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कैसे सूखा मंगल

९ मार्च २०१५

कभी मंगल ग्रह का 20 फीसदी हिस्सा पानी से ढका था और फिर वहां भी जलवायु परिवर्तन हुआ. लाल ग्रह को लेकर नासा की ऐतिहासिक खोज.

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NASA Mars Wasser
तस्वीर: NASA/GSFC

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के वैज्ञानिकों के मुताबिक लाल ग्रह कहे जाने वाले मंगल में कभी एक विशाल समंदर था, जो एक बड़े इलाके में फैला था. इसकी गहराई भूमध्यसागर के बराबर रही होगी. विज्ञान पत्रिका साइंस में छपी रिपोर्ट के मुताबिक सागर ने लाल ग्रह का करीब 20 फीसदी हिस्सा घेर रखा था. कुछ जगहों पर इसकी गहराई 1.6 किलोमीटर तक थी.

शोध के प्रमुख लेखक और अर्जेंटीना के वैज्ञानिक जेरोनिमो विलानुएवा के मुताबिक उनका शोध पहली बार पुख्ता आधार पर बता रहा है कि मंगल पर कभी कितना पानी था. वैज्ञानिकों को लगता है कि वक्त के साथ लाल ग्रह का 87 फीसदी पानी वाष्पीकृत होकर अंतरिक्ष में समा गया. विलानुएवा कहते हैं, "इस काम से हम मंगल में पानी के इतिहास को बेहतर ढंग से समझ पाएंगे."

Raumfahrt Nasa will neue Schwerlast-Trägerrakete ab 2018 Space Launch System
मंगल पर इंसान को भेजने की तैयारीतस्वीर: picture-alliance/dpa/NASA

दो तरह का पानी

शोध के सह लेखक माइकल मम्मा के मुताबिक यह खोज दिखाती है कि कभी मंगल जीवन के मुफीद जगह रही होगी, "मंगल पहले के अनुमानों से उलट, कहीं ज्यादा लंबे वक्त तक गीला रहा होगा. इससे संकेत मिलता है कि ग्रह लंबे समय तक रहने लायक रहा होगा."

दुनिया की तीन सबसे शक्तिशाली दूरबीनों का इस्तेमाल कर वैज्ञानिक इस नतीजे पर भी पहुंचे हैं कि वातावरण में दो तरह का पानी है. एक जिसे हम जानते हैं, H2O यानि दो हाइड्रोजन और एक ऑक्सीजन का अणु.

दूसरे को वैज्ञानिक HDO कहते हैं. इसमें हाइड्रोजन के एक अणु की जगह हाइड्रोजन का दूसरा लेकिन भारी अणु आ जाता है. इसे डुटेरियम कहा जाता है. HDO और H2O का आनुपातिक विश्लेषण कर वैज्ञानिक मापते हैं कि कितना पानी अंतरिक्ष में समा चुका है.

नासा का कहना है कि इन नतीजों का इस्तेमाल भविष्य में कई प्रयोगों में होगा. इससे पता चलेगा कि मंगल ग्रह पर जलवायु परिवर्तन कैसे हुआ और इससे क्या बदलाव हुए. नासा 2030 के दशक में इंसान को मंगल ग्रह पर पहुंचाना चाहती है.

गाब्रिएल बोरुड/ओएसजे