डॉयचे वेले हिन्दी सेवा का सफर
१४ नवम्बर २००८उस दिन के संक्षिप्त समाचारों के बाद भारत के राष्ट्रीय गान जन-गण-मन की धुन, भारत के स्वतंत्रता दिवस पर एक वार्ता और सितारवादन के साथ कार्यक्रम पूरा हुआ. शुरुआत में सिर्फ़ 15 मिनट का कार्यक्रम भारत में दोपहर को सुनाई पड़ता था. अंतरराष्ट्रीय समाचारों के बाद कुछ संगीत और जर्मन जनजीवन के बारे में दो वार्ताएं होती थीं. उस समय भारत में बहुत कम लोगों के पास रेडियो थे. इसके बावजूद जर्मनी से पहले नियमित हिन्दी प्रसारण का इतना स्वागत हुआ कि मार्च 1965 में कार्यक्रम का समय बढ़ाकर 35 मिनट कर दिया गया. भारत की उस वक्त की सबसे प्रतिष्ठित हिन्दी पत्रिका धर्मयुग ने कार्यक्रम का परिचय देते हुए एक सचित्र लेख प्रकाशित किया था.
हिन्दी कार्यक्रम की पहली संयोजिका डॉ सुषमा लोहिया के सहयोग से डॉयचे वेले प्रबंधन ने 3 फ़रवरी 1966 को अपने श्रोताओं को एक और तोहफ़ा दिया और संस्कृत भाषा में पाक्षिक कार्यक्रम की शुरुआत की गई. उस समय इस पहल की भारतीय पत्र पत्रिकाओं में जमकर प्रशंसा हुई. इलाहाबाद में हुए विश्व हिंदू सम्मेलन में विधिवत प्रस्ताव पारित कर आभार प्रकट किया गया. कई सालों तक संस्कृत भाषा में प्रसारण हुआ. हिन्दी सेवा का सफ़र अविराम जारी है और जारी है डॉयचे वेले श्रोताओं तक निष्पक्ष तरीक़े से ख़बरे पहुंचाने का सिलसिला.
सूचना प्रौद्योगिकी में आए नए बदलावों के साथ क़दमताल करते हुए डॉयचे वेले में भी बदलाव हुए हैं और 2002 से कार्यक्रम इंटरनेट पर ऑनलाइन भी उपलब्ध है. डॉयचे वेले की वेबसाइट पर पाठकों को देश-दुनिया की ताज़ातरीन ख़बरें पढ़ने की सुविधा है. साथ ही 24 घंटे में वो जब चाहें अपनी इच्छानुसार कार्यक्रम भी सुन सकते हैं. अपने श्रोताओं तक पहुंचने के लिए डॉयचे वेले निरन्तर प्रयासरत है.
हिन्दी का पहला कार्यक्रम जर्मनी के कोलोन शहर के एक घर के रसोईघर में तैयार किया गया. अक्टूबर 1980 से अगस्त 2003 तक 31 मंज़िलों वाली इमारत की आठवीं मंज़िल पर से कार्यक्रम प्रसारित हुआ. उसके बाद 1 सितंबर 2003 को डॉयचे वेले ने रुख़ किया बॉन शहर का और उसके बाद से ही राइन नदी के तट के पास स्थित डॉयचे वेले मुख्यालय से डॉयचे वेले हिन्दी तरंगों के माध्यम से अपने श्रोताओं तक पहुंच रहा है. चार दशकों से भी ज़्यादा के इस लंबे सफ़र में दुनिया बदल गई, तकनीक बदल गई, लेकिन अगर कुछ नही बदला है तो वह है डॉयचे वेले टीम में अपने श्रोताओं तक बेहतरीन कार्यक्रम पहुंचाने का जज़्बा. उम्मीद है कि ये जज़्बा आने वाले सालों में भी बरक़रार रहेगा.