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दोराहे पर खड़ा मध्यपूर्व

टॉर्स्टन टाइषमन/एएम२० नवम्बर २०१४

येरुशलम के यहूदी पूजा स्थल में श्रद्धालुओं पर हमले से इस्राएल फलिस्तीन के बीच संघर्ष एक नए मोड़ पर पहुंच गया है. डीडबल्यू के टोर्स्टन टाइषमन सवाल करते हैं कि कौन इन निरर्थक हत्याओं को रोकेगा.

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तस्वीर: Reuters/R. Zvulun

येरुशलम में विवाद एक ऐसे बिंदू पर पहुंच गया है जिससे सभी को एक बात साफ हो जानी चाहिए कि इस्राएली और फलिस्तीनी विवाद में हिंसा एक भी दिन आगे न बढ़े. ये सभी के धड़ों पर लागू होता है. यहूदी धर्मस्थल पर हुए हमले से ये आशंका प्रबल होती है कि अगर वे विवाद धार्मिक रंग ले लेता है तो दोनों के बीच का राजनीतिक और सीमाई विवाद कभी नहीं सुलझ सकेगा.

येरुशलम के हार नोफ इलाके में हुई हत्याएं क्रूर और निरर्थक हैं. हमास जैसे फलिस्तीनी गुटों ने इस हमले को इस्राएली कब्जे के विरोध में किया हमला बता कर बड़ा बनाने की कोशिश की है. यह असंभव है. अमेरिकी विदेश मंत्री केरी ने कहा था कि हत्या कोई इंसानी व्यवहार नहीं है और उनकी बात सही है.

सिर्फ बदले की बातें

अपनी सफाई देने के लिए कही गई बातें इसका सबूत हैं कि मध्यपूर्व का विवाद कितना क्रूर और अमानुषिक हो गया है. दक्षिणपंथी यहूदी इस्राएली लोगों की ओर से बदले की मांग और फलिस्तीनियों के लिए साझा दंड, इसी विचारधारा का एक और उदाहरण है.

Deutschland Bayerischer Rundfunk Torsten Teichmann
टॉर्स्टन टाइषमनतस्वीर: BR/Theresa Högner

ताजा हालात से विवाद नहीं सुलझेगा. इस तपे हुए माहौल में सबसे बड़ी जिम्मेदारी राजनैतिक धड़े की है. लेकिन वह विफल है. इस्राएली प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू ने फलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास को इस हमले के लिए जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने आरोप लगाया है कि अब्बास ने इस्राएल विरोधी भावना भड़काई और गुस्से का एक दिन घोषित किया और इसी कारण हमला हुआ. वित्त मंत्री नफ्ताली बेनेट ने तो अब्बास को सबसे बड़ा फलिस्तीनी आतंकी करार दे दिया. यह राजनीतिक लड़ाई है जिससे दक्षिणपंथी मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की जा रही है, और कुछ नहीं.

ये आरोप इस्राएली सच्चाई से भी दूर हैं. इस्राएल की गोपनीय सेवा के प्रमुख शिन बेट ने नेताओं के विपरीत कहा है कि राष्ट्रपति अब्बास ने आतंक पैदा नहीं किया. अब्बास ने नागरिकों पर होने वाले आतंकी हमले की निंदा की है, भले ही हमला किसी ने भी किया हो.

लेकिन अब्बास से भी सवाल करना होगा कि क्या अस अक्स मस्जिद की हर कीमत पर रक्षा करने की अपील से क्या हालात शांत हो जाएंगे. क्या राष्ट्रपति को सच में इस बात का जर था कि इस्राएल की रुढ़िवादी सरकार इसे फिर दो हिस्सों में बांट देगी.

दोनों दबाव में

दोनों ही धड़ों पर आतंरिक राजनैतिक दबाव बढ़ता दिख रहा है. और कुछ ज्यादा करने की राजनीतिक इच्छा शक्ति की भी कमी है. फलिस्तीन और सहयोगी देशों के साथ बने सारे पुल नेतन्याहू ने तोड़ दिये हैं. अब वार्ता के लिए कोई ऐसा धागा नहीं बचा है जिस पर नेतन्याहू शांति की बातचीत बुन सकते हों. भले ही अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी कितना ही शांति वार्ता के बारे में सोच लें. युवा और कट्टरपंथी ताकतें फलिस्तीनी राष्ट्रपति अब्बास के हाथ से ताकत छीन लें, उससे पहले वह गजा में हमास से नियंत्रण लेने के लिए लड़ रहे हैं.

वैसे तो इस्राएली और फलिस्तीनी दोनों एक ही बात चाहते हैं और वह है सुरक्षित जीवन. और इस लक्ष्य को पाने के लिए दोनों के पास एक ही तरीका हैः समझौते का. लेकिन रास्ता बिलकुल दूसरी दिशा में जा रहा है. और इस खाई में गिरने से सिर्फ राजनीतिक कदम ही बचा सकते हैं.