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विकिरण विरोधी गोलियां

२९ जुलाई २०१४

जापान के अधिकारी परमाणु विकिरण रोकने वाली आयोडीन की गोलियां बांट रहे हैं. ये गोलियां दो परमाणु रिएक्टरों के बीच रहने वाले लोगों को दी जा रही हैं. रिएक्टर इस साल शुरू किए जाएंगे.

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Sendai Japan
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo

सेंदाई परमाणु संयंत्र के पास पांच किलोमीटर के इलाके में आयोडीन गोलियां बांटी जा रही हैं. ये शरीर में विकिरण कम करने में मदद करेंगी. यह संयंत्र दक्षिणी द्वीप कुयुशु पर है और हाल ही में इसे नए सुरक्षा नियामकों के आधार पर हरी झंडी मिली है. कुछ ही महीनों में यहां परमाणु ऊर्जा उत्पादन शुरू हो सकता है.

तीन साल पहले हुए फुकुशिमा हादसे के बाद कई लोग इस संयंत्र और परमाणु ऊर्जा का विरोध कर रहे हैं. लेकिन फिर भी इस योजना को मंजूरी दे गई.

जापान के परमाणु नियामक प्राधिकरण ने इस महीने की शुरुआत में कहा था कि सेंदाई में दो परमाणु प्लांट सुरक्षित हैं और उन्हें फिर से शुरू किया जा सकता है. फुकुशिमा के बाद बंद किए गए संयंत्रों में से दो को शुरू करना एक बड़ा कदम है.

सात्सुमासेंदाई सिटी और कागोशिमा प्रिफेक्चर के अधिकारियों ने बताया कि वो इलाके के 4,700 लोगों को आयोडीन की गोलियां दे रहे हैं. ये गोलियां तीन साल के बच्चों को भी दी गई हैं. कई दर्जन लोगों ने मुफ्त की ये गोलियां लेने से इनकार कर दिया है. सरकार ने दुर्घटना की स्थिति में लोगों को बचाने के लिए ये गोलियां बांटने का फैसला लिया था.

ये गोलियां हवा में फैले विकिरण से थायरॉयड ग्रंथि को बचाने के लिए इस्तेमाल की जाती हैं. लेकिन कुछ को इसके असर पर भरोसा नहीं. कागोशिमा के अधिकारी ने बताया, "केंद्रीय सरकार ने आयोडीन की गोलियां बांटने के दिशानिर्देश जारी किए हैं. हमने प्रभावित लोगों से अनुरोध किया है कि वो गोलियां ऐसी जगह रखें कि आसानी से मिल जाएं, जैसे कि मेडिसिन बॉक्स में."

दो प्लांटों को फिर से शुरू करने के आदेश के बावजूद प्रधानमंत्री शिंजो आबे के लिए बाकी बंद रिएक्टरों को शुरू करवाना एक चुनौती होगी. आबे कोशिश कर रहे हैं कि चिंताग्रस्त लोग किसी तरह इस बात पर राजी हो जाएं कि देश को परमाणु ऊर्जा की जरूरत है क्योंकि इसी से देश की एक चौथाई बिजली आपूर्ति होती है.

मार्च 2011 में फुकुशिमा परमाणु ऊर्जा संयंत्र में हुई परमाणु दुर्घटना चेरनोबिल के बाद सबसे बड़ी परमाणु दुर्घटना है. ये इलाके अभी भी नो गो जोन बने हुए हैं. दुर्घटनाग्रस्त इलाके की सफाई में दशकों लगेंगे. और आस पास के इलाकों में रहने वाले कई हजार निवासी शायद ही कभी अपने घरों को लौट पाएं.

एएम/ओएसजे (एएफपी)