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डीएनए फिंगरप्रिंटिंग के फायदे

२० सितम्बर २०१४

30 साल पहले सर एलेक जेफरीस ने अपनी लैब में डीएनए फिंगरप्रिटिंग की खोज की. इस खोज ने पूरे विश्व में हलचल मचा दी और विज्ञान को नये आयाम पर पहुंचा दिया.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Warmuth

खोज के कुछ ही महीनों बाद से सर जेफरीस प्रवासन से लेकर पितृत्व परीक्षण के मामले देखने लगे. लेकिन डीएनए फिंगरप्रिटिंग का सबसे ज्यादा फायदा अपराधियों को पकड़ने में हुआ है. इसकी वजह से अपराधों की जांच भी पहले से अलग हो गई है. सबूत अचूक हो गए. पिछले हफ्ते, अमेरिकी राज्य नॉर्थ कैरोलाइना के दो भाइयों को डीएनए सबूत के आधार पर बरी कर दिया गया. उन पर एक लड़की के बलात्कार और खून करने के आरोप थे. इनमें से एक भाई, हेनरी ली मैककलम को तो फांसी की सजा सुना दी गई थी और वह 30 साल से जेल में था.

सर एलेक कहते हैं, "यह एक यूरेका मोमेंट था. 30 सेकेंड में मेरी दुनिया बदल गई." सितंबर 1984 में पहली खोज के बाद 1985 में सर एलेक की टीम ने अपना पहला केस संभाला. 1985 के मामले के बारे में सर एलेक बताते हैं कि एक वकील प्रवासन के एक मुद्दे में फंसी थीं. उन्होंने सर एलेक को चिट्ठी लिखी और पूछा कि क्या डीएनए फिंगरप्रिंटिंग का इस्तेमाल किया जा सकता है. इससे एक लड़के और उसके परिवार के बीच संबंध साबित हो पाते. नहीं तो बच्चे को ब्रिटेन के बाहर भेज दिया जाता. लेकिन सर एलेक की मदद से बच्चे और परिवार के बीच जेनेटिक संबंध साबित हो गए.

लेकिन क्या डीएनए काफी है

टीवी और फिल्म के जरिए डीएनए फिंगरप्रिटिंग काफी मशहूर हो गई है. आम जिंदगी में भी पितृत्व स्थापित करने के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल होता है. लेकिन सिर्फ डीएनए से कुछ नहीं होता. सर एलेक कहते हैं कि डीएनए अपने आप में काफी नहीं है, "मान लीजिए कि मैंने आप से हाथ मिलाया और मेरा डीएनए आपके पास चला गया. फिर आप किसी अपराध स्थल पर पहुंचे और मैं वहां कभी नहीं गया तो डीएनए को दूसरी जगह पहुंचाने के कई तरीके हैं. हो सकता है कि इसे सबूत मानाकर आपको अपराधी मान लिया जाए. डीएनए अपराधी या बेकसूर आदमी के बारे में कुछ नहीं कहता. वह बस बताता है कि सैंपल ए व्यक्ति नंबर बी से आया है. यह डीएनए पूरी सटीकता से कर सकता है लेकिन अदालत सारे सबूतों के आधार पर मुल्जिम तय करती है, केवल डीएनए के आधार पर नहीं."

2011: बिना अपराध के मुजरिम
1987 में टेक्सस के माइकल मॉर्टन के साथ भी यही हुआ. उन्हें अपनी पत्नी के खून का आरोपी बनाया गया. जिस दिन क्रिस्टीन मॉर्टन की मौत हुई, माइकल काम पर गए थे. अपराधी मॉर्टन के घर आया, क्रिस्टीन का बलात्कार किया और उसकी हत्या की.

मॉर्टन बताते हैं, "मेरे मामले में डीएनए की संभावना थी. मुझे 1987 में कुसूरवार ठहराया गया लेकिन उस वक्त डीएनए फिंगरप्रिंटिंग के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी और लोग इसका कम इस्तेमाल करते थे. लेकिन वक्त के साथ मुझे लगने लगा कि शायद इसमें कोई बात हो क्योंकि उस वक्त तहकीकात में जो चीजें मिलीं, उन्हें या तो अनदेखा कर दिया गया या तकनीकी तौर पर पिछड़ा होने की वजह से उन्हें छोड़ दिया गया."

लेकिन डीएनए जांच के दौरान क्रिस्टीन से माइकल का ही डीएनए मिला. लेकिन पुलिस एक सबूत का जांच करवाने से मना कर रही थी. क्रिस्टीन के खूनी ने उसकी हत्या करने के बाद अपना स्कार्फ मॉर्टन के घर पर छोड़ दिया था. 2010 में जाकर स्कार्फ की जांच की गई. डीएनए जांच का सहारा लिया गया. स्कार्फ में क्रिस्टीन के डीएनए के अलावा एक और आदमी का डीएनए था. वह माइकल का डीएनए नहीं, बल्कि कैलिफोर्निया में रह रहे एक व्यक्ति का था जो टेक्सस आया था.

25 साल बिना किसी कसूर के जेल में बिताने के बाद माइकल आजाद हुए. उनका परिवार बर्बाद हो गया. बेटे से उनके संबंध कभी सहज नहीं हो पाए और पत्नी के जाने के बाद वह सही तरह से शोक भी मना नहीं पाए हैं. लेकिन कम से कम उन्हें बेकसूर साबित किया जा सका है.

रिपोर्टः ऐश्ली बर्न, रिचर्ड म्यूरी/एमजी

संपादनः ओंकार सिंह जनौटी