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फेसबुक को डाटा का लालच

मथियास फॉन हाइन१ फ़रवरी २०१५

फेसबुक इस्तेमाल करने वालों को अब अपनी और भी ज्यादा निजी जानकारी देनी होगी. या तो आप इसे मानें या फिर फेसबुक छोड़ दें. डॉयचे वेले के मथियास फॉन हाइन इसे एक शैतानी समझौता बताते हैं.

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तस्वीर: Reuters/D. Ruvic

"आप इंटरनेट कंपनियों के ग्राहक नहीं हैं, आप उनके उत्पाद हैं." अमेरिका के इंटरनेट पायनियर जेरन लेनियर ने कभी यह बात कही थी. उनकी किताब का नाम "हू ओन्स दि फ्यूचर" भी इसी संदेश से प्रेरित है. अपनी किताब में उन्होंने सोशल नेटवर्किंग की दुनिया में चल रहे नए नए ट्रेंड का विश्लेषण किया है. नतीजा- फिलहाल ट्रेंड है 'बिग डाटा' का जो कि यूजर पर पूरी तरह नजर रखने और आर्थिक रूप से उनका फायदा उठाने की दिशा में जा रहा है. अपने नए नियम और शर्तें लागू कर फेसबुक आग में घी डालने का काम कर रहा है.

भविष्य की बात करें, तो बाजार भविष्य की उम्मीदों के अनुसार ही चलता है. फिलहाल बाजार फेसबुक को करीब 200 अरब डॉलर का आंक रहा है, जो कि एक साल पहले की तुलना में 65 फीसदी ज्यादा है. शेयर बाजार में लोगों को इस बात का विश्वास है कि भविष्य में फेसबुक बाजार के एक बड़े हिस्से पर छाया रहेगा. और आप इस पर अंगुली नहीं उठा सकते. पिछले साल दुनिया की इस सबसे बड़ी सोशल नेटवर्किंग कंपनी ने करीब तीन अरब डॉलर का मुनाफा कमाया है. ऐसा मुमकिन हो सका विज्ञापनों से. यूजर के पर्सनलाइज्ड विज्ञापन, जो सोच समझ कर, एक एक यूजर पर निशाना साधते हुए दिखाए जाते हैं. फेसबुक का एल्गोरिदम बताता है कि किसे कौन सा विज्ञापन देना है, और यह गोपनीय है. लेकिन कितने यूजर इन विज्ञापनों के जरिए भटकते हैं, कब वे लाइक बटन दबाते हैं, इस बारे में स्टैनफोर्ड और केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने जनवरी के मध्य में आंकड़े जारी कर दिए हैं.

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मथियास फॉन हाइनतस्वीर: DW

लाइक्स बताते हैं सब कुछ

अमेरिका और ब्रिटेन के रिसर्चरों ने एक एल्गोरिदम तैयार किया. उन्होंने पाया कि किसी यूजर के सौ से डेढ़ सौ लाइक्स का अगर विश्लेषण किया जाए, तो किसी भी व्यक्ति की शख्सियत के बारे में जो नतीजे मिलते हैं, उतने सटीक नतीजे तो उस यूजर के पार्टनर भी नहीं दे पाते. लेकिन फेसबुक सिर्फ लाइक्स के ही जरिए हमारे बारे में नहीं जानता. हम फेसबुक पर मेसेज लिखते हैं, तस्वीरें पोस्ट करते हैं, अपनी प्रतिक्रिआएं, शौक और रुचि की चीजें शेयर करते हैं. करीब 90 करोड़ यूजर रोज अपनी प्रोफाइल अपडेट करते हैं. 1.4 अरब ऐसे हैं जो महीने में एक बार इस सोशल नेटवर्किंग साइट का इस्तेमाल करते हैं.

इतनी ढेर सारी जानकारी के बाद भी फेसबुक का डाटा को ले कर लालच है, जो खत्म ही नहीं होता. अब फेसबुक ने नए नियम और शर्तें लागू कर दिए हैं. इसमें नया यह है कि फेसबुक यह भी जानना चाहता है कि उसके यूजर फेसबुक के बाहर क्या क्या करते हैं. वह यह भी जानना चाहता है कि वास्तविक जीवन में हम किस वक्त कहां मौजूद हैं. आखिरकार, फेसबुक इस्तेमाल करने वाले एक चौथाई लोग स्मार्टफोन पर इससे जुड़े हैं. और फिर आस पास के इलाकों की कंपनियों के विज्ञापन हम तक पहुंचाने का फायदा क्या होगा?

मानो या छोड़ो

जर्मन संसद बुंडेसटाग को भी इस मामले से निपटना पड़ा. सांसदों और डाटा जानकारों ने लोगों के इतने सारे डाटा के इस्तेमाल को लेकर फेसबुक की की कड़ी आलोचना की. मगर आलोचनाओं से फेसबुक कब रुका है. इस लिहाज से गूगल और बाकी कंपनियां भी कुछ कम नहीं हैं. इन बड़ी बड़ी इंटरनेट कंपनियों को अपने फायदे के लिए अपने ही नियम बनाने की आदत है. राष्ट्र के हित से इनका कोई लेनादेना नहीं. सबसे मजेदार है कि यूजर से बहुत लुभावनी बातें की जाती है, लेकिन उनकी मर्जी क्या है, इस बारे में उनसे पूछा तक नहीं जाता.

एक ही विकल्प है कि नाता ही तोड़ लें. लेकिन जो व्यक्ति जितना ज्यादा समय वहां बिता चुका है, जितनी ज्यादा तस्वीरें डाल चुका है, जितने ज्यादा कॉन्टैक्ट बना चुका है, उतना ही वह फेसबुक से दूर नहीं जाना चाहता है. यह वैसा ही है जैसा नशे की लत लगे व्यक्ति के साथ ड्रग डीलर बर्ताव करता है. लेकिन अगर यह दोस्ताना रवैया इस सिद्धांत पर है कि हमारी शर्तें मानो या छोड़ो, तो इससे तो "बिग ब्रदर" की ही याद आती है.