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नोबेल विजेता वंगारी मथाई का निधन

२६ सितम्बर २०११

पर्यावरण से जुड़े काम के लिए 2004 में शांति का नोबेल जीतने वाली केन्या की वंगारी मथाई का 71 वर्ष की आयु में निधन हो गया. वह लंबे समय से कैंसर से पीड़ित थीं. वह नोबेल शांति पुरस्कार पाने वाली अफ्रीका की पहली महिला थीं.

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लंबे समय से कैंसर से लड़ रही थीं मधाईतस्वीर: laif

मथाई की बनाई ग्रीन बेल्ट मूवमेंट संस्था ने एक बयान में कहा, "बड़े दुख की बात है कि प्रोफेसर वंगारी मथाई के परिवार ने 25 सितंबर 2011 को उनके निधन की घोषणा की है. उनकी मौत कैंसर से जूझते हुए नैरोबी के एक अस्पताल में हुई."

1940 में पैदा हुईं मथाई ने जब 1977 में पर्यावरण के लिए अपनी मुहिम शुरू की, वह तब से ही केन्या के अहम लोगों में शुमार रही हैं. वह जीवन भर पर्यावरण संरक्षण और अच्छे प्रशासन पर जोर देती रहीं. अपनी स्थापना से ही उनकी संस्था ने पूरे अफ्रीका में 4 करोड़ पेड़ लगाए हैं. 1970 के दशक में उन्होंने केन्या में रेड क्रॉस का नेतृत्व भी किया.

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मथाई ने केन्या में पेड़ों को लोकतांत्रिक संघर्ष का प्रतीक बनायातस्वीर: picture-alliance/dpa

एक आदर्श नायिका

अपने काम के लिए मथाई ने 2004 में शांति का नोबेल पुरस्कार जीता. यह सम्मान उन्हें अपने देश केन्या में पर्यावरण के संरक्षण और फिर से जंगल लगाने के लिए दिया गया. इसके अलावा मथाई को 2002 में संसद सदस्य भी चुना गया और वह सहायक पर्यावरण मंत्री बनाई गईं. वह 2003 से 2005 तक इस पद पर रहीं. तलाकशुदा मथाई के परिवार में अब तीन बच्चे और एक पोता है.

केन्या के बाहर मथाई मध्य अफ्रीका के कांगो बेसिन फोरेस्ट को बचाने की कोशिशों में शामिल रही हैं. यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उष्ण कटीबंधीय वन है. ग्रीन बेल्ट ने अपने बयान में कहा, "जो लोग उन्हें जानते हैं, उनके लिए मथाई का जाना एक बहुत बड़ी क्षति है. वह एक मां, संबंधी, साथी, सहकर्मी, आदर्श और नायिका थीं. वह दुनिया के शांतिपूर्ण, स्वस्थ और एक बहेतर जगह बनाना चाहती थीं."

पौधों से लोकतंत्र का संघर्ष

मथाई ने 2004 में नोबेल पुस्कार लेते हुए अपने भाषण में कहा कि उन्हें अपने काम के लिए प्रेरणा केन्या के ग्रामीण इलाके में बिताए अपने बचपन के अनुभवों से मिली. वह देखती थी कि जंगलों को काटा जा रहा है और उनकी जगह मुनाफा देने वाले पौधे लगाए जा रहे हैं, जिससे जैव विविधता नष्ट हो गई और पानी को संरक्षित रखने की जंगल की क्षमता खत्म होती चली गई.

Wangari Maathai aus Kenia erhält in Oslo den Friedens-Nobelpreis 2004
पर्यावरण के लिए अपने काम की खातिर मथाई को 2004 में शांति नोबेल पुरस्कार से नवाजा गयातस्वीर: AP

मथाई ने कहा कि वैसे तो ग्रीन बेल्ट मूवमेंट की पौधारोपण मुहिम ने शुरुआती तौर पर शांति और लोकतंत्र के मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन वक्त के साथ यह साफ हो गया कि पर्यावरण का जिम्मेदार शासन लोकतंत्र के बिना संभव नहीं. उनके मुताबिक, "इसीलिए पेड़ केन्या में लोकतांत्रिक संघर्ष का प्रतीक बन गए. लोगों से कहा गया कि वे सत्ता के व्यापक दुरुपयोग, भ्रष्टाचार और पर्यावरण के कुप्रबंधन के खिलाफ आवाज उठाएं."

ग्रीन बेल्ट ने कहा कि मथाई के अंतिम संस्कार का कार्यक्रम जल्द ही बता दिया जाएगा.

रिपोर्ट: एजेंसियां/ए कुमार

संपादन: ए जमाल

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