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मासिक चक्र पर चुप्पी तोड़नी होगी

२० अगस्त २०१४

संयुक्त राष्ट्र एजेंसी यूनिसेफ के मुताबिक अफ्रीका में 10 फीसदी स्कूली छात्राएं मासिक चक्र के दौरान स्कूल जाना बंद कर देती हैं. इस मामले पर चुप्पी को तोड़ने के लिए सरकार और यूनिसेफ साथ मिलकर अहम कदम उठा रहे हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

कम जानकारी और संसाधनों की कमी इसकी बड़ी वजह है. युगांडा के गांव टोरोरो में रहने वाली मामायी को जब पहली बार मासिक धर्म हुआ तो वह घबरा गई. वह इस बारे में पहले से कुछ नहीं जानती थी. घर आकर उसने खुद को कमरे में बंद कर लिया. उसने बताया, "मैं समझ नहीं पा रही थी कि मुझे क्या हो गया था, मैं घंटों तक रोती रही."

दुनिया के कई हिस्सों में आज भी पुराने कपड़े का इस्तेमाल आम बात है. सैनिटरी पैड के बारे में जानकारी होना या उसे खरीद सकना आज भी उनके लिए मुश्किल है. भारत के कई इलाके भी इसमें शुमार हैं. अफ्रीका में इसकी जगह फटे पुराने कपड़े, कागज या एबिकोकूमा नाम के पौधे की पत्तियों का इस्तेमाल किया जाता है.

कंपाला के एक प्राइवेट स्कूल में टीचर लीडिया नबाजीन ने बताया, "हम उन्हें स्कूल में इस्तेमाल करने के लिए पैड दे देते हैं. लेकिन वे घर जाकर क्या करती हैं हमें नहीं मालूम. हमारे पास इतनी रकम नहीं कि हम उनके घर के लिए भी सैनिटरी नैपकिन दे सकें." नबाजीन के स्कूल में पढ़ने वाले 500 छात्रों में से 300 लड़कियां हैं.

बात करना जरूरी

इस साल 28 मई को दुनिया भर में पहली बार मेंस्ट्रुअल हाइजीन दिवस मनाया गया. इसका मकसद था लोगों को इस मुद्दे पर खुल कर बात करने के लिए तैयार करना और यह समझाना कि मासिक चक्र के दौरान सफाई कितनी जरूरी है. लड़कियां और महिलाएं इस बारे में जागरुक हो जाएं तो वे जीवन में बाकी कामों को पूरी दक्षता से कर सकती हैं.

Symbolbild Frauen Vergewaltigung Not Hunger Armut in Somalia
तस्वीर: Roberto Schmidt/AFP/Getty Images

कंपाला में मासिक चक्र के दौरान सफाई पर कांन्फ्रेंस का भी आयोजन किया गया है. दो दिवसीय आयोजन में कंपाला के स्कूली छात्रों, टीचरों, गैर सरकारी संगठनों के सदस्यों समेत आम लोगों ने भी हिस्सा लिया. वे चाहते हैं कि स्कूल जाने वाली लड़कियों को सरकार की तरफ से हर महीने सैनिटरी नैपकिन दिए जाएं, जैसे कि पड़ोसी देश केन्या में होता है.

विकल्पों की उपलब्धता

मामायी अब एफ्री पैड का इस्तेमाल करती है. इन्हें युगांडा की ही सामाजिक कार्यों में लगी संस्था ने तैयार किया है. इन पैड्स को धो कर दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है. ये एक साल तक इस्तेमाल में लाए जा सकते हैं. इसके अलावा कंपाला यूनिवर्सिटी के इंजीनियरिंग विभाग ने भी अफ्रीका के पहले बायोडिग्रेडेबल पैड तैयार किए हैं. इन्हें इस्तेमाल किए हुए पुराने कागजों और सरकंडों से तैयार किया गया है.

मामायी कहती है कि अब वह मासिक धर्म के दौरान कहीं भी बेझिझक जाती है. वह स्कूल की छुट्टी भी नहीं करती. कांफ्रेंस में इस बारे में एक 50 पन्ने की किताब का भी विमोचन हुआ जिसमें तस्वीरों के साथ समझाया गया है कि घर पर ही दोबारा इस्तेमाल किए जाने लायक पैड कैसे तैयार किए जाएं और सफाई का ध्यान किस तरह रखा जाए.

युगांडा के शिक्षा एवं खेलकूद मंत्रालय में सलाहकार मैगी कसीको ने बताया कि सरकार इस किताब के जरिए ज्यादा से ज्यादा लोगों तक इस बारे में जागरुकता पहुंचाना चाहती है. उन्होंने बताया इस बात पर भी ध्यान दिया जा रहा है कि स्कूलों में लड़कों और लड़कियों के लिए अलग टॉयलेट और स्नानगृह हों.

एसएफ/एएम (डीपीए)