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जर्मनी में नात्सी यातना की पढ़ाई

३० मार्च २०११

जर्मनी का नात्सी इतिहास पूरे देश की अंतररात्मा को अब भी कचोट रहा है. कई सालों तक बर्लिन में नात्सी यातनी में मरने वाले लोगों के लिए एक स्मारक बनाने पर विवाद चलता रहा. छात्र ऐसे भी इतिहास की पढ़ाई करते हैं.

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तस्वीर: AP

2005 में शिल्पकार पेटर आईजमान ने 2,700 स्तंभों के जरिए यहूदियों की यातना को याद किया. इसे बर्लिन में देखा जा सकता है. इन स्तंभों के जरिए नात्सी अत्याचार और यहूदियों को दी गई यातना और उनके त्याग को समाज के जमीर में जिंदा रखने की कोशिश की जा रही है. लेकिन इसे हमेशा के लिए सामाजिक इतिहास का हिस्सा बनाने के लिए एक खास मास्टर प्रोग्राम बनाया गया है जो बर्लिन के टूरो कॉलेज में पढ़ाया जाता है. टूरो कॉलेज एक अमेरिकी संस्थान है जो बर्लिन के अलावा मॉस्को, पैरिस और येरुशलम में यहूदी यातना या होलोकॉस्ट पर काम करता है.

बर्लिन के पश्चिमी हिस्से में एक बड़ी पथरीली दीवार के बीचों बीच संस्थान छात्रों को इतिहास के अत्याचार के बारे में बताता है. एक सुंदर विला जैसी इमारत में प्रोफेसर इंगो लोजे पढ़ाई के बारे में बताते हैं, ''1920 के दशक में यह इमारत एक यहूदी परिवार का घर थी. 1933 में इसे परिवार से छीन लिया गया और उसके बाद कई सालों तक यह नास्ती शासन के मंत्रियों का निवास और चर्च के कामों के लिए इस्तेमाल किया गया. दूसरे विश्व युद्ध के बाद फिर यह सरकार के हाथ आया और यहां टूर कॉलेज की स्थापनी की गई.''

शाम के वक्त में यहां कोई नहीं है. 15 छात्र यहां होलोकॉस्ट कम्यूनिकेशन एंड टॉलेरेंस की पढ़ाई करते हैं. इस्राएल से आए गाई बांड कहते हैं, ''मैंने एक साल जर्मनी में काम किया और होलोकॉस्ट के बारे में और तरह के मतों को जानने की कोशिश की. फिर मैंने इस पढ़ाई के बारे मं सुना.''

बांड कहते हैं कि पढ़ाई में यहूदी यातनी के इतिहास को ही नहीं बल्कि बदलते वक्त के साथ बदलते नजरियों के बारे में भी जानकारी मिलती है. प्रोफेसर लोजे कहते हैं कि मिसाल के तौर पर यहूदी यातना से संबंधित इमारतों को देखने आजकल अलग तरह के छात्र आते हैं. जैसे जो मूल तौर पर जर्मन नहीं हैं. इसलिए 1960 की दशक का नजरिया इन पर नहीं बैठता.

टूरो कॉलेज की स्थापना करने वाले यहूदी धार्मिक नेता राबी बेरनार्ड लैंडर के खयाल भी कुछ ऐसे थे. इस तरह की पढ़ाई का विचार 2005 में बर्लिन स्मारक के साथ आया. बिना किसी मतलब के स्तंभों को वे कुछ मान्यता देना चाहते थे और इसलिए पांच साल पहले उन्होंने होलोकॉस्ट और यहूदी स्टडीज के लिए एक खास विभाग बनाया. प्रोफेसर आंद्रेयास नाखामा का कहना है कि लैंडर जानते थे कि यह पढ़ाई अमेरिकी छात्रों के लिए भी मायने रखती है. इसके जरिए बताया जाता है कि कोई भी यहूदी यातना के सबूतों को कैसे देखता है, किस तरह इस यातना को समझाता है और किस तरह इस बात को विदेशी मूल के बच्चों को समझाया जा सकता है.

प्रोफेसर नाखामा इस प्रोग्राम के प्रमुख हैं. राजनीति शास्त्र और धर्म पढ़ाने वालों के अलावा वह शिक्षा विशेषज्ञों को भी खास ट्रेनिंग देते हैं. इस कोर्स में दाखिल होने के लिए मुद्दे में दिलचस्पी होना तो जरूरी है ही, साथ ही एस ऐसी डिग्री जो जर्मन विश्वविद्यालयों में मानी जाती हो. आपने इससे पहले क्या पढ़ाई की हो, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन जरूरी है कि आप इतिहास को अच्छी तरह जानते हों.

कोर्स में दाखिल आंके आइसफेल्ड का कहना है कि इस पढ़ाई के बाद कैरियर के काफी अच्छे विकल्प बनते हैं. कहती हैं कि वह पत्रकार बनना चाहती हैं और उसके जरिए होलोकॉस्ट और यहूदी यातना पर लोगों को बताना चाहती हैं. उनके साथ पढ़ रहीं इंका होलमान्स कहती हैं कि वह इस क्षेत्र में काम कर रहे और लोगों से मिलना चाहती हैं. टूरो में पढ़ रहे एक और छात्र का कहना है कि जर्मनी में ही नहीं, कई और देशों में होलोकॉस्ट के संबंधित विषय उभरते हैं. यह छात्रों के लिए अच्छा है क्योंकि पढ़ाई के बाद वह जर्मनी में ही नहीं बल्कि दुनियाभर में काम ढूंढ सकते हैं.

रिपोर्ट: मानसी गोपालकृष्णन

संपादन: ओंकार सिंह जनौटी