपना मनोविज्ञान होता है - डर डर पैदा करता है, वह लगातार नए लोगों को अपना शिकार बनाता जाता है और डरे हुए लोग विकास के बारे में नहीं, अपनी सुरक्षा के बारे में सोचते हैं. किसी भी सरकार की प्रमुख जिम्मेदारी है लोगों को सुरक्षा देना और उसके बाद उनकी आर्थिक बेहतरी के लिए आधार बनाना और मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराना. मोदी सरकार को भी अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता से लेना होगा और नागरिकों की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने वाले तत्वों पर लगाम कसनी होगी, भले ही वे अपनी ही पार्टी के क्यों न हों.

लोगों ने शासन की कुव्यवस्था के खात्मे के लिए नरेंद्र मोदी को चुना और उन लोगों को सबक सिखाया जो शासन में होने का इस्तेमाल अपने या अपने गुट के फायदे के लिए कर रहे थे. यदि बीजेपी भी यही करती है तो वह भी लोगों का भरोसा खो देगी. राजनीतिक दलों में भरोसा लोकतंत्र में भरोसे की निशानी है. इस भरोसे को बनाए रखना उनकी भी जिम्मेदारी है. जरूरी है कि बीजेपी अपने सदस्यों को अनुशासन में लाए और उनका इस्तेमाल उन लक्ष्यों के लिए करे जो नरेंद्र मोदी ने अपने शासन के सात महीनों में तय किए हैं - मसलन स्वच्छता अभियान, विकास पर आधारित मॉडल गांव बनाना, ग्रामीण युवाओं का प्रशिक्षण. इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए किसी भी सरकार को नागरिकों के समर्थन और भागीदारी की जरूरत होगी. मोदी सरकार को भी है. उनकी पार्टी को समझना होगा कि उसका प्रभाव इस लक्ष्यों को पूरा कर बढ़ेगा, धर्मांतरण का बखेड़ा खड़ाकर नहीं.

ब्लॉग: महेश झा