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ग्रीस का ईयू के विरुद्ध जाने के मायने

२९ जनवरी २०१५

अलेक्सिस सिप्रास ने रूस वाले बयान पर सवाल उठाकर ईयू में हलचल मचा दी है. डीडब्ल्यू के बैर्न्ड रीगर्ट का मानना है कि ब्रसेल्स से जारी हुए संयुक्त बयान से खुद को अलग करना ग्रीस के लिए बहुत अच्छी रणनीति नहीं होगी.

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Griechenland Tempel ohne Kopf
तस्वीर: picture-alliance/dpa

ग्रीस के नए प्रधानमंत्री की रफ्तार वाकई तेज है. सरकार बनाने के कुछ ही घंटों बाद सिप्रास ने ईयू के बाकी देशों के साथ झगड़ा मोल ले लिया. वह यूक्रेन में हिंसा जारी रखने के लिए जिम्मेदार माने जा रहे रूस के खिलाफ और कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए जाने के ईयू के संयुक्त घोषणापत्र पर हस्ताक्षर नहीं करना चाहते. क्या इसे किसी नौसीखिए की गलती माना जाए या फिर वामपंथी सीरिजा पार्टी की सोची समझी रणनीति? इनमें से कोई भी खतरे से खाली नहीं है.

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि एथेंस में बनी नई सरकार को ईयू के 28 देशों के बीच प्रचलित तेज निर्णय लेने की प्रक्रिया की जानकारी ना हो. या फिर, ब्रसेल्स से चला वह पत्र मंत्रालयों के बीच ही कहीं अटक गया हो, जिसमें प्रतिबंधों के बारे में ग्रीस की सहमति मांगी गई थी? प्रक्रिया के अनुसार अगर तय समय सीमा के भीतर कोई सदस्य देश अपना विरोध दर्ज नहीं कराता है, तो उसे सहमति ही समझा जाएगा. ईयू के सभी 28 सदस्य देशों के बीच यह प्रक्रिया आम है लेकिन शायद इस बारे में ग्रीस के नए वामपंथी और दक्षिणपंथी दलों की साझा सरकार को जल्द से जल्द सीखने की जरूरत है.

अलेक्सिस सिप्रास ने ईयू के विदेश मामलों के प्रमुख को खुद फोन किया. कथित तौर पर सिप्रास ने इस प्रक्रिया में ग्रीस की उपेक्षा की शिकायत की, जिसे कई लोग एक सोचा समझा राजनैतिक पैंतरा मान रहे हैं. सिप्रास पहले जारी हुए विदेश नीति घोषणापत्र को खारिज करवा कर अपने हितों के लिए दबाव बनाना चाहते हैं. स्थिति ऐसी बन रही है कि नया ग्रीस ईयू के दूसरे राजनैतिक निर्णयों में तभी साथ देगा, जब ईयू ग्रीस को कई अरब यूरो का बेलआउट पैकेज देने को तैयार हो.

Deutsche Welle Bernd Riegert
डीडब्ल्यू के बैर्न्ड रीगर्ट

केवल प्रतिबंध लगाने के लिए ही नहीं बल्कि व्यापार और बजट से संबंधित मामलों में भी ईयू नेताओं को एकमत होकर निर्णय पर पहुंचना जरूरी होता है. साफ तौर पर यहां ब्लैकमेल किए जाने का पूरा मौका है. इस मामले पर मतभेद को तुरंत सार्वजनिक कर सिप्रास ने गेंद दूसरे ईयू देशों के पाले में डाल दी है. इसके पहले आंतरिक स्तर पर विवाद को निपटाना शायद ज्यादा समझदारी भरा कदम होता. सिप्रास की इस हरकत से रूस को ये संदेश गया कि ईयू के चक्रव्यूह को भेदना आसान है.

अपने चुनावी अभियान में भी सिप्रास ने रूस पर कड़े प्रतिबंधों के खिलाफ खुल कर बयान दिए थे. उनकी सीरिजा पार्टी के कुछ सदस्य मॉस्को के काफी करीबी माने जाते हैं. यूक्रेन और क्रीमिया को लेकर चले आ रहे राजनैतिक संकट में रूस के खिलाफ यूरोप का एकजुट होना, ईयू के ट्रंप कार्ड जैसा था. नई ग्रीक सरकार उस सर्वसम्मति को तोड़ कर पूरे ईयू को एक गंभीर राजनैतिक संकट में ढकेल सकती है.

यूरोपीय संघ को पहले भी ऐसे सदस्यों की ओर से राजनैतिक ब्लैकमेल का सामना करना पड़ा है, जो अपने खास आर्थिक हितों को ही बढ़ावा देना चाहते थे. ईयू ब्लॉक की कई सरकारें ऐसी कोशिश कर चुकी हैं लेकिन फिर भी ग्रीस इस मामले में उन सबसे अलग है. पहला अंतर ये है कि अलेक्सिस सिप्रास के यहां गंभीर आर्थिक अनिश्चितता फैली हुई है और दूसरा ये कि ईयू में उनका कोई सहयोगी नहीं है. सिप्रास का बर्ताव चिंताजनक और गैरपेशेवर कहा जा सकता है. ग्रीस को ईयू की जरूरत है, इसलिए उन्हें सामंजस्य और सहमति बनाने की ओर प्रयास करने होंगे. दो हफ्तों में पहला ईयू सम्मेलन होने जा रहा है जहां उन्हें दूसरे राष्ट्र प्रमुखों और देशों के साथ मिलकर काम करने की ओर प्रयास करने होंगे और अपने हठी क्रांतिकारी रूप को पीछे छोड़ना होगा. इसमें भी कोई नुकसान नहीं होगा अगर जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल खुद ही फोन उठा कर एथेंस के इस नए उपद्रवी से बात कर लें.

बैर्न्ड रीगर्ट/आरआर