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एक बलात्कार पीड़ित की आपबीती

कात्या केप्नर/ईशा भाटिया१ नवम्बर २०१४

असम की रहने वाली दिव्या उस दिन को बुरा सपना समझ कर भूल जाना चाहती हैं जिस दिन दिल्ली में एक "अच्छे घर के बेटे" ने उनकी इज्जत लूटी. लेकिन कई बार खुदकुशी की कोशिश कर चुकी दिव्या के लिए इस दुःस्वप्न को भुलाना आसान नहीं.

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Vergewaltigungsopfer Diva
तस्वीर: DW/K. Keppner

दिव्या की जंग 2009 में शुरू हुई. उस दर्दनाक दिन को याद करते हुए वह बताती हैं, "मैं उससे फेसबुक पर मिली थी. कई हफ्तों तक वह कोशिश करता रहा कि मैं उससे मिलूं. फिर एक दिन मैंने हां कह ही दी." दिव्या ने रेस्त्रां में मिलने की बात की लेकिन लड़का घर पर ही मिलना चाहता था, "वह 24 साल का था, मुझे लगा मां बाप के साथ ही रहता होगा. वैसे भी काफी अच्छी जगह में रहने वाला, बड़े घर का लड़का था वह." दिव्या जब वहां पहुंची तो घर में लड़के के माता पिता तो नहीं दिखे, हां एक नौकर जरूर था. उसे भी लड़के ने कुछ लेने बाहर भेज दिया.

आज दिव्या मानती हैं कि उस वक्त वह नादान थीं क्योंकि उसके बाद जो हुआ, उसने दिव्या की जिंदगी बदल कर रख दी, "उसने मुझे पकड़ कर सोफे पर फैंक दिया और धमकाया कि अगर मैंने शोर मचाया तो वो पूरा दिन मेरे साथ बलात्कार करेगा." दिव्या बताती हैं कि उनके साथ बलात्कार के दौरान हर मुमकिन तरीका अपनाया गया, "मैं उस वक्त कुंवारी थी, इसलिए उसे जबरदस्ती करने में आधा घंटा लगा." यह कहते कहते दिव्या शून्य में खो सी जाती हैं, "बहुत खून बहा, मैं सुन हो गयी थी. फिर उसने मुझे कहा कि उसने इस सबका वीडियो बनाया है और अगर मैंने अपनी जबान खोली तो वो वीडियो लीक कर देगा."

टू फिंगर टेस्ट

डरी हुई दिव्या ने किसी से कुछ नहीं कहा. आज भी उस लम्हे को याद कर वह सहम जाती हैं, "मेरे मन में पहला ख्याल यही आया कि मेरे माता पिता, मेरे दोस्त, समाज मेरे बारे में क्या सोचेंगे." वह अपनी जुड़वां बहन से भी इस बात को छिपाने की कोशिश करती रही. लेकिन कुछ दिन बाद दिव्या ने हिम्मत जुटाई. बहन उसे पुलिस के पास ले गयी. वहां से उसे जांच के लिए अस्पताल भेजा गया. विवादास्पद 'टू फिंगर टेस्ट' कर बलात्कार की पुष्टि की गयी. दिव्या डॉक्टर की संवेदनहीनता को देख कर हैरान थी, "डॉक्टर ने कॉरिडोर के उस पार से आवाज लगाई, उस लड़की को लाओ जिसका रेप हुआ है."

जिस वक्त दिव्या का टेस्ट हुआ, ना केवल उसके जननांग पर चोट थी, बल्कि शरीर पर जगह जगह नील भी पड़े हुए थे. डॉक्टर ने यह सब रिपोर्ट में भी लिखा. लेकिन अदालत में जब यही रिपोर्ट पेश की गयी, तो डॉक्टर मुकर गयी. उसने कहा कि वह ऐसी किसी रिपोर्ट के बारे में नहीं जानती, "वह बिक चुकी थी."

शादी का प्रस्ताव

अदालत तक पहुंचना भी आसान नहीं था. जैसे जैसे खबर फैली आस पड़ोस के लोग दिव्या को अजीब सी नजरों से देखने लगे. हालात यहां तक पहुंच गए कि दिव्या और उनकी बहन को दिल्ली छोड़ कर जाना पड़ा. कुछ वक्त बाद जब वह दिल्ली लौटीं तो उन्होंने खुद को अकेला पाया, "मेरे दोस्तों ने मुझसे बात करना छोड़ दिया था, वे बलात्कार पीड़ित से संपर्क नहीं रखना चाहते थे."

जब मुकदमा शुरू हुआ तो दिव्या की जान पहचान वालों को धमकी भरे फोन आने लगे. इसके बाद अपराधी ने परिवार को पैसा दे कर चुप कराना चाहा. जब इससे भी बात नहीं बनी तो वकील ने अपराधी से शादी का प्रस्ताव रखा. जब दिव्या ने इससे भी इंकार कर दिया, तो वकील ने अदालत में यह साबित करना शुरू कर दिया कि दिव्या की स्वीकृति से ही संबंध बने. दिव्या बताती हैं कि वकील की दलील का अंदाज कुछ ऐसा होता था जैसे "इसका बलात्कार कौन करना चाहेगा?"

2011 में "सबूतों के अभाव" में दोषी को छोड़ दिया गया. लेकिन दिव्या ने अब भी हिम्मत नहीं हारी है. उनकी वकील रेबेका जॉन बिना पैसा लिए उनका मुकदमा लड़ रही है. रेबेका दिव्या जैसी और भी लड़कियों की मदद कर रही हैं. दिव्या मामले को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने के लिए तैयार है. न्याय के इंतजार में भले ही उनके करीबी लोगों ने उनका साथ छोड़ दिया, बुरे सपने अब भी उनके साथ हैं, "हां, बुरे सपने तो अब भी आते हैं, पर अब मैंने उनसे निपटना सीख लिया है."