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मध्यपूर्व में हालात बिगड़ने की आशंका

३० मार्च २०१५

यमन में शिया हॉसी विद्रोहियों पर सऊदी अरब के नेतृत्व में अरब वायुसैनिकों के हमले पर पश्चिमी देशों की मीडिया में व्यापक चर्चा हुई है. मध्य एशिया में एक और युद्ध भड़कने की आशंका व्यक्त की जा रही है.

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Kämpfe im Jemen
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Yahya Arhab

वियना से प्रकाशित डी प्रेसे ने सैनिक कार्रवाई के खिलाफ चेतावनी दी है. अखबार ने लिखा है, "पूरी दुनिया के अत्याधुनिक हथियारों से लैस संयुक्त अरब सेना अरब दुनिया के सबसे गरीब देश के रेगिस्तानी लड़ाकों की टुकड़ी से लड़ रही है. सलमान अपने एफ-15 के साथ छुरा लिए अब्दुल मलिक के खिलाफ. लेकिन एफ-15 के साथ एक भी सेंटीमीटर जमीन न तो जीती जा सकती है और नियंत्रित की जा सकती है. यमन के शहरों और गांवों पर अरब लड़ाकू विमानों से फेंके जा रहे बम शिकारों के मन में धनी सऊदी अरबों और उनके साथियों के खिलाफ गुस्सा और नफरत और बढ़ा देंगे." अखबार ने चेतावनी दी है कि यदि सऊदी अरब का हमला सफल नहीं रहता है तो वह खुद शिया आतंकवाद का शिकार हो सकता है.

जर्मनी के दैनिक नॉएन ओस्नाब्रुकर साइटुंग ने यमन में बिगड़ती स्थिति पर टिप्पणी की है. अखबार लिखा है, "यमन की गरीब जनता को राहत नहीं है. राष्ट्रपति हादी और हॉसी विद्रोहियों के साथ महीनों के संघर्ष के बाद अब सुन्नी शासन वाला पड़ोसी सऊदी अरब शिया विद्रोहियों पर विमानों से हमला कर रहा है. अमेरिका के समर्थन से यहां छद्मयुद्ध भड़क रहा है जो हॉसी को ईरान से मिल रहे समर्थन के कारण कभी भी भड़क सकता है." हमले को खतरनाक बताते हुए अखबार ने लिखा है, "अरब प्रायद्वीप बारूद का ढेर है जो बेहद गरीब देश में हालात बिगड़ने पर हर समय फूट सकता है. समय की मांग है कि विश्व समुदाय एकजुट हो ताकि मध्यपूर्व में एक और देश स्थायी रूप से नष्ट न हो जाए और और लोगों को आतंक और युद्ध से भागना पड़े."

Jemen Sanaa Luftschläge Saudi Arabien Luftabwehr
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Sinan Yiter / Anadolu Agency

बर्लिन के दैनिक टागेस्श्पीगेल ने यमन में मिस्र की भागीदारी पर चिंता व्यक्त करते हुए लिखा है, "मोहम्मद मुर्सी के खिलाफ सैनिक विद्रोह के बाद खाड़ी के देशों ने पूर्व सेना प्रमुख फतह अल सिसी को 25 अरब डॉलर की मदद दी है. बदले में इन देशों के सुल्तान चाहते हैं कि जरूरत पड़ने पर मिस्र अपने सैनिक भेजे. अब वह समय आ गया है और वह भी यमन में जहां 60 के दशक में मिस्र अपने 26,000 सैनिक गंवा चुका है." अखबार ने आम नागरिकों की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए लिखा है, "इस खींचतान में सीरिया, इराक और लीबिया की तरह आम आदमियों का भविष्य दब जाएगा. हमले के पहले दो दिन में दर्जनों लोग मारे गए हैं. 2.4 करोड़ आबादी की आधी, सालों से कुपोषण और भुखमरी का शिकार है. देश के एक हिस्से में पीने का पानी खत्म हो जाएगा. अरब दुनिया में अगली बड़ी शरणार्थी समस्या पैदा हो रही है."

बर्लिन से प्रकाशिक दैनिक डी वेल्ट ने यमन पर हमले को मध्यपूर्व में सत्ता संघर्ष का नतीजा बताया है. अखबार लिखता है, "ईरान के खाड़ी में प्रभावी ताकत के रूप में उभरने को सऊदी हाथ पर हाथ धरे स्वीकार नहीं करेंगे. अखिल अरब सेना बनाने की घोषणा चेतावनी है, जिसे मिस्र और सऊदी अरब ने ईरान पर क्रेंदित किया है. यमन के पूरे इलाके को युद्ध में धकेलने का खतरा कम नहीं है. इस चिंगारी को अकेला अमेरिका ही बुझा सकता है जो सऊदी और ईरान दोनों से बात कर रहा है.

फ्रैंकफुर्ट से प्रकाशित दैनिक फ्रांकफुर्टर अलगेमाइने का कहना है कि हॉसी पर हमले के जरिए सऊदी अरब ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है जिसके विकास को रोकना संभव नहीं. अखबार लिखता है, "एक सामरिक गठबंधन बना है जिसका मकसद ईरान के साथ विवाद को भड़कने देना है. इसका लक्ष्य अमेरिका और यूरोप पर एक पक्ष का समर्थन करने का दबाव डालना भी है. जैसे और कोई समस्या ही न हो, हमारे लिए ईरान और सुन्नी देशों के बीच संघर्ष की ही कमी थी."

ऑस्ट्रिया के अखबार डेय श्टंडार्ड ने यमन में चल रहे संघर्ष का विश्लेषण करते हुए लिखा है, "यमन में अंतरिम प्रक्रिया का खांका खींचने वाली विदेशी ताकतें, मुख्य रूप से अरब देश और अमेरिका निःसहाय हैं. सऊदी अरब और अन्य देश यमन को धन देना बंद कर देंगे. आर्थिक स्थिति के और बिगड़ने पुराने विवाद फिर से भड़केंगे, नए शुरू होंगे. यह वही माहौल है जिसमें अल कायदा बढ़ता है. जब से पेरिस के एक हमलावर ने यमनी अल कायदा का नाम लिया है तब से वह फिर से अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के मानचित्र पर है."

एमजे/ओएसजे (एएफपी)