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कैसे बदल रहा है जर्मन यूनिवर्सिटियों का चेहरा

२२ अप्रैल २०११

हाल के समय में जर्मनी का शैक्षिक चेहरा बदला है. बैचलर और मास्टर डिग्री एक तरह से अच्छी यूनिवर्सटियों में जाने के लिए नियम की तरह बन गई हैं. अच्छे विश्वविद्यालय छात्रों को पढ़ाई का खर्च उठाने में भी मदद करने लगे हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

जर्मनी की यूनिवर्सटियों में 20 लाख से ज्यादा विदेशी छात्र पढ़ रहे हैं. यानी हर दसवां छात्र विदेशी है. यूरोप के बाहर के छात्रों के लिए पढ़ाई करने जर्मनी आना अब आसान है. 1999 में जर्मनी और यूरोप के अन्य 31 देशों के बीच एक समझौता हुआ, जिसे बोलोग्ना प्रक्रिया कहा जाता है. इसका मकसद यूरोप में एक समान शैक्षिक व्यवस्था शुरू करना है. अब कई और देश भी इससे जुड़ गए हैं.

Studentin in Bibliothek
तस्वीर: Christoph & Friends

सिस्टम को योजनाबद्ध करना

बोलोग्ना प्रक्रिया के तहत यह तय किया गया है कि बैचलर, मास्टर और पीएचडी सिस्टम के तहत एक समान डिग्री दी जाए ताकि उस डिग्री की अहमियत हर जगह बनी रहे. जर्मन व्यवस्था में यह एक बड़ा बदलाव है. जर्मनी में आधिकारिक तौर पर डिग्री, डिप्लोम या मागेस्टर दी जाती थी.

इस बदलाव ने कई नए कोर्सों को जन्म दिया. खास तौर पर विदेशी छात्रों के लिए नए दरवाजे खुले. उदाहरण के तौर पर डॉर्टमुंड की टेक्निकल यूनिवर्सिटी SPRING (Spatial Planning for Regions in Growing Economies) नाम का मास्टर्स प्रोग्राम चला रही है. स्प्रिंग के सिलेबस में दुनिया भर के शहरों और इलाकों की प्लानिंग के विषय हैं.

महंगी नहीं है पढ़ाई

जर्मनी में यूनिवर्सिटी और उच्च शिक्षा के 400 से ज्यादा संस्थान हैं. कुछ राज्यों में ट्यूशन फीस 500 यूरो तक है. लेकिन यह भी अमेरिका, इंग्लैंड और फ्रांस की औसत ट्यूशन फीस से कम है. हालांकि जर्मनी में नेताओं और छात्रों के बीच शिक्षा पर होने वाले खर्च को लेकर बहस छिडी हुई है. पूर्वी जर्मनी की कई यूनिवर्सिटियों में तो ट्यूशन फीस है ही नहीं.

सामान्य विषयों के साथ ही जर्मनी में कुछ खास विषयों की भी पढ़ाई होती है. कुछ कॉलेजों को यूनिवर्सिटीज ऑफ अप्लाइड साइंस भी कहा जाता है. कुछ कोर्स खास किस्म के रोजगारों से जुड़े हैं. म्यूजिक कॉलेज, आर्ट एकेडेमिक्स, मीडिया और फिल्म एकेडेमिक्स की पढ़ाई भी जर्मनी में तसल्ली से होती है.

Deutschland Bildung Studiengebühren Studenten Goethe Uni in Frankfurt
तस्वीर: AP

जारी हैं परंपराएं
रुप्रेष्ट कार्ल यूनिवर्सिटी, हाइडेलबर्ग शहर की यह यूनिवर्सिटी जर्मनी का सबसे पुराना विश्वविद्यालय है. इसकी स्थापना 1386 में हुई. बर्लिन की हुमबोल्ट यूनिवर्सिटी की भी ऐतिहासिक अहमियत है. इसे 1810 में महान भूगोलशास्त्री और शिक्षावादी विल्हेम फोन हुमबोल्ट ने बनाया. तब इसका नाम बर्लिन यूनिवर्सिटी था. हुमबोल्ट का सपना था कि अभ्यास को शिक्षा से जोड़ा जाए. उनका मानना था कि प्रोफेसरों को सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं होना चाहिए. उन्हें लगातार शोध करना चाहिए और अपने क्षेत्र की नई जानकारी होनी चाहिए.

अब जर्मनी की अन्य यूनिवर्सिटियां भी इसी राह पर हैं. बैचलर और मास्टर डिग्री शुरू करने के बाद ज्यादातर विश्वविद्यालय शोध और रिसर्च के अनुभवों को सिलेबस का हिस्सा बना रहे हैं.

बेहतरीन विश्वविद्यालय

2005-2006 में जर्मन सरकार ने एक योजना शुरू की. इसे एक्सिलेंस इनिशिएटिव यानी शानदार पहल कहा जाता है. सरकार ने ऐसी योजना बनाई कि देश की सभी यूनिवर्सिटियों में आपस में प्रतिस्पर्द्धा हो, ताकि इससे शिक्षा का स्तर बेहतर हो. अब तक नौ विश्वविद्यालयों को इसके तहत एलीट यूनिवर्सिटी का खिताब मिल चुका है. इनमें टेक्निकल यूनिवर्सिटी म्यूनिख और आखन, द एलएमयू म्यूनिख, एफयू बर्लिन के साथ कोंसटांज, हाइडेलबर्ग, ग्योटिंगन, कार्ल्सरुहे और फ्राइबुर्ग की यूनिवर्सिटियां हैं. इन संस्थानों को आविष्कारों और अंदरुनी योजनाओं की जन्मस्थली माना जाता है.

Frauenstudium Deutschland
तस्वीर: AP

यूनिवर्सिटियों की यह होड़ सिर्फ खिताब का मामला नहीं है. सम्मान पाने वाले विश्वविद्यालयों को अतिरिक्त पैसा मिलता है ताकि वे अपने शोध के छात्रों और शिक्षकों की मदद कर सकें, नए प्रतिभाशाली लोगों को अपनी तरफ आकर्षित कर सकें. एक्सिलेंस इनिशिएटिव के तहत अन्य विश्वविद्यालयों को भी कुछ विशेष कार्यों और क्षेत्रों के लिए आर्थिक मदद दी जाती है.

जर्मन यूनिवर्सिटियों और दुनिया भर के कई संस्थानों ने आपस में करार किए हैं. इससे जर्मन विश्वविद्यालयों में पढ़ चुके छात्रों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोजगार के दरवाजे खुलते हैं. अर्थशास्त्र और मैकेनिकल इंजीनियरिंग विदेशी छात्रों के सबसे पसंदीदा डिग्री कोर्सों में हैं.

रिपोर्टः गाबी रोएशर

संपादनः वी कुमार