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महिला सशक्तिकरण में सूनामी की मदद

२६ दिसम्बर २०१४

हिंद महासागर पर स्थित देशों ने 26 दिसंबर 2004 को आए सूनामी की दसवीं वर्षगांठ पर मारे गए 230,000 लोगों की याद की. सूनामी ने दक्षिण भारत की महिलाओं की जिंदगी भी बदल डाली. लेकिन वे आत्मनिर्भर बनने में कामयाब रहीं हैं.

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तस्वीर: Roberto Schmidt/AFP/Getty Images

भारत के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में भोर होने से पहले रेणुका सक्तिवेल अपने पति और उनके साथियों द्वारा पकड़ी गईं मछलियों को उठाने में मदद देती हैं. बाजार का चक्कर लगाने और मछली के सौदे के बाद वह महिलाओं के स्वयं सहायता समूह की बैठक में हिस्सा लेती हैं. इसी समूह ने उनके पति को मछली पकड़ने वाली नई नाव और रेणुका को सूखी मछली के लिए प्रसंस्करण इकाई के लिए लोन दिया था, जिसे रेणुका तीन और महिलाओं के साथ मिलकर चलाती हैं. सूनामी को आए दस साल हो गए हैं, दुनिया की सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा के बाद 36 साल की रेणुका की कहानी दुर्लभ सफलता की कहानी है.

रेणुका का जिला नागपट्टिनम भी सूनामी की ऊंची लहरों की चपेट में आया था. 26 दिसंबर 2004 को तमिलनाडु में छह हजार लोगों की मौत हुई थी, पूरे भारत में 12,000 लोग मारे गए. दुनिया भर से यहां तुरंत और निरंतर मदद पहुंचती रही. सहायता का मुख्य फोकस जिंदगियों को दोबारा पटरी पर लाने पर था. खासकर विधवा महिलाओं को फिर से आत्मनिर्भर बनाने पर. महिलाओं को सशक्त बनाने के प्रयासों का असर उनपर भी हुआ है जिन्होंने आपदा के वक्त अपने पति को नहीं खोया.

आपदा के बाद हजारों महिलाएं, जो मुख्य रूप से मछली विक्रेता हैं, सामुदायिक स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी. अपने उपक्रम के जरिए हर महीने 15,000 रुपये कमाने वाली रेणुका कहती हैं, "मेरे और सैकड़ों महिलाओं के लिए सूनामी एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ. महिला समूहों के माध्यम से माइक्रो क्रेडिट मिला और मेरी जैसी कई महिलाएं आय का अहम दूसरा रास्ता खोलने में कामयाब रहीं. हमारे पति हमारी इज्जत करने लगे, पहले हम पर ध्यान नहीं दिया जाता था. अब हम घर में फैसले लेते हैं. सूनामी के पहले ऐसा नहीं होता था."

यहां से करीब 80 किलोमीटर उत्तर की ओर एक और महिला तिलकवती पूरी तरह से महिलाओं द्वारा चलाई जाने वाली नई कंपनी में नौकरी करती है. पुदुच्चेरी के कराइकल में यह कंपनी मछली पाउडर, चाय और मसाले बेचती है. सूनामी के बाद राज्य सरकार के टिकाऊ आजीविका कार्यक्रम के एक सर्वे के मुताबिक कराइकल में महिलाओं ने अधिक व्यावसायिक गतिविधियों शुरू की. इसके साथ महिलाएं घरों से बाहर निकलने लगीं जिसकी वजह से उनका सामाजिक ही नहीं आर्थिक सशक्तिकरण भी हुआ.

गैर लाभकारी संस्था स्नेहा की जेसू रेथीनम के मुताबिक, "कमाने वाले पुरुषों पर कम निर्भरता ने लिंग भेद को कम किया है, पुरुष प्रधान प्रणाली भी इससे कमजोर हुई है." अधिक से अधिक महिलाएं अब संपत्ति में साझेदारी पर जोर दे रही हैं और बैंक के खातों में अपना नाम जुड़वा रही हैं. ऐसा इसलिए है कि वे पति की मौत के बाद जटिल प्रक्रिया से बचना चाहती हैं. महिला संघ की नेता अरुलज्योति कोमाधि कहती हैं कि इस विकास की वजह से लिंग भेदभाव और घरेलू हिंसा भी कम हुई है.

महिला संस्थाएं अब अब अपना ध्यान मछुआरा समुदायों में सामाजिक सुधारों पर डाल रही हैं. विधवाओं के पुनर्विवाह को सूनामी से पहले अच्छी नजरों ने नहीं देखा जाता था, लेकिन अब उन्हें स्वीकार किया जा रहा है.

एए/एमजे (डीपीए)