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जलवायु संरक्षण पर ईयू का फैसला

बैर्न्ड रीगर्ट/एएम२४ अक्टूबर २०१४

अब बात 40 प्रतिशत की है. यूरोपीय संघ को जहरीली गैसों का उत्सर्जन इस सीमा तक कम करना है. यूरोपीय संघ दुनिया में पहला है जिसने 2015 के जलवायु सम्मेलन से पहले अपने लिए ये लक्ष्य तय किया है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

यूरोपीय नेताओं की मैराथन मीटिंग में जो फैसला लिया गया वह एक जटिल समझौता है. यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष हैरमन फान रॉमपॉय ने नतीजे का सार बतायाः 2030 तक जहरीली गैसों के उत्सर्जन में 40 फीसदी की कमी. फिर से इस्तेमाल की जा सकने वाली ऊर्जा का 27 फीसदी हिस्सा और ऊर्जा सामर्थ्य 27 प्रतिशत बढ़ाना. रॉमपॉय ने ये बताते हुए कहा, "यह आसान नहीं था. लेकिन यह एक महत्वाकांक्षी, निष्पक्ष और फायदेमंद फैसला है."

पोलैंड की मांग

पोलैंड की प्रधानमंत्री एवा कोपाच ने ब्रसेल्स में जारी शिखर वार्ता में अहम भूमिका निभाई. शुरुआत में उन्होंने जलवायु परिवर्तन के फैसले पर वीटो की धमकी दी थी. वह जहरीली गैसों के उत्सर्जन को 40 फीसदी कम करने के लक्ष्य से तो सहमत थीं लेकिन नवीनीकृत ऊर्जा की हिस्सेदारी 30 फीसदी करना उनके लिए बहुत ज्यादा था. साथ ही वे बिजली की खपत में कटौती के लक्ष्य को भी 30 फीसदी से नीचे रखने के पक्ष में थीं. लेकिन सबसे अहम उनके लिए था कि उनके देश में कोयला बिजली संयंत्र चलते रहें और दूसरे ईयू देशों की मदद से उनका आधुनिकीकरण किया जाए. पोलैंड अपनी बिजली का 90 फीसदी कोयले से बनाता है.

EU Gipfel in Brüssel
तस्वीर: Carl Court/Getty Images

जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्कल और फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांसोआ ओलांद ने पोलैंड को जरूरी मदद देने का वादा किया. यूरोपीय संघ के 28 सदस्यों देशों में हर को अपने ऊर्जा सेक्टर ही हालत और आर्थिक क्षमता के हिसाब से अलग अलग सीमा तक ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करना है, कुल उत्सर्जन 40 फीसदी कम होना चाहिए. पूर्वी सदस्य देशों को इसका कम भार उठाना पड़ेगा.

ब्रिटेन का विरोध

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने एक और मांग की कि जलवायु संरक्षण के लक्ष्य का एक हिस्सा अनिवार्य नहीं किया जाए. हर देश अपने हिसाब से तय करे कि वह किस तरह बिजली बनाना चाहता है और पर्यावरण संरक्षण के लिए बिजली, गैस और तेल का इस्तेमाल कैसे कम करना चाहता है. स्वीडन जैसे कुछ देश जो कई मुद्दों को अनिवार्य बनाना चाहते थे उन्हें आखिरकार चुप बैठना पड़ा. इस समझौते के छोटे छोटे बिंदू अभी तय किए जाने हैं और इस समझौते को अभी ईयू कानून में भी ढालना बाकी है. यूरोपीय संघ के सदस्य देश अपनी सीमा से बाहर भी ऊर्जा नेटवर्क का विस्तार करेंगे.

EU Gipfel in Brüssel
तस्वीर: Carl Court/Getty Images

फ्रांसीसी राष्ट्रपति ओलांद ने शिखरवार्ता के शुरुआत में कहा था कि यूरोप को उन देशों के लिए एक उदाहरण बनना चाहिए जो पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन के मामले में अभी इतने आगे नहीं आए हैं. उन्होंने कहा "हमें चीन और अमेरिका को राजी करना होगा. यूरोपीय कमीशन के मुताबिक दुनिया में सबसे ज्यादा जहरीली गैसों का उत्सर्जन चीन और अमेरिका ही करते हैं. यूरोपीय संघ सिर्फ 10 फीसदी ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन का ही जिम्मेदार है.

अगुआ भूमिका

ओलांद 2015 में होने वाले विश्व जलवायु सम्मेलन से उम्मीद लगाए हैं कि वहां क्योटो प्रोटोकॉल के बाद का समझौता हो सकेगा. क्योटो प्रोटोकॉल में तय किया गया था कि 1990 की सीमा से 20 फीसदी कम ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन किया जाएगा. अमेरिका ने इसमें कभी सुधार नहीं किया. चीन काफी देर से इस लक्ष्य से जुड़ा. यूरोपीय संघ आयोग के अध्यक्ष जोसे मानुएल बारोसो ने कहा, "हमारे फैसले के साथ ही हम इस अभियान में सबसे आगे रहेंगे."

Infografik Globale Temperaturentwicklung seit 1880/englisch

यूरोप के औद्योगिक संघों और ऊर्जा कंपनियों को डर है कि अगर जलवायु संरक्षण के नियम बहुत ही कड़े कर दिए गए तो यहां की कंपनियों की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता कम हो जाएगी. उद्योग यूरोप से निकल कर दूसरे इलाकों में चले जाएंगे. कई यूरोपीय संघ के देशों की दलील थी कि आर्थिक विकास को पर्यावरण संरक्षण के आगे रखा जाना चाहिए. जबकि पर्यावरण के लिए लड़ने वालों का दावा है कि नए ऊर्जा क्षेत्र के कारण नौकरी की संभावनाएं बढ़ेंगी और तकनीक निर्यात की संभावना भी.

शिखर वार्ता के दौरान इबोला से बचने के लिए इकसठ करोड़ अस्सी लाख यूरो की राशि देने की घोषणा की गई है. इसमें एक हिस्सा सीधे पश्चिमी देशों को दिया जाएगा. और यूरोप में डॉक्टरों और नर्सों को इबोला मरीजों के इलाज की ट्रेनिंग दी जाएगी.