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अब भी 200 लापता

२२ अप्रैल २०१४

दक्षिण कोरिया में हुए नाव हादसे को करीब एक हफ्ता होने जा रहा है. अब तक 104 शव निकाले जा चुके हैं, 200 लोग अब भी लापता हैं. वक्त के साथ परिजनों की निराशा बढ़ती जा रही है.

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Südkorea Sewol Fährunglück
तस्वीर: Reuters

दक्षिण कोरिया के जिंदो द्वीप पर माहौल दर्दनाक है. पिछले दो दिन से गोताखोर डूबी हुई फेरी से लाशें निकाल रहे हैं. फेरी को अब तक अपनी जगह से हिलाया नहीं गया है. पहले यह कहा जा रहा था कि अगर कोई नाव में कहीं दबा हुआ है तो उसको जिंदा निकालने के लिए जरूरी है कि नाव ऐसी ही खड़ी रहे. हालांकि इस बीच किसी के भी जिंदा बचे होने की उम्मीद खत्म हो गयी है.

तट पर जब कोस्ट गार्ड छोटी नावों से उतरते हैं तो हरी जैकेट पहने पुलिस अधिकारी उनकी मदद के लिए फौरन आगे आ जाते हैं. सफेद चादर में ढके शवों को द्वीप पर लाया जाता है और फिर पहचान के अनुसार उनके नाम मृतकों की सूची में डाल दिए जाते हैं. अगर शरीर पर कोई पहचान चिह्न ना हो, तो कद, बालों का रंग और कपड़ों के बारे में जानकारी दी जाती है.

फिर इन्हें एम्बुलेंस में टेंटों तक पहुंचाया जाता है. एक टेंट लड़कों और पुरुषों के शवों के लिए और दूसरा लड़कियों और महिलाओं के. टेंट के बाहर जैसे ही अधिकारी नोटिस बोर्ड पर शवों की पहचान की सूची लगाने पहुंचते हैं, आसपास परिवार वाले जमा हो जाते हैं. फेरी में सवार स्कूली बच्चों के परिजनों का सारा ध्यान इस बोर्ड पर ही रहता है.

चुपचाप लाइन में खड़े रिश्तेदार अधिकारी की बातें सुनते हैं और फिर टेंट में जा कर लाश की शिनाख्त करते हैं. कुछ देर के लिए एकदम सन्नाटा छा जाता है और उसके बाद रोने की आवाजें आसपास के हर शोर को दबा देती हैं. पिछले एक हफ्ते से ये लोग हर दिन इस उम्मीद में बिता रहे थे कि शायद उनका बच्चा लौट आएगा.

अपने बच्चे को हाथ में लिए एक महिला चिल्लाती है, "मैं तुम्हारे बिना कैसे जिऊंगी? तुम्हारी मां तुम्हारे बिना कैसे जिएगी?" आसपास के लोग उसे संभालने की कोशिश करते हैं, कुर्सी पर बैठने का आग्रह करते हैं. पर वह एक ही बात दोहराती है, "मेरी बेटी मुझे वापस ला दो, मेरी बेटी ला दो." अंत में महिला को उठा कर वहां से बाहर ले जाना पड़ता है.

यही हाल उन कई मांओं का है, जिन्होंने इस हादसे में अपने बच्चे खो दिए. 104 शव निकाले जा चुके हैं. 200 अब भी लापता हैं. अपने बच्चे का इंतजार करते एक पिता ने कहा, "पहले मैं केवल दुखी था, पर अब निराश भी हूं. ऐसा लगता है कि यह इंतजार कभी खत्म ही नहीं होगा. पहले ही बहुत देर हो चुकी है. लाशें सड़ चुकी होंगी. अब तो हम बस इतना चाहते हैं कि इससे पहले कि उनकी हालत बहुत ही ज्यादा बिगड़ जाए, शव मिल जाएं."

आईबी/एएम (एपी)