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"खट्टा मीठा फिल्मी सफर"

२६ जुलाई २०१४

जाने माने अभिनेता गोविंदा ने फिल्मों में लंबी पारी खेली है. राजनीति का रुख करने के बाद एक बार फिर अभिनय के क्षेत्र में वापसी करने वाले गोविंदा अब निर्माता के तौर पर भी हाथ आजमा रहे हैं. उन्होंने डॉयचे वेले से बात की.

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तस्वीर: Prabhakar Mani Tiwari

अपनी कंपनी के बैनर उन्होंने अभिनय चक्र बनाई है, जो अगले महीने रिलीज होगी. गोविंदा कहते हैं कि उनको पहलाज निहलानी की फिल्म इल्जाम (1986) ने स्टार बनाया. अपने लंबे करियर के दौरान इस अभिनेता ने बहुत धोखे भी खाए हैं. पेश है उनसे बातचीत के मुख्य अंशः

आपने हिंदी फिल्मों में अपने करियर के 28 साल पूरे कर लिए हैं. यह सफर कैसा रहा है?

मेरा यह सफर बेहद रोमांचक रहा है. इस दौरान कई खट्टे मीठे अनुभव हुए. कई करीबी लोगों ने धोखे दिए तो अनजान लोगों ने काफी मदद भी की. कुल मिला कर इस दौरान मुझे काफी कुछ सीखने को मिला. एक निर्माता के तौर पर मैंने बहुत धोखे खाए और नुकसान भी सहा. लेकिन उसके बावजूद मैं डटा हुआ हूं. मैंने कभी चुनौतियों के आगे घुटने टेकना नहीं सीखा.

नब्बे के दशक में आपको कॉमेडी किंग कहा जाता था. लेकिन उसके बाद एक दौर ऐसा भी आया जब कहा जाने लगा कि आपका करियर खत्म हो गया. उस समय कैसा महसूस होता था?

हां, कुछ लोगों ने मेरे करियर पर फुलस्टाप लगा दिया था. लेकिन मैं ऐसी चीजों का आदी रहा हूं. इसकी एक वजह यह है कि मैं कभी किसी खेमे में नहीं रहा. इसलिए किसी ने मेरा बचाव भी नहीं किया.

Der Bollywood Schauspieler Govinda
कॉमेडी के मास्टर गोविंदातस्वीर: DW

क्या गर्दिश के दिनों में कभी किसी से काम मांगने भी गए थे?

राजनीति करने के दौरान मैं वोट मांगने घर घर गया था. ऐसे में निर्माताओं के पास जाकर काम मांगने में क्या बुराई है. ऐसे ही एक दौर में मैंने डेविड धवन को फोन कर उनसे काम मांगा. उसके बाद ही मुझे पार्टनर फिल्म मिली.

क्या दोबारा राजनीति में लौटेंगे?

अब इसका कोई सवाल ही नहीं पैदा होता. राजनीति मेरे लिए नहीं है.

आपने पिछली बार जिस बांग्ला फिल्म में काम किया था वो बॉक्स आफिस पर कुछ खास नहीं कर सकी. क्या आगे भी बांग्ला फिल्मों में काम करेंगे?

जरूर. किसी फिल्म की कामयाबी या नाकामी का अभिनेता के चयन पर कोई असर नहीं होना चाहिए. इससे पहले की फिल्म में मैं अतिथि किरदार में था.

अपने लंबे करियर में कामयाबी के बावजूद आपको काफी आलोचना झेलनी पड़ी है. इसकी कोई खास वजह?

मैं आलोचनाओं की परवाह नहीं करता. मेरी कामयाबी में आम दर्शकों का हाथ रहा है, आलोचकों का नहीं. लोग आलोचकों की टिप्पणियां पढ़ कर फिल्म देखने नहीं जाते. दर्शक ही फिल्म की किस्मत तय करते हैं. हिट और फ्लॉप तो इस पेशे का हिस्सा है. किसी फिल्म की नाकामी से हिम्मत हार कर बैठ जाने की बजाय मैं हमेशा उससे प्रेरणा लेकर अगली फिल्म पर ज्यादा मेहनत करता हूं.

अभिनय चक्र के बारे में कुछ बताएं ?

यह फिल्म बेहद शानदार बनी है. मुझे उम्मीद है कि दर्शक भी इसे पसंद करेंगे. यह एक मनोरंजक फिल्म है और मैंने इसमें पुलिस वाले की भूमिका निभाई है.

इंटरव्यूः प्रभाकर, कोलकाता

संपादनः अनवर जे अशरफ