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भारत में ऑनलाइन चपरासी

२४ जुलाई २०१४

बिल भरना है, किसी को अस्पताल ले जाना है या प्रेमिका के 26वें जन्मदिन पर उसे 26 तोहफे भिजवाने हैं, भारतीय शहरों के नौकरीपेशा लोग अब ये सब काम करवाने के लिए ऑनलाइन चपरासी का सहारा ले रहे हैं.

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तस्वीर: DW/Arafatul Islam

"गेट माय पियॉन" नाम की कंपनी के पास आए दिन ग्राहकों की ऐसी ही मांगें आती हैं. संभ्रांत परिवारों के घरेलू सहायक रखने की पारंपरिक व्यवस्था को नई जीवनशैली और इंटरनेट बदल रहा है. भारत में घरेलू सहायक रखने की प्रथा काफी पुरानी है. अमीर परिवारों में कुक, सफाई कर्मचारी, ड्राइवर और दाई आदि रखे जाते हैं. दफ्तर में ऐसा काम करने वालों को चपरासी या पियॉन कहा जाता है. कंप्यूटर युग के बावजूद सरकारी विभागों में डाक, चाय, ड्रॉफ्ट जमा करवाने, ताला खोलने बंद करने का काम इन्हीं के जिम्मे आता है.

बदलता शहरी समाज

अर्थव्यवस्था और निजीकरण बढ़ने के साथ साथ प्राइवेट नौकरियों की संख्या में भी भारी इजाफा हुआ. अब प्राइवेट और सरकारी नौकरी का भेद बहुत हद तक कम हुआ है. लेकिन अच्छी प्राइवेट नौकरियां बड़े शहरों में हैं और ऐसी नौकरियां पाने वाले युवाओं को अक्सर अपने घर से दूर जाना पड़ता है. अच्छी तनख्वाह के बावजूद अकेले नौकरीपेशा लोगों के लिए 24 घंटे घरेलू सहायक रखने का कोई मतलब नहीं. लेकिन बाकी का सिस्टम इतना जटिल है कि नौकरी के साथ साथ कुछ काम करने के लिए समय निकालना मुश्किल हो जाता है. मसलन, कई जगहों पर अब भी बिजली, फोन, गैस आदि का बिल लाइन में लगकर भरना पड़ता है. कपड़े धोना, बाइक-कार की सर्विसिंग करना, जैसी चीजें भी लगी रहती हैं.

इसी जरूरत को समझते हुए 2012 में भरत अहिरवार ने मुंबई में "गेट माय पियॉन" नाम की वेबसाइट शुरू की. 29 साल के अहिरवार कहते हैं, "लोगों ने चीजें पुराने तरीके से करना बंद कर दिया है. फुल टाइम लेबर की कीमत बहुत ज्यादा है." गेट मॉय पियॉन एक तरफ जाने के 200 रुपये लेती है.

शहरों में आउटसोर्सिंग

फूड कंपनी चलाने वाले भाविन शाह के मुताबिक, "लोगों की उपलब्धता नीचे गिर रही है. सही लोगों को पाना कठिन होता जा रहा है. और भी चीजें हैं, फुल टाइम स्टाफ के साथ यह भी होता है कि आप को उन पर लगातार नजर रखनी होती है." भाविन भी अब गेट मॉय पियॉन का सहारा ले रहे हैं.

सामाजिक मुद्दों पर लिखने वाले स्तंभकार अनिल धारकर के मुताबिक भारतीय शहरों का सामाजिक और आर्थिक ढांचा बड़ी तेजी से बदल रहा है. कंपनियां अब कम से कम कर्मचारी रखना चाहती हैं, "सीनियर एक्जीक्यूटिव को अब इसके लिए भत्ता मिलता है और वो खुद अपना आदमी ढूंढता है." कई टैक्सी कंपनियां भी अब परमानेंट ड्राइवर की जगह दिहाड़ी पर ड्राइवर बुलाती हैं.

गेट माय पियॉन कई दूसरी नई कंपनियों के साथ भी काम कर रही है. कंपनी ने "चमक डायरेक्ट" नाम की कंपनी से करार किया है. चमक डायरेक्ट घरों की साफ सफाई करती है. इसी तरह ट्रावटस नामकी नई कंपनी के घर में मरम्मत का काम करवाती है.

अकेले रहने वाले या कामकाजी पाटनर्रों के लिए ये सेवाएं बड़ी राहत हैं. उन्हें कहीं से मिस्त्री नहीं खोजना पड़ता, उसे मनाना नहीं पड़ता. बस एक फोन या इंटरनेट पर रिक्वेस्ट की और काम हो गया. दूसरी तरफ कामगारों को भी सुबह सुबह शहर के किसी एक इलाके में ग्राहक के इंतजार में बैठने की जरूरत नहीं. उनकी जेब में रखा मोबाइल उन्हें कामकाज की जानकारी देता है.

लेकिन इन सब के बीच श्रम कानून पुराने ढर्रे में ही चल रहे हैं. अगर दिहाड़ी काम काज के दौरान कोई हादसा हो जाए तो कामगार के हितों की देखभाल कौन करेगा. बीमा और पेंशन जैसे सवाल भी अनसुलझे हैं. उम्मीद है कि बदलता भारत ये जवाब भी तलाशेगा. वरना विकास की आंधी अपने पीछे विनाश का मलबा छोड़ती जाएगी.

ओएसजे/एमजी (एएफपी)