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मागदेबुर्गः कठपुतलियों का शहर

शिव प्रसाद जोशी२७ अगस्त २००९

मागदेबुर्ग शहर सैक्सोनी आनहाल्ट सूबे की राजधानी है. ये एल्बे नदी पर बसा बंदरगाह भी है. इसका बडे़ पैमाने पर विकास शुरू हुआ था. लेकिन तेज़ी से बदला ये शहर आज पर्यटकों और ख़रीदारों से पटा रहता है.

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मागदेबुर्गतस्वीर: picture-alliance/ ZB

दसवीं शताब्दी में जब बादशाह ओटो प्रथम ने यहां अपना निवास स्थापित किया था. मध्ययुग में ये शहर राजनीति और संस्कृति का सेंटर था. युद्धों के अनथक दौर से जूझता लुटता पिटता शहर एक बार फिर ऐसा युद्ध की भेंट चढ़ा कि अस्सी फीसद शहर बरबाद हो गया. ये दूसरे विश्व युद्ध का वाकया है.

शॉपिंग मॉल और कंक्रीट की इमारतें

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इतिहास में झांकता शहरतस्वीर: DW/Nelioubin

युद्ध की छायाओं और उसकी वास्तविकता से लंबे समय तक घिरे रहे मागदेबुर्ग में निर्माण शुरू हुआ दूसरे विश्व युद्ध के बाद. लेकिन इसे निर्णायक पहचान मिली दोनों जर्मनी के फिर से एक हो जाने के बाद. उसके बाद भी कई साल तक यहां पुनर्निर्माण का काम चलता रहा. छिटपुट तौर पर ये जारी है. कुछ समय पहले तक उदास ग्रे इमारतें दिखती थीं, आज सब कुछ बदल गया है. शॉपिंग सेंटर, मल्टीप्लेक्स थियेटर, रेस्तरां और कैफे ने शहर की तस्वीर बदल दी है. मागदेबुर्ग में ज़िंदगी लौट आयी है.

मुख्य रेलवे स्टेशन से चंद कदमों के फ़ासले पर है-ब्राइटेन वेग, पैदल पथ इलाक़ा जिस पर खरीदारों की भीड़ उमड़ी रहती है. ये सड़क तेज़ी से बदलते शहर की गवाह है. एक तरफ़ रंगीन शीशों के भीतर नया साजो सामान सामग्रियां सजी हैं, फास्ट फूड के लुभावने रेस्तरां हैं. तो दूसरी तरफ़ अतीत की बोझिल यादों को समेटे एक सड़क है. यहां स्लैब वाली गैर रिहायशी और उपेक्षित इमारतों की कतार हैं.
घटती आबादी और बढ़ती बेरोज़गारी

1989 में कोई दो लाख अस्सी हज़ार लोग माग्देबुर्ग में रहते थे. आज वो संख्या सिर्फ दो लाख तीस हज़ार रह गयी है. इस पलायन की वजह. कम्युनिस्ट दौर में शहर एक प्रमुख औद्योगिक केंद्र था. जर्मनी के फिर से एकीकरण के बाद व्यापार सिस्टम और फैक्ट्रियां प्रतिस्पर्धा पर खरे नहीं पाये गये और उन्हें बंद कर दिया गया. कई लोगों की नौकरियां छिन गयीं. इस वजह से बेरोज़गारी की दर में करीब 20 फीसदी का इज़ाफा हो गया. काम की तलाश में मागदेबुर्ग के कई नागरिक पश्चिम जर्मनी का रुख़ करने लगे. इनमें युवाओं की तादाद ज़्यादा रही है.

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मागदेबुर्ग की ऊंट दौड़तस्वीर: AP

कला और कुदरत
मागदेबुर्ग के लोगों और सैलानियों के लिए शहर में उठने बैठने और घूमने लायक कुछ निराली जगहें हैं. जैसे एल्बे नदी का किनारा और बेशुमार बागीचे. गर्मियों में इन जगहों पर भीड़ उमड़ी रहती है. चाहे वो रोटेहॉर्नपार्क में स्केटिंग हो, हैरेनक्रुगपार्क में साईकिल की सैर हौ या लकड़ी के बने मिलेनियम टॉवर के आसपास पैदल सैर हो. इसी पार्क में बुंदेसगारटनशाऊ 1999 हुआ था. यानी बागों का सालाना शो. एल्बे नदी में उतरने के शौकीनों के लिए जहाज भी हैं और उनके बेड़े का नाम है वाइज़े फ्लोटे यानी श्वेत बेड़ा.

मागदेबुर्ग में सांस्कृतिक चहलपहल भी कम नहीं. रात और दिन ये सरगर्मी रहती है. अपनी कठपुतली कला के लिए तो मागदेबुर्ग प्रसिद्ध है ही. कठपुतली थियेटर के कलाकारों का शहर में अपना एक समृद्ध रचना संसार है और उसे देखने परखने उसकी सराहना करने वालों का तांता लगा रहता है. इनमें बच्चे भी हैं बड़े भी. आम आदमी भी और कला विशेषज्ञ भी. इन कठपुतली नृत्य-नाट्य रचनाओं में जर्मनी की किंवदंतियां औऱ लोककथाएं शामिल हैं. बच्चों की क्लासिक कहानियां जैसे माक्स और मोरित्स और हांस क्रिश्चियन एंडरसन और ग्रिम बंधुओं की लिखी परीकथाएं, कठपुतली नाच में उतर आती हैं.

मागदेबुर्ग अपनी कला और कुदरत के दम पर अपनी पहचान को संजो कर रखने वाला शहर है. युद्धों के घाव से छलनी शहर को हर पल रात और दिन सुकून और ठंडक देती हुई बहती है एल्बे नदी. एक शहर के पास भले ही कुछ न हो लेकिन एक नदी तो हो. मागदेबुर्ग के पास वो है.