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नेतन्याहू का काउंटरप्रोडक्टिव उपदेश

४ मार्च २०१५

इस्राएली प्रधानमंत्री नेतन्याहू का कांग्रेस में दिया विवादास्पद भाषण अमेरिका को ईरान से साथ परमाणु समझौते की ओर आगे बढ़ने से रोकने के बजाए खुद इस्राएल के मुद्दे पर बांटने वाला साबित हुआ.

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USA Washington Rede Benjamin Netanjahu Congress
तस्वीर: Reuters/J. Roberts

उम्मीद लगाई जा रही थी कि नेतन्याहू कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित कर अमेरिकी कानून निर्माताओं को ईरान के परमाणु कार्यक्रम से संबंधित उस "खराब समझौते" के बारे में चेताएंगे, जिस पर ओबामा प्रसासन और पांच अन्य अंतरराष्ट्रीय शक्तियां सहमत होने का मन बना रही हैं. इस प्रशंसनीय मकसद में केवल एक समस्या थी. अगर इस्राएल के अलावा कोई और ओबामा को ईरान के साथ परमाणु कार्यक्रमों पर समझौता करते नहीं देखना चाहता, तो वह है वॉशिंगटन स्थित नई रिपब्लिकन-नियंत्रित अमेरिकी कांग्रेस. यह बात शुरु से ही साफ दिख रही थी जब इस्राएली प्रधानमंत्री का हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में तालियों की गड़गड़ाहट के बीच प्रवेश हुआ.

द्विपक्षीय सहयोग

नेतन्याहू के प्रधानमंत्री बनने से काफी पहले से ही अमेरिका की दोनों बड़ी पार्टियों ने इस्राएल, उसके हितों और उसके नाजुक सुरक्षा परिदृश्य का समर्थन किया है. आजकल वॉशिंगटन में बिरले ही किसी मुद्दे पर एकमत रखने वाले राजनीतिक दल भी इस्राएल को लेकर मोटे तौर सर्वसम्मति में दिखाते हैं.

यही कारण था कि नेतन्याहू और रिपब्लिकल नेता जॉन बोएह्नर ने ओबामा से सलाह लिए बगैर इस्राएली पीएम के कांग्रेस संबोधन करने की योजना बनाई, उसके पहले ही कई रिपब्लिकल और डेमोक्रैट कानून निर्माता ईरान के साथ ऐसी किसी भी डील का विरोध करने की मंशा जाहिर कर चुके थे जो इस्राएल की वैध सुरक्षा चिंताओं को नजरअंदाज करे. नेतन्याहू अमेरिकी राजनीति के इस पक्ष को बहुत अच्छी तरह जानते हैं.

मिसाल के तौर पर, कई सालों तक रिपब्लिकन सीनेटर जॉन मैकेन ईरान के मुद्दे पर ओबामा शासन की आलोचना करते रहे हैं. जनवरी में मैकेन ने उन्हें तेहरान के साथ किसी समझौते पर पहुंचने को भ्रामक कदम बता दिया था. कई और लोगों ने भी इस विषय पर टिप्पणियां करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. हाल ही में डेमोक्रैट सीनेटर चक शूमर ने कहा, "मुझे इन ईरानियों पर भरोसा नहीं है."

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डॉयचे वेले के मिषाएल क्निगेतस्वीर: DW/P. Henriksen

ओबामा की आलोचना को कोई भले ही सही ठहराए लेकिन यह भी सच है कि वह एक राजनैतिक यथार्थवादी हैं. वह इसका मर्म अच्छी तरह समझते हैं कि ऐसी किसी भी संभावित डील को अमेरिका में राजनैतिक हरी झंडी नहीं मिलेगी, जो इस्राएल की चिंताओं का पर्याप्त ख्याल ना रखती हो.

मुंह पर चमाचा

ईरानी शासन और उनके साथ संभावित खराब समझौते के खतरे गिनाने के अलावा भी नेतन्याहू के भाषण में बहुत कुछ था. उसमें इस्राएल के लिए काफी कुछ करने वाले ओबामा की अनिवार्य सी लगने वाली प्रशंसा भी थी, तो एक राजनैतिक तमाचा भी. यह केवल बराक ओबामा के घरेलू मोर्चे पर ही नहीं बल्कि अमेरिकी विधिनिर्माताओं के लिए भी था.

ओबामा के लिए उस नेता की तरफ से ऐसे बयान उसकी जिद दिखाते हैं, जिस विदेशी राष्ट्रप्रमुख के साथ उन्होंने सबसे ज्यादा मुलाकातें की हैं. ओबामा ईरान के साथ जिस ऐतिहासिक डील के लिए इतने प्रयास कर रहे हैं उसके ही खिलाफ नेतन्याहू का खुलेआम बोलना अभूतपूर्व है. राजनैतिक कायदों के हिसाब से भी यह एक अपमानजनक कदम है कि ऐसे बयान तब दिए जाएं, जब इस्राएल में चुनाव होने में 13 दिन से भी कम बचे हों.

अलग थलग डेमोक्रैट

अपने भाषण में वह ईरान के साथ एक बेहतर डील करने की वकालत तो करते रहे लेकिन इसके लिए कोई व्यवहारिक रास्ता सुझाने का सुनहरा मौका चूक गए. इससे बहस आगे बढ़ी होती. लेकिन इसके बजाए नेतन्याहू अपनी वही पुरानी बात दोहराते रहे कि उन्हें इस 'खराब समझौते' पर आपत्ति है और इसलिए कांग्रेस तेहरान की ओर सख्ती बरते.

अंत में यही कहा जा सकता है कि नेतन्याहू की टिप्पणियों ने खुद उनके ही किए दावों को झुठला दिया, जो उन्होंने अपने संबोधन की शुरुआत में किए थे. उन्होंने कहा था कि इस्राएल को राजनीति से ऊपर उठना चाहिए. अगर राष्ट्रपति ओबामा, उपराष्ट्रपति जो बाइडेन और 57 अन्य डेमोक्रैट विधिनिर्माताओं ने इस सत्र में सम्मिलित ना होने का फैसला किया तो इससे यह संकेत मिलता है कि कम से कम अभी तो इस्राएल एक बांटने वाला मुद्दा बन गया है. और यह इस्राएल के हित में तो नहीं लगता.

मिषाएल क्निगे/आरआर