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मध्यपूर्व पर बदलता भारतीय रुख

२४ जुलाई २०१४

भारत सरकार इस्राएल और फिलिस्तीन के प्रति अपनी नीति में लगातार संतुलन लाने की कोशिश में है ताकि वह किसी एक पक्ष की तरफ झुकी हुई न दिखे जबकि पहले वह दो टूक ढंग से फिलिस्तीनी संघर्ष का समर्थन किया करती थी.

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Gaza Offensive
तस्वीर: Reuters

बुधवार को भारत ने रूस, ब्राजील, दक्षिणी अफ्रीका और चीन के साथ मिल कर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में पेश फलिस्तीनी प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया, जबकि यूरोपीय देशों ने वोट में हिस्सा नहीं लिया और अमेरिका ने उसके खिलाफ वोट डाला. प्रस्ताव में इस्राएली हमलों की जांच की मांग की गई है. लेकिन क्या विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का संसद में दिया गया बयान पूरी तरह सही है कि भारत की इस्राएल के प्रति नीति में कोई बदलाव नहीं आया है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की इस्राएल के प्रति गर्मजोशी अब किसी से छिपी नहीं है. वर्तमान गाजा संकट पर उसका रुख इस बात का पुख्ता संकेत है कि भारत की इस्राएल और फिलिस्तीन के प्रति नीति में काफी बदलाव आ चुका है. अब वह फिलिस्तीन को केवल शाब्दिक समर्थन देकर ही अपना पल्ला झाड़ना चाहती है जबकि उसकी असली दिलचस्पी इस्राएल के साथ भारत के संबंधों को अधिक से अधिक प्रगाढ़ बनाने में है. समूचे विपक्ष की मांग और संसद में लगभग एक सप्ताह तक अनेक बार दोनों सदनों की कार्यवाही को स्थगित किए जाने को नजरंदाज करते हुए मोदी सरकार ने बहुत मुश्किल से केवल राज्यसभा में इस मुद्दे पर बहस होने दी.

क्या करे सरकार

उसके सामने कोई चारा भी नहीं था क्योंकि राज्यसभा में उसके पास बहुमत नहीं है और सदन के सभापति एवं पूर्व राजनयिक हामिद अंसारी ने स्पष्ट कर दिया था कि विपक्ष की मांग और उसके द्वारा लगातार कार्यवाही ठप्प करने को अधिक दिनों तक अनदेखा नहीं किया जा सकता और गाजा में चल रहे संघर्ष पर चर्चा कराई जाएगी. सरकार को उनकी बात माननी पड़ी लेकिन उसने चर्चा एक ऐसे नियम के तहत कराई जिसमें मतदान या प्रस्ताव पारित कराने का प्रावधान नहीं है. इस तरह मुद्दे पर निंदा प्रस्ताव पारित कराने का विपक्ष का प्रयास टांय टांय फिस्स होकर रह गया.

इस्राएल के प्रति भारत की नीति में बदलाव अचानक नहीं आया है और न ही इस बदलाव के लिए अकेले बीजेपी और उसकी सरकार जिम्मेदार है. इस बदलाव की शुरुआत कांग्रेस की ओर से तब हुई जब उस पर नेहरू परिवार के बजाय प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव का वर्चस्व था. उनकी सरकार ने ही 1992 में इस्राएल को राजनयिक मान्यता दी थी. लेकिन राजनीतिक स्तर पर भारत और इस्राएल के बीच गर्मजोशी तब बढ़ी जब कारगिल युद्ध के समय उसने भारत के अनुरोध पर तत्काल तोपों के लिए गोलों की सप्लाई की.

उसके बाद से 2004 तक प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने इस्राएल के साथ राजनीतिक निकटता बढ़ाने की कोशिश जारी रखी. साल 2000 में लालकृष्ण आडवाणी इस्राएल की यात्रा पर जाने वाले भारत के पहले वरिष्ठ मंत्री बने. 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार बनने के बाद राजनीतिक स्तर पर तो संबंधों में ठंडक आ गई. लेकिन रक्षा और विज्ञान के क्षेत्रों में और दोनों देशों की खुफिया एजेंसियों के बीच सहयोग लगातार बढ़ता गया.

बीजेपी और इस्राएल

वर्तमान विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भारत इस्राएल संसदीय मैत्री समूह की अध्यक्ष रह चुकी हैं. 2006 में नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में इस्राएल गए थे. अब इस बात की पूरी संभावना है कि वह इस्राएल की राजकीय यात्रा पर जाने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री के रूप में याद किए जाएं और उनके कार्यकाल में इस्राएल के प्रधानमंत्री भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत करें. जहां 2009 तक भारतीय विदेश मंत्रालय अपने हर बयान में इस्राएल की स्पष्ट शब्दों में निंदा करता था, वहीं 2012 में जारी बयान में उसने इस्राएल और फलिस्तीन दोनों के द्वारा गाजा में की जा रही हिंसा पर गंभीर चिंता व्यक्त की और उनसे संवाद बहाल करने की अपील की. अब भी 8 जुलाई को जारी बयान में उसने इस्राएल द्वारा नागरिक आबादी पर किए जा रहे हवाई हमलों और हमास द्वारा इस्राएल पर रॉकेटों द्वारा किए जा रहे हमलों की एक साथ आलोचना की है लेकिन किसी की भी निंदा करने से परहेज किया है.

मोदी सरकार के रुख पर विपक्ष संसद में तो हंगामा मचा पाया, पर देश में जनमत तैयार करने में उसे कोई सफलता नहीं मिली. जो लोग इस्राएली हमलों की भीषणता और अमानवीयता के इतिहास से परिचित हैं और उसे आज भी दुहराया जाता देख रहे हैं, वे उसके सख्त खिलाफ हैं, लेकिन स्पष्ट रुख नहीं ले पा रहे हैं. ऐसे में भारत सरकार के लिए संभव नहीं कि वह पहले की तरह दो टूक ढंग से इस्राएल की भर्त्सना कर सके. और तब तो कतई नहीं जब विदेश नीति की कमान बीजेपी के हाथों में हो जिसका इस्राएल प्रेम उस समय से जगजाहिर है जब वह भारतीय जनसंघ हुआ करती थी.

ब्लॉग: कुलदीप कुमार

संपादन: अनवर जे अशरफ