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भारत में हथियार बनाने की होड़

२१ अगस्त २०१४

भारत की कुछ बड़ी कंपनियों ने हथियार उद्योग में अरबों रुपये लगा दिए हैं. वे भारतीय सेना के लिए बंदूक, जहाज और टैंक बनाने की तैयारी कर रहे हैं. नई सरकार सेना का आधुनिकीकरण चाहती है.

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तस्वीर: dapd

विश्लेषकों का अनुमान है कि दुनिया में हथियारों का सबसे बड़ा आयातक देश भारत इस उद्योग में अगले 10 साल में 250 अरब डॉलर का निवेश करने वाला है. चीन हर साल हथियारों पर 120 अरब डॉलर खर्च करता है. भारत के ज्यादातर हथियार रूसी हैं.

चुनाव जीतने से पहले ही नरेंद्र मोदी कह चुके थे कि वह भारतीय सेना का आधुनिकीकरण चाहते हैं, ताकि चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी खतरों से निपटा जा सके. प्रधानमंत्री बनने के कुछ ही हफ्तों बाद उनकी सरकार ने रक्षा बजट 12 फीसदी बढ़ाने का फैसला किया. अब यह इस साल 37 अरब डॉलर का हो चुका है और सरकार ने इस दिशा में विदेशी निवेश की इजाजत दे दी है.

घरेलू उद्योग को बढ़ावा

पिछले साल सैनिक युद्धपोत आईएनएस कोलकाता का शिलान्यास करते हुए मोदी ने कहा, "मेरी सरकार ने भारत में निर्मित रक्षा तकनीक की दिशा में अहम कदम उठाए हैं. अगर हमारी सेना आधुनिक होगी तो हम शांति की गारंटी दे सकते हैं." भारत के अलावा दूसरे दक्षिण पूर्व के देश भी अपनी रक्षा तकनीक को अपने ही देश में बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं.

लार्सन एंड टूब्रो के हेवी इंजीनियरिंग प्रेसिडेंट एमवी कोतलाव का कहना है, "यह एक विशाल मौका है. हम उम्मीद कर रहे हैं कि इस पर तेजी से अमल होगा. इस बात के संकेत मिले हैं कि यह सरकार स्वदेश में निर्मित चीजों का बढ़ावा देना चाहती है." करीब 100 अरब डॉलर की कंपनी टाटा ने पिछले महीने ही कहा है कि वह अगले तीन साल में रक्षा सहित कुछ क्षेत्रों में 35 अरब डॉलर का निवेश करने वाली है.

लार्सन ने उस यार्ड पर 40 करोड़ डॉलर खर्च किए हैं, जहां सेना के लिए जहाज बनाने की योजना है, जबकि मुंबई के महिंद्रा ग्रुप ने विमान के पुर्जे बनाने की योजना को विस्तार दे दिया है. यहां वायु सेना के लिए भी निर्माण होगा.

मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर "बाई इंडिया" का नारा दिया है, जिससे उनके निवेश पर बढ़िया कमाई की उम्मीद की जा सकती है. आलोचकों का कहना है कि भारत में निर्माण करने पर ज्यादा खर्च आता है.

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आईएनएस कोलकाता पर मोदीतस्वीर: Reuters

उद्योग जगत की उम्मीद

भारतीय उद्योग किसी चीज को सीखने में माहिर मानी जाता है. लेकिन कुछ कंपनियां इस पूरे तामझाम को शक की नजर से देख रही हैं क्योंकि केंद्र सरकार ऑर्डर में देर करने और नौकरशाही तथा भ्रष्टाचार के मामलों में आए दिन घिरी रहती है.

इस दिशा में 2009 की उस योजना का भी हवाला दिया जाता है, जब 10 अरब डॉलर की लागत से फ्यूचर इन्फैंट्री कॉम्बैट व्हिकल (एफआईसीवी) की योजना बनी. सरकार ने तीन निजी कंपनियों को इसके लिए बुलाया लेकिन 2012 में अचानक इसे बंद कर दिया गया.

एडेववाइस सिक्योरिटीज के राहुल गजरे का कहना है कि महिंद्रा और टाटा सहित बड़ी कंपनियां लॉकहीड मार्टिन और जनरल डायनामिक्स के साथ मिल कर काम करना चाहती हैं. महिंद्रा के रक्षा कारोबार के प्रमुख एसपी शुक्ला का कहना है कि अगर मोदी सरकार एफआईसीवी के फैसले को दोबारा अमल में लाती है, तो उसके इरादे साफ हो जाएंगे.

लार्सन के कोतवाल बताते हैं कि कटूपल्ली शिपयार्ड को अभी भी युद्धपोत या पनडुब्बी के ऑर्डर का इंतजार है. इस बीच वहां कारोबारी जहाज बनाए जाने लगे हैं.

टाटा पावर एसईडी में रॉकेट लांचर, सेंसर और राडार बनते हैं. इसके सीईओ राहुल चौधरी का कहना है, "भारत में 2006 से नीति ठीक है. बस इसे लागू करने में दुश्वारी है."

एजेए/एएम (रॉयटर्स)