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महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाना जरूरी

दिशा उप्पल१६ नवम्बर २०१४

भारत में फैसले की प्रक्रिया में महिलाओं की स्थिति काफी बुरी है. ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स से पता चलता है कि 142 देशों की सूची में भारत 114वें स्थान पर है. महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने पर जोर देन की जरूरत है.

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तस्वीर: DW

किसी भी लोकतंत्र के सही संचालन के लिए सबसे जरूरी है सभी वर्गों और समूहों का संतुलित प्रतिनिधित्व. लेकिन दुनिया के कई बड़े लोकतांत्रिक देशों में महिलाओं की निर्णय निर्माण की प्रक्रिया में हिस्सेदारी बहुत कम है. भारत में भी, जो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का दावा करता हैं, महिलाओं की नियुक्ति, निर्णय लेने वाले ऊंचे पदों में कम ही होती है, फिर चाहे सरकारी क्षेत्र हो या नीजी. लगभग सभी क्षेत्रों में शीर्ष पदों पर पुरुष ही दिखाई देंगे.

इसके पीछे कारणों में सबसे ऊपर है रूढ़िवादी और पुरुष प्रधान सोच, जो महिलाओं को आगे बढ़ना नहीं देना चाहती. और अगर महिलाएं तमाम बंधनों को लांघ कर आगे बढ़ भी जाती है तो गहरी पितृसत्तामक सोच रखने वाले लोग महिलाओं के योगदान को नजरअंदाज कर प्रभावशील पदों पर आने ही नहीं देते और नीति निर्धारण की प्रक्रिया से दूर रखते हैं. इसके अलावा शिक्षा की कमी एक बहुत बड़ा कारण है. देश के कई हिस्सों में लड़कियों की स्कूली शिक्षा ही नहीं पूरी नहीं हो पाती, तो उच्च शिक्षा तो दूर की बात है. तीसरा, महिलाओं पर घर की जिम्मेदारियों का इतना भार लाद दिया जाता है की वे कुछ और करने का या आर्थिक आत्मनिर्भर होने का सोच ही न पाएं. ऐसे में निर्णय लेने की प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी ना होना और जेंडर गैप बढ़ना स्वाभाविक बात है.

आरक्षण की जरूरत

महिलाओं के प्रति इस भेदभाव को दूर करने लिए आवश्यकता है सकारात्मक कदम उठाने की. कई स्तरों पर काम करना होगा. राजनीतिक स्तर पर सबसे पहले ऐसी व्यवस्था लागू करनी होगी जो महिलाओं को सत्ता और फैसले लेने की प्रक्रिया से जोड़ सके. जैसे की महिलाओं की राजनीतिक हिस्सेदारी के लिए आरक्षण. पंचायत स्तर पर, महिलाओं के लिए कोटा लागू होने से सकारात्मक बदलाव आएं है. कई पंचायतों के काम करने के तरीकों में फर्क पड़ा है. महिला नेतृत्व वाली पंचायतें, घर, स्कूल, सेहत और अन्य मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने में सफलतापूर्वक काम कर रहीं हैं.

राष्ट्रीय स्तर पर महिला आरक्षण बिल पारित कर ऐसे ही आरक्षण को जल्द लागू करने की जरूरत हैं. हालांकि ये बिल 33 प्रतिशत आरक्षण की बात करता है पर अगर यह पास होकर लागू हो जाए तो इसी से काफी असर पड़ सकता है. इसमें राजनैतिक दलों की भूमिका भी अहम होगी है. पार्टियां अगर वाकई जेंडर समानता लाना चाहती हैं तो उन्हें ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित कर, महिलाओं को पार्टी की ऊंचे पदों पर लाना होगा.

नजरिए को बदलना होगा

दूसरा, राजनीति के अलावा अन्य क्षेत्रों जैसे कला, संस्कृति, खेल, उद्योग और तमाम गैर सरकारी संस्थाओं में भी महिलाओं की ऊंचे पदों पर भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी. जो महिलाएं पहले से तमाम क्षेत्रों में कार्यरत हैं, उनकी क्षमता बढ़ाने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए. राजनीतिक हिस्सेदारी, नीतियों, कानूनों और अधिकारों के बारे में विस्तृत जानकारी देकर उन्हें निर्णय लेने और नेतृत्व संभालने के लिए तैयार करना होगा. औपचारिक शिक्षा के अलावा जेंडर समानता के बारे में बताना होगा.

आखिर में जरूरी है सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर अभियान चलाकर महिलाओं की भागीदारी और नेतृत्व क्षमता के बारे में सूचना और जागरूकता फैलाना. सामूहिक चर्चा कर इस मुद्दे की अहमियत को समझाना होगा. निरंतर चर्चा से महिलाओं के प्रति नजरिए को बदला जा सकता है. इसमें मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण होगी. महिलाओं की कौशल और क्षमता पर फोकस कर निर्णय निर्माण में महिलाओं की हिस्सेदारी को बढ़ावा देने और संबंधित जानकारी का प्रचार प्रसार कर मीडिया महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रहों से भरी मानसिकता को बदलने में सहायक साबित हो सकता है. और क्या पता इस प्रक्रिया का हिस्सा बन, मीडिया संस्थाएं भी आत्ममंथन कर लें और अपने यहां महिलाओं को शीर्ष पदों में जगह देकर लैंगिक समानता के लक्ष्य के करीब पहुंचने में मददगार साबित हों.