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बायकाट करेंगे चाय मजदूर

१६ अप्रैल २०१४

पश्चिम बंगाल में जलपाईगुड़ी जिले की दो संसदीय सीटों पर बंद चाय बागान ही सबसे बड़े मुद्दा बन गए हैं. इलाके में आधा दर्जन चाय बागान लंबे अरसे से बंद पड़े हैं.

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तस्वीर: DW/P.N. Tewari

बंद बागानों में मजदूरों की हालत बेहद खराब है. बिजली और राशन तो बंद ही है, वहां पीने का साफ पानी तक मुहैया नहीं है. मजदूरों को छोटी-मोटी बीमारियों के इलाज के लिए दूर-दराज स्थित कस्बे तक जाना पड़ता है. ज्यादातर लोग बाहर दैनिक मजदूरी कर किसी तरह पेट पाल रहे हैं. बीमारी और भुखमरी की वजह से कई मजदूर दम तोड़ चुके हैं. इसलिए अबकी इन चाय बागान मजदूरों ने वोट बायकाट का फैसला किया है. इलाके में आदिवासी और चाय बागान मजदूरों के वोट निर्णायक हैं. उनके वोट बायकाट के फैसले ने तमाम उम्मीदवारों की नींद उड़ा दी है. इन दोनों यानी जलपाईगुड़ी और अलीपुरदुआर संसदीय सीटों के लिए 17 अप्रैल को मतदान होगा.

निर्णायक मुद्दा

जलपाईगुड़ी और अलीपुरदुआर संसदीय इलाके में यह मुद्दा निर्णायक साबित हो सकता है. यही वजह है कि तमाम दलों का चुनाव अभियान इसी धुरी पर केंद्रित है. तमाम उम्मीदवार चुनाव जीतते ही इन बंद बागानों को खुलवाने के लंबे-चौड़े दावे करते नजर आ रहे हैं. अलीपुरदुआर सीट पर तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवार दशरथ तिर्की कहते हैं, "हम चुनाव के बाद इलाके के बंद चाय बागानों को खोलने की दिशा में ठोस पहल करेंगे." इस सीट पर लेफ्ट फ्रंट के उम्मीदवार और निवर्तमान सांसद मनोहर तिर्की कहते हैं, "लेफ्टफ्रंट सरकार के राज्य की सत्ता में रहते कई बागान दोबारा खोले गए थे. लेकिन तृणमूल सरकार ने इस दिशा में कोई पहल नहीं की है."

Teegarten in Indien
तालाबंदी के विरोध में बायकाट की धमकीतस्वीर: DW/P.N. Tewari

अलीपुरदुआर सीट पर आरएसपी से तृणमूल कांग्रेस में आए दशरथ तिर्की का मुकाबला आरएसपी के सांसद मनोहर तिर्की से है. जलपाईगुड़ी सीट पिछली बार सीपीएम के महेंद्र कुमार राय ने जीती थी. अबकी उनको इस सीट पर तृणमूल कांग्रेस के विजय बर्मन से कड़ी चुनौती मिल रही है.

असंतोष भुनाने की कोशिश

भूटान की सीमा से लगे सामसिंग चाय बागान में मजदूर भुखमरी के शिकार हैं. इस बागान में लगभग ढाई हजार मजदूर काम करते थे. लेकिन यह पिछले साल नवंबर में बंद हो गया. अब इन लोगों के लिए दो जून की रोटी भी पहाड़ हो गई है. विपक्षी सीपीएम ने मजदूरों में फैले असंतोष को भुनाने की पहल की है. सीपीएम की मजदूर शाखा सीटू के नेता सुमन लामा कहते हैं, "चाय बागान मजदूरों के पास खाने के लिए कुछ भी नहीं था. हमने उनके लिए राशन की व्यवस्था की है. अबकी वे हमारा समर्थन करेंगे."

इलाके में मजदूरों की नाराजगी का आलम यह है कि पिछले दिनों दलमोड़ चाय बागान के एक असिस्टेंट मैनेजर की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई. इलाके का ढेकलापाड़ा बागान वर्ष 2002 से ही बंद पड़ा है. यहां के मजदूर अब किसी तरह गुजारा कर रहे हैं. स्थानीय लोगों का आरोप है कि इस बागान में अब तक भूख से सौ से ज्यादा मजदूर मारे जा चुके हैं.

जलपाईगुड़ी जिले के डुआर्स इलाके में डेढ़ सौ से ज्यादा चाय बागान हैं उनमें से अधिकतर में मजदूर नाराज हैं. वर्ष 1977 से ही इलाके की दो संसदीय सीटों पर सीपीएम और उसके सहयोगी दलों का कब्जा रहा है. चाय बागान मजदूरों के वोट की अहमियत समझते हुए ही हाल में इलाके में चुनावी रैली करने वाले कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी चाय मजूदरों के हितों की रक्षा का भरोसा दिया था.

Indien Politik Kongress Rahul Gandhi
राहुल ने भी किया वायदातस्वीर: UNI

मजदूरी बढ़ाने की मांग

बागान मजदूरों ने दैनिक मजदूरी 95 रुपए से बढ़ा कर ढाई सौ रुपए करने की मांग की है. लेकिन चाय बागान मालिकों की संस्था ने दलील दी है कि न्यनूतम मजदूरी में वृद्धि की स्थिति में और बागान बंद हो जाएंगे.

लेकिन चाय बागानों में वोट मांगने जाने वाले उम्मीदवारों को एक ही सवाल का सामना करना पड़ता है, क्या इस बार वोट देने से हमारा बागान खुल जाएगा? हर उम्मीदवार इसका जवाब हां में ही देता है. लेकिन अब मजदूरों का भरोसा तमाम राजनीतिक दलों से उठ चुका है. कालचीनी के पास रायमटांग चाय बागान के एक मजदूर सुरेश मुंडा कहते हैं, "इससे पहले बागान खुलवाने का वादा कर पंचायत और विधानसभा चुनाव में नेताओं ने हमसे वोट ले लिया. लेकिन बागान नहीं खुला." वह कहता है कि अबकी ज्यादातर मजदूरों ने वोट नहीं देने का फैसला किया है.

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि इलाके में बंद पड़े चाय बागानों का मुद्दा बीते कुछ चुनावों में सबसे बड़े मुद्दे के तौर पर उभरा है. हर बार चुनावों के दौरान यह खूब जोर-शोर से उछलता है, लेकिन उसके बाद फिर मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है और मजदूर तिल-तिल कर मरने पर मजबूर हो जाते हैं. अबकी मजदूरों में नाराजगी है और उनकी यह नाराजगी उम्मीदवारों को भारी पड़ सकती है.

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: महेश झा