1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

जहां स्त्रियां सिर्फ देह और स्तन हैं

२३ सितम्बर २०१४

एक प्रमुख मीडिया संस्थान की वीडियो न्यूज में अपने "क्लीवेज शो" को लेकर अभिनेत्री दीपिका पादुकोण का आक्रोश समझने लायक है. उन्होंने देह दिखाने वालों को जो फटकार लगाई है और जो सवाल उठाए हैं, उनसे मुंह नहीं मोड़ा जा सकता.

https://p.dw.com/p/1DHM4
Indische Schauspielerin Deepika Padukone
तस्वीर: STR/AFP/Getty Images

फिल्म की दुनिया में हाल के वर्षों में याद नहीं पड़ता कि इस तरह के तेवर और इस तरह की सख्ती किसी अदाकारा ने दिखाई होगी, जैसी दीपिका ने दिखाई है. पिता से विरासत में मिले खेल के गुण ने ही शायद उनकी रीढ़ को झुकने नहीं दिया है. दीपिका ने पूछा है कि आखिर मेरे क्लीवेज से आपको क्या समस्या है. ऐसा पहली बार देखने में आया कि दीपिका ने न सिर्फ निर्णायक बात की, बल्कि उनकी ही बिरादरी की वरिष्ठा पूजा बेदी ने जब क्लीवेज मामले को लेकर दीपिका पर ही सवाल किए, तो उनको भी एक शालीन और सधा हुआ जवाब देते हुए दीपिका ने मामले का अंत किया.

महिला सेलेब्रिटी की खबर दिखाने का मतलब यह तो नहीं कि आप उसकी निजता के तर्क को भी खारिज कर दें. हैरानी होती है कि यह वही देश है जहां एक तबका किसी देवी-देवता के चित्र में जरा भी लकीर इधर-उधर देखता है तो शोरशराबा कर बैठता है. लेकिन इंसानों के मामले में इस तबके का रवैया कुछ और ही रहता है. खासकर औरतों के प्रति नजरिया तो अभी भी एक मर्दवादी तर्क से संचालित है. चित्र में तो अपमान बर्दाश्त नहीं करेंगे लेकिन जीवित व्यक्ति की गरिमा और सम्मान को हो रहे नुकसान पर दाएं-बाएं झांकने लगेंगे. इन्हीं चुप्पियों ने आखिरकार औरतों के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा दिया है.

मीडिया पर दबाव

दूसरी ओर पत्रकारीय पेशे में जो नये दबाव हैं, मनोरंजन उद्योग और समाचार मीडिया का हाल के वर्षों में जो उपभोक्ताकरण हुआ है, सब मिलाकर मालिकों की प्रतिस्पर्धाओं ने ऐसी फांस काम करने वालों के गले मे डाल दी है कि वे जाएं तो जाएं कहां. इंफॉर्मेशन की जगह इंफोटेनमेंट ने ली है. इस बदलाव में सूचना और खबर का ह्रास तो तय मानिए. मनोरंजन में आप इसी तरह से चीजें पेश करते हैं. अर्धनग्न देहें, नंगी टांगे, सेक्स, कामोत्तेजक सामग्री और इसी चक्कर में आप उस दरार में गिर जाते हैं जो मीडिया के उसूलों और पत्रकारीय नैतिकता में इधर बढ़ती ही जा रही है और जहां से दीपिका ने सबको कसकर चपत लगाई है.

Screenshot Twitter #IStandWithDeepikaPadukone

मुख्यधारा के सिनेमा की एक अभिनेत्री गंभीरतापूर्वक अपना विरोध दर्ज कराती है तो कई लोगों को लगता है यह तिल का ताड़ बनाया जा रहा है, कुछ कहते हैं यह सुर्खी बटोरने का तरीका है क्योंकि उनकी एक फिल्म चल रही है और एक आने वाली है. दीपिका के बयानों को अगर गौर से पढ़ेंगे तो समझ जाएंगे कि यह जोखिम उन्होंने मोल लिया है. बॉलीवुड ने बेशक उनका समर्थन किया है लेकिन दीपिका का मैसेज उस बॉलीवुड के मर्दवाद के लिए भी है जो अपनी इंडस्ट्री में अंग प्रदर्शन और सेक्स को एक व्यवस्था की तरह मान चुका है. लेकिन इन फिल्मों के सेक्स सीन कोई गंभीर सिने अभिरुचि का हिस्सा नहीं बन पाते, महान विश्व सिनेमा से उसका कोई जुड़ाव तो भूल ही जाइए, वे महज वासना और अप्रियता भड़काते हुए नजर आते हैं. दीपिका का स्टैंड काश आने वाले दिनों में कोई एक बड़ी नजीर बन पाता.

सॉफ्ट पोर्न वाला समाज

स्त्री को सिर्फ कामुकता की वस्तु के रूप में देखने वाला समाज, उसके स्तन ही घूरता रहता है. यह देश शायद सेक्स और शरीर के प्रति अभी भी दिवालिएपन से घिरा है. आज के मनोरंजन उद्योग का एक हिस्सा उसकी वैचारिकता को जसकातस बनाए रखता है क्योंकि उसमें वो अपार मुनाफा देखता है. इस तरह कितना भयानक है कि हमारा समाज एक सॉफ्ट पोर्न वाला समाज बनता जा रहा है. उसूल, आचार, नैतिकताएं एक एक कर धराशायी हो रही हैं. हम आखिर स्त्रियों के कपड़ों और उनके शरीरों और उनके सौंदर्य को सहजता से लेना कब सीखेंगे.

दीपिका ने अपने साथ हुई "बदसलूकी" को निजी गरिमा के हनन के साथ साथ समूची स्त्री जाति के प्रति नाइंसाफी के साथ भी जोड़ दिया है. उनका एक ट्वीट कहता है कि महिला सशक्तिकरण की बात करने से पहले, महिलाओं का सम्मान करना तो सीखो.

उनका कदम इसलिए भी सराहनीय है क्योंकि कुछ दिन पहले ही उन्होंने आंध्रप्रदेश की एक युवा प्रतिभाशाली अदाकारा के संघर्षपूर्ण जीवन और देह के कारोबार में नाम आने के बाद उनका मजबूती से पक्ष लिया था. आपने देखा ही होगा कि मीडिया ने कैसे वह नाम उछाला और कैसी खबरें दिखाईं. उस संभावनाशील अभिनेत्री की तकलीफ का मर्म जानने की फुर्सत किसे भला क्यों होगी.

ब्लॉगः शिवप्रसाद जोशी

संपादन: ईशा भाटिया