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जानवरों के लिए डेटिंग

२८ अगस्त २०१३

विलुप्त होते जानवरों की प्रजातियों के लिए एक ओर तो खास डेटिंग साइट्स बनाई जा रही हैं वहीं कई चिड़ियाघर जानवरों की संख्या बढ़ाने के लिए कंप्यूटर पर ही जोड़ियां ढूंढ रहे हैं.

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तस्वीर: AP

कंप्यूटरों पर जोड़ी मिलाने का एक ही कारण है कि दुनिया भर में विलुप्त होने के खतरे में पड़ी प्रजातियों को किसी तरह बचाया जाए. वेबसाइटों पर पांडा के शुक्राणु से लेकर, उनकी आनुवांशिक जानकारी और बड़े भारी गैंडों के लिए अल्ट्रासाउंड तक सब मौजूद हैं. जानवरों को ब्रीडिंग के लिए कहीं और भेजना अक्सर महंगा पड़ता है. इसके अलावा प्रक्रिया जटिल होने के साथ ही हमेशा काम करेगी ऐसा जरूरी भी नहीं.

तीन दशकों की कोशिश के बाद कुछ जानकार आधुनिक ब्रीडिंग तकनीक पर ध्यान दे रहे हैं. चिड़ियाघरों का कहना है कि वह जानवरों को एक जगह से दूसरी जगह भेजने का खर्च अब नहीं उठा सकते. क्योंकि बहुत ज्यादा प्रजातियां खत्म होने के खतरे से जूझ रही हैं.

पाले जा रहे जानवरों की ब्रीडिंग सुधारने के लिए 1970 के आखिरी सालों में अभियान शुरू हुआ. उस वक्त तक वैज्ञानिकों को समझ में आ गया था कि चिड़ियाघर में रखे गए जिराफ, हिरण, चिंकारा की प्रजातियां खत्म हो जाएंगी. वॉशिंगटन के स्मिथसोनियन नेशनल जू में सेंटर फॉर स्पीशीज सरवाइवल के प्रमुख डेविड विल्ड बताते हैं, "इसके कारण जू की सोच में एकदम बदलाव आया. उन्हें समझ में आया कि पकड़ कर रखे गए जानवरों की संख्या बनाए रखने के लिए उन्हें बेहतर तरीके से काम करना होगा."

Indische Panzernashörner
बचाने की जंगतस्वीर: AP

आज 500 से ज्यादा प्रजातियों के संरक्षण की योजना है, इसमें चीता, एशियाई हाथी और काले पैर वाले नेवले जैसे जीव शामिल हैं. चिड़ियाघर में रखे गए जानवरों की आनुवांशिक जानकारी कंप्यूटरों में सुरक्षित की जाती है ताकि वैज्ञानिक हर प्राणी के लिए सही साथी ढूंढ सकें. ये योजनाएं कुछ जीवों के लिए काम कर जाती हैं.

साल 2000 में एशियाई हिरण की प्रजाति सिमिटर हॉर्न्ड ओरिक्स को विलुप्त घोषित कर दिया गया था. कारण, बहुत ज्यादा शिकार और इनके रहने की जगहों का खत्म होना. इन हिरणों को चिड़ियाघरों में पाला जा रहा था. कुछ अब ट्यूनीशिया में भी हैं. सहारा कंजरवेशन फंड ने जानकारी दी है कि इन्हें जल्दी ही छोड़ा जा सकता है.

विल्ड के मुताबिक चीन के बड़े पांडा के लिए बनाया गया ब्रीडिंग कार्यक्रम भी "बहुत सफल" हुआ है. बीजिंग जू अपने यहां पांडा की एक निश्चित संख्या हमेशा बनाए रखता है, वह कुछ नर पांडा दुनिया भर के चिड़ियाघरों को ब्रीडिंग के लिए भी भेजता है. वॉशिंगटन के नेशनल जू में काम करने वाले वैज्ञानिक पियरे कोमिजोली कहते हैं, "पांडा साल में एक ही बच्चा पैदा करते हैं." 100 से 114 किलोग्राम भारी पांडा को प्राकृतिक रूप से गर्भधारण में मुश्किल आती है इसलिए उनमें हमेशा कृत्रिम गर्भाधान करना पड़ता है. कोमिजोली बताते हैं, हमें नर पांडा को बेहोश करके उसके शुक्राणु निकालने पड़ते हैं." इसके बाद तीन चार महीने के इंतजार के बाद ही पता चलता है कि मादा पांडा का गर्भ ठहरा या नहीं. कई साल तक इस तरह की कोशिश विफल होती रहीं. 2005 में वॉशिंगटन के नेशनल जू में पैदा हुआ पांडा बड़ा हुआ. उस साल विशेषज्ञों ने दो अलग अलग भालूओं के सैंपल इस्तेमाल किए थे.

ऐसी ही मुश्किल सुमात्रा के गैंडों की भी है. इनके लिए भी कृत्रिम गर्भाधान का सहारा लेना पड़ता है. इंडोनेशिया और मलेशिया के जंगलों में इस प्रजाति के सिर्फ 100 गैंडे बचे हैं. मादा गैंडा में प्रजनन के लिए अंडे तभी तैयार होते हैं जब आस पास कोई नर गैंडा इसके लिए हो. लेकिन हमेशा ऐसा नहीं हो पाता. सुमात्रा गैंडा पर सिनसिनाटी जू 1990 से रिसर्च कर रहा था लेकिन 2001 में पहली बार बेबी गैंडा चिड़ियाघर में पैदा हो सका, पूरे 112 साल बाद.

Bildergalerie Iranische Geparden
चतुर चीतातस्वीर: Morteza Eslami Dehkordi

छोटे जानवरों की ब्रीडिंग पर भी काफी खर्च आता है. विल्ड बताते हैं कि उनके चिड़ियाघर को साल के चार महीने में ही काले पैरों वाले 40 नेवलों की ब्रीडिंग में 10 लाख डॉलर का खर्च आया. एक समस्या और भी है, चीता और बिल्ली की बाकी बड़ी प्रजातियां कंप्यूटर मैच अप को मानती ही नहीं. विल्ड कहते हैं कि जानवरों को बचाने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि इन्हें 3,200 एकड़ की बड़ी बाड़ के भीतर रखा जाए. जहां ये इंसानों से दूर हों लेकिन फिर भी इन पर नजर रखी जा सके. और इनकी संख्या बढ़ सके.

एएम/एनआर (एएफपी)

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