1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

मंगल के पास मंगलयान

२२ सितम्बर २०१४

भारत का मंगलयान मंगल की कक्षा में जाने के लिए तैयार है. उसके तरल इंजन का परीक्षण सफल रहा और साथ ही उसके मार्ग को भी दुरुस्त कर लिया गया. अब यान के 24 सितम्बर को मंगल की कक्षा में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त हो गया है.

https://p.dw.com/p/1DGgw
तस्वीर: imago/United Archives

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो ने टि्वटर पर जारी एक बयान में कहा, "तरल इंजन को चार सेकंड के लिए चालू किया गया. साथ ही मंगलयान की दिशा भी दुरुस्त कर ली गई है. यान अब तय कार्यक्रम के मुताबिक मंगल की कक्षा में प्रवेश करेगा." मंगलयान अब तक 300 दिन और 60 करोड़ किलोमीटर की यात्रा कर चुका है.

बुधवार का दिन भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के अहम दिन साबित होगा. सब कुछ सही रहा तो भारत एशिया में मंगल पर पहुंचने वाला पहला देश बन जाएगा. मंगलयान पहले ही मंगल के के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में पहुंच चुका है. अभी तक किए गए 51 अंतरराष्ट्रीय मार्स मिशन में से सिर्फ आधे ही सफल हो पाए हैं जबकि पहली बार में तो कोई भी सफल नहीं हो सका है. भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र इसरो अपनी सफलता पर खुश है. इसरो के वैज्ञानिक मामलों के सचिव कोटेश्वरा राव ने कहा, "हमारा प्रक्षेपण, छह कक्षाओं में पहुंचाने की कोशिशें. ये सब हमने 99 प्रतिशत सफलता के साथ किया है. 24 सितंबर को ऑरबिट में जाना चुनौतीपूर्ण है लेकिन हमें पूरा विश्वास है कि हम ये कर लेंगे."

बुधवार को जब यान की गति 22.2 किलोमीटर प्रति सेकंड से कम हो कर 2.14 मीटर प्रति सेकंड रह जाएगी तब इसे मंगल की कक्षा में भेजा जाएगा. कक्षा में जाने के लिए आधे घंटे की कार्रवाई करनी होगी. राव ने बताया कि ये सब काम अंतरिक्ष यान अपने आप करेगा. इसके लिए जरूरी कमांड अपलोड की जा रही हैं, "यह चुनौतीपूर्ण कार्य होगा. मंगल 20 करोड़ किलोमीटर दूर है. सभी ग्रहों का गुरुत्वाकर्षण अलग होता है और स्पेसक्राफ्ट को कक्षा में बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है."

एक और चुनौती जो भारत के सामने है वह है, अंतरिक्ष यान से आने वाले कमजोर सिगनलों को पकड़ना. भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और स्पेन के स्टेशन इस पर नजर रखेंगे. भारत अभी तक अंतरिक्ष में 70 अलग अलग सैटेलाइट भेज चुका है. जिसमें से 40 जर्मनी और दक्षिणी कोरिया जैसे दूसरे देशों से भेजी गईं.

किफायती अभियान

भारत का अंतरिक्ष मिशन दुनिया में सबसे सस्ता कार्यक्रम है. मंगलयान की कीमत करीब आठ करोड़ डॉलर है, जबकि नासा का मार्स मिशन मेवेन रविवार को मंगल की कक्षा में पहुंच गया है. इसकी कीमत 67.1 करोड़ डॉलर का है.

मंगलयान और मेवेन दोनों ही मंगल ग्रह पर उतरेंगे नहीं बल्कि वहां के पर्यावरण के आंकड़े जुटाएंगे. कैलिफोर्निया की द प्लानेटरी सोसायटी की एमिली लाकडावाला कहती हैं, "मेवेन बड़ा है और भारत के मंगलयान की तुलना में ज्यादा सक्षम है. लेकिन आठ करोड़ डॉलर में इंटरप्लानेटरी मिशन बनाना बहुत ही सस्ता है. अगर भारत इसमें सफल हो जाता है तो दूसरे देश अपने अंतरग्रहीय अंतरिक्ष यान के प्रक्षेपण के लिए भारत की ओर देख सकते हैं."

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हाल ही में कह चुके हैं कि, "भारत दुनिया को लॉन्च की सुविधा देने की क्षमता रखता है. हमें इस लक्ष्य की ओर काम करना होगा."

सफल मंगल अभियान इस लक्ष्य की दिशा में एक बड़ा कदम होगा. राव कहते हैं, "अंतरिक्ष के मामले में तकनीकी उपलब्धियां लॉन्च वेहिकल की क्षमता, सैटेलाइट और नेविगेशन की क्षमता से आंकी जाती हैं. सफल मंगल अभियान निश्चित ही भारत के व्यावसायिक लक्ष्यों को गति देगा." नई दिल्ली में डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस इंस्टीट्यूट के अजय लेले कहते हैं, "सफल मार्स मिशन भारत के लिए एक अहम तकनीकी उपलब्धि होगी. इससे सैटेलाइट लॉन्च मार्केट में भारत का सम्मान और हैसियत बढ़ेगी और ज्यादा बिजनेस प्रस्ताव मिलेंगे."

मंगलयान के साथ 25 किलोग्राम के उपकरण और इमेजिंग उपकरण हैं. इनसे मंगल की सतह के माहौल के बारे में आंकड़े जमा किए जाएंगे. लाल ग्रह की सतह पर मीथेन गैस की उपस्थिति को आंका जाएगा. इससे पता चल सकेगा कि मंगल पर किसी तरह का जीवन संभव है या नहीं. राव ने बताया, "मिशन का मुख्य उद्देश्य तकनीकी क्षमता दिखाना और आने वाले अभियानों के लिए यह इनपुट लेना है कि हम अपने सीमित बजट और क्षमता में क्या क्या कर सकते हैं."

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने बड़ा काम किया है. फिलहाल भारत के पास दुनिया का सबसे बड़ा रिमोट सेंसिंग और संचार सैटेलाइटों का समूह है, जिसे भारत ब्रॉडकास्टिंग, मौसम के पूर्वानुमान और जियोमैपिंग के लिए इस्तेमाल करता है.

एएम/ओएसजे (डीपीए)