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तालिबान का क्रूर तर्क

१७ दिसम्बर २०१४

पेशावर में सैनिक स्कूल पर तालिबान के बर्बर हमले में सौ से ज्यादा बच्चे मारे गए. डॉयचे वेले के फ्लोरियान वाइगांड का कहना है कि घटना दिखाती है कि पाकिस्तान जैसे अनुदारवादी इस्लामी देश भी इस्लामी कट्टरपंथियों से बचे नहीं.

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Pakistan Taliban in South Waziristan ARCHIVBILD 2012
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo

संकट क्षेत्रों से नियमित रिपोर्ट करने वाला भी इस निरर्थक हिंसा के आयाम पर भौंचक रह जाएगा. और शायद यही हमलावरों के कुटिल जोड़ तोड़ के पीछे था. स्कूल पर हमला और निर्दोष बच्चों की हत्या कर तालिबान पूरी दुनिया में प्रचार पाना चाहता था. और एक सैनिक स्कूल का चुनाव भी सोची समझी रणनीति का हिस्सा था. तालिबान पाकिस्तानी समाज के केंद्र पर निशाना लगा रहा था.

उच्च और मध्यवर्गीय बच्चे

पाकिस्तान के सैनिक स्कूल अपने नाम के विपरीत कैडेटों को तैयार करने वाले स्कूल नहीं हैं. सेनाधिकारियों के बच्चों के अलावा धनी उच्च वर्ग के बच्चे भी यहां पढ़ते हैं. डॉक्टरों, प्रोफेसरों और उद्यमियों के बच्चे भी, क्योंकि पूरे देश में फैले सैनिक स्कूल देश के सबसे अच्छे स्कूलों में शामिल हैं.

अपने हमले के साथ तालिबान ने सेना के साथ साथ सरकार और समाज के नेताओं से बर्बर बदला लिया है. कई महीनों से पाकिस्तानी सेना कबायली इलाकों में तालिबान के खिलाफ अभियान चला रही है. सेना ने बार बार कामयाबी का दावा किया लेकिन वे आतंकवादियों पर पूरी तरह से जीत हासिल नहीं कर पाए हैं. इस प्रक्रिया में साथ ही इलाके के दसियों हजार लोग जो तालिबान की ही तरह पख्तून हैं, दो मोर्चों के बीच फंस गए हैं और इलाके से भाग रहे हैं. तालिबान के क्रूर तर्क में इसका जवाब बदला और प्रतिशोध है.

Pakistan Taliban-Überfall auf Schule in Peshawar 16.12.2014
पाकिस्तानी सेना के लिए बड़ी चुनौतीतस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Sajjad

समर्थक से बने विरोधी

सैनिक कार्रवाई का एक और नतीजा हुआ है. ऐसे कई गुट थे जो अंतरराष्ट्रीय टुकड़ियों और काबुल सरकार के खिलाफ अपने संघर्ष में अफगानिस्तान पर ध्यान दे रहे थे, जबकि पाकिस्तान कम से कम उन्हें बर्दाश्त कर रहा था. अब पाकिस्तानी सेना के दबाव और अपने अस्तित्व के खतरे में वे पाकिस्तान सरकार के खिलाफ भी संघर्ष चला रहे हैं.

हिंसा और प्रतिहिंसा का यह चक्र चलता रहेगा. इस चक्रव्यूह से बाहर निकलने का कोई आसान उपाय नहीं है. अब पाकिस्तान को भी पड़ोसी अफगानिस्तान में तैनात अंतरराष्ट्रीय टुकड़ियों जैसा ही कड़वा सबक सीखना होगा, जो हिंदुकुश के बीहड़ में छिपा है और हिंसा पर उतारू है, उसे जीतना संभव नहीं. और जब तक कबायली इलाकों में आम लोगों के लिए जिंदगी को बेहतर बनाने की कोई संभावना नहीं है, तालिबान को स्वर्ग में मीठे जीवन के सपने दिखाकर नए रंगरूट मिलते रहेंगे. इस्लामी आतंकवाद 21 वीं सदी की सबसे बड़े वैश्विक चुनौती है. पाकिस्तान जैसे अनुदारवादी और इस्लामी देश के लिए भी इससे बचना संभव नहीं.

ब्लॉगः फ्लोरियान वाइगांड